मेरा जीवन, एक दिये सा,
तेल तनिक पर बाती लम्बी,
जलने की उत्कट अभिलाषा,
स्रोत विरलतम, आस विहंगी।
आशा के अनुरूप जली वह,
अनुभव पाती प्रथम प्रशस्था,
करती अपना पंथ प्रकाशित,
रही व्यवस्थित साम्य अवस्था।
सतत संग में सहयात्री थे,
उनके हित भी कुछ कर पाती,
अत्यावश्यक, बल, मति, क्षमता,
शनै शनै ऊर्जित गति पाती।
मन, जीवन, जन, दिशा, दशा, पथ,
नहीं पृथक, मिलकर बाँधेंगे,
कार्य वृहद सब करने होंगे,
सब हाथों से सब साधेंगे।
सोचा साथ चलेंगे डटकर,
सोचा मिट्टी एक हमारी,
एक दिया बन जल सकते यदि,
बनी रहेगी प्रगति हमारी।
कुछ में कम, है अधिक किसी में,
तेल और बाती जीवन की,
संसाधन की कही प्रचुरता,
कहीं विकलता सकुचे मन की।
एक दिया ऐसा पाया जो,
तेल भरा पर बाती छोटी,
लगा सुयोग बना विधि भेजा,
कर लेंगे पूरित क्षति जो भी।
बीच पंथ में भान हुआ यह,
यद्यपि तेल मिला गति पायी,
किन्तु प्रखरता मन्द पड़ी क्यों,
किसने उद्धत दीप्त बुझायी।
बाती पर ही तेल गिर रहा,
ज्योति सिमटती जाती मध्यम,
यह केवल संयोग नहीं था,
जानबूझकर इंगित था क्रम।
ज्ञात नहीं थे ऐसे प्रकरण,
सहजीवन में दिखे नहीं थे,
संसाधन से क्षमता बाधित,
विधि ने कटु क्षण लिखे नहीं थे।
त्याग राग से कर सकता हूँ,
छिप जाना स्वीकार नहीं था,
बिना जिये अस्तित्व सिमटना,
छल से अंगीकार नहीं था।
धन्यवाद ईश्वर को शत शत,
अब एकाकी चल पाऊँगा,
किन्तु जलूँगा पूर्ण शक्ति भर,
जितना संभव जल पाऊँगा।
जीवन पढ़ना, बढ़ना जाना,
और समय से जान लिया सब,
अपनी धार, तरंगें अपनी,
अपनी बहती शान्त सुखद नद।
जीवन की सच्चाई। इन पंक्ति को पढ़कर समझ मे आयी।,🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteत्याग राग से कर सकता हूँ,
ReplyDeleteछिप जाना स्वीकार नहीं था,
बिना जिये अस्तित्व सिमटना,
छल से अंगीकार नहीं था।
ऐसा जीवन जीना सरल नहीं । यहाँ तो पग पग पर छल मिलता है । सोचने को बाध्य करती रचना ।
🙏
ReplyDeleteबहुत सालों के बाद आपके ब्लॉग पर आई हूं अच्छा लगा आप को पढ़कर
ReplyDeleteमशीनें हमें अकेला ही बनाकर छोड़ देंगी। सब अकेले हो जायेंगे। साथ में केवल स्वार्थवश ही रहेंगे।
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