वही प्रश्न हैं और उत्तर वही हैं,
नहीं ज्ञात यह भी, सही या नहीं हैं,
समस्या भ्रमित, हर दिशा अग्रसर है,
नहीं प्रश्न निश्चित, समुत्तर इतर है,
बहे काल कल कल, रहे चित्त चंचल,
चले आ रहे हैं, विचारों के श्रृंखल,
चुने कौन समुचित, उहा में पड़े हैं,
जहाँ से चले थे, वहीं पर खड़े हैं।
संशय, विकल्पों, सतत उलझनों में,
अदृष्टा विनिर्मित घने जंगलों में,
ठिठकते हैं, रुकते हैं, क्रम तोड़ते हैं,
तनिक जोड़ लेते, तनिक छोड़ते हैं,
आगत समय, गत समय में विलीनन,
बहा जा रहा अनमना एक जीवन,
न रण छोड़ पाये, न रण में लड़े हैं,
जहाँ से चले थे, वहीं पर खड़े हैं।
उमड़ते थे सपने, रहे आज तक वे,
उभरते रहे नित, नहीं पर छलकते,
सतत आत्म प्रेरण अकारण नहीं है,
नहीं दीखता हल, निवारण नहीं है,
घुमड़ प्रश्न रह रह, नहीं किन्तु उत्तर,
सतत हूक उठती, मनन में निरन्तर,
तर्कों में घुटते, विषम हो पड़े हैं,
जहाँ से चले थे, वहीं पर खड़े हैं।
विशेषों के घेरे, नहीं शेष कुछ था,
सहस्रों स्वरों में, नहीं कोई चुप था,
सकल मर्म जाने, सकल अर्थ समझे,
रहे किन्तु फिर भी विरत आकलन से,
प्रज्ञा पुलकती, समझ तंतु विकसित,
जगतदृष्टि सारी, अहं से सकल सित,
नया पंथ, जाने की हठ में अड़े हैं,
जहाँ से चले थे, वहीं पर खड़े हैं।