सब सहसा एकान्त लग रहा,
ठहरा रुद्ध नितान्त लग रहा,
बने हुये आकार ढह रहे,
सिमटा सब कुछ शान्त लग रहा।
मन का चिन्तन नहीं व्यग्रवत,
शुष्क हुआ सब, अग्नि तीक्ष्ण तप,
टूटन के बिखराव बिछे हैं,
स्थिर आत्म निहारे विक्षत।
सज्जन-मन निर्जन-वन भटके,
पूछे जग से, प्रश्न सहज थे,
कपटपूर्ण उत्तर पाये नित,
हर उत्तर, हर भाव पृथक थे।
सज्जन-मन बस निर्मल, निश्छल,
नहीं समझता कोई अन्य बल,
सब कुछ अपने जैसा लगता,
नहीं ज्ञात जग, कितना मल, छल।
साधारण मन और जटिल जन,
सम्यक चिन्तन और विकट क्रम,
बाहर भीतर साम्य नहीं जब,
क्या कर लेगा, बन सज्जन-मन।
उत्कृष्ट सर🙏
ReplyDeleteWaah praveenam soooo nice.👌👌👌
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण सर
ReplyDeleteअप्रतिम🙏
ReplyDeleteWelcome to Gorakhpur again sir
ReplyDelete🙏🙏
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर और मार्मिक सर
ReplyDeleteNice Post Good Informatio ( Chek Out )
ReplyDelete👉 मेघनाथ किसका अवतार था
👉 मेघनाथ किसका अवतार था? मेघनाथ के बारे में रोचक जानकारी
❤️
ReplyDeleteBahut hee sundar rachna lambe samay baad blog me haal haal lene aayi sudhi pathak lekhak jano ki. Aapki wall me bhi ek saal se post nahi.
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (28-05-2023) को "कविता का आधार" (चर्चा अंक-4666) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
प्राकृतिक सनातन पथ से विमुख समाज की पीड़ाओं से जो मन होता है, उसकी सहज सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteइस उदासीनता में यह जन भी आपके साथ है।
प्रणाम। कैसे हैं। बहुत दिन से कुछ लिखे नहीं।
ReplyDeleteप्रवीण जी,
ReplyDeleteबहुत दिन हो गए मिलना नहीं हुआ ! आशा है स्वस्थ, प्रसन्न होंगे !🙏