मैंने कविता के शब्दों से व्यक्तित्वों को पढ़ कर समझा ।
छन्दों के तारतम्य, गति, लय से जीवन को गढ़ कर समझा ।
यदि दूर दूर रह कर चलती, शब्दों और भावों की भाषा,
यदि नहीं प्रभावी हो पाती जीवन में कविता की आशा ।
तो कविता मेरा हित करती या मैं कविता के हित का हूँ ?
जो दिखता हूँ, वह लिखता हूँ ।
सच नहीं बता पाती, झुठलाती, जब भी कविता डोली है,
शब्दों का बस आना जाना, बन बीती व्यर्थ ठिठोली है ।
फिर भी प्रयत्न रहता मेरा, मन मेरा शब्दों में उतरे,
जब भी कविता पढ़ूँ हृदय में भावों की आकृति उभरे ।
भाव सरल हों फिर भी बहुधा, शब्द-पाश में बँधता हूँ ।
जो दिखता हूँ, वह लिखता हूँ ।
यह हो सकता है कूद पड़ूँ, मैं चित्र बनाने पहले ही,
हों रंग नहीं, हों चित्र कठिन, हों आकृति कुछ कुछ धुंधली सी ।
फिर भी धीरे धीरे जितना सम्भव होता है, बढ़ता हूँ,
भाव परिष्कृत हो आते हैं, जब भी उनसे लड़ता हूँ ।
यदि कहीं भटकता राहों में, मैं समय रोक कर रुकता हूँ,
जो दिखता हूँ, वह लिखता हूँ ।
मन में जो भी तूफान उठे, भावों के व्यग्र उफान उठे,
पीड़ा को पीकर शब्दों ने ही साध लिये सब भाव कहे ।
ना कभी कृत्रिम मन-भाव मनोहारी कर पाया जीवित मैं,
जो दिखा लिखा निस्पृह होकर, कर नहीं सका कुछ सीमित मैं ।
अपनी शर्तों पर व्यक्त हुआ, अपनी शर्तों पर छिपता हूँ
जो दिखता हूँ, वह लिखता हूँ ।
अति सुन्दर शब्द भाव सम्प्रेषण!!
ReplyDeleteजी आभार आपका
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteजी, आभार आपका।
Deleteआपकी रचनात्मकता, भाषा पर पकड़, भावों की गहराई और विचारों की सुन्दरता प्रेरणा देती है। बहुत-बहुत प्रेम और शुभकामनाएं प्रिय प्रवीण 🙏💗⚘
ReplyDeleteशानदार
ReplyDeleteआभार आपका महेन्द्र।
Deleteआपकी रचनात्मकता, भाषा पर पकड़, भावों की गहराई और विचारों की सुन्दरता प्रेरणा देती है। बहुत-बहुत प्रेम और शुभकामनाएं प्रिय प्रवीण 🙏💗⚘- पंकज निगम
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका पंकज भैया।
Deleteबढ़िया
ReplyDeleteआभार आपका सरिताजी।
Deleteबहुत सुंदर भाव भरी रचना लिखी आपने। सच सबसे पहले जो दिखे वही लिखना चाहिए । फिर तो कल्पनाओं का खुला संसार है ही । सुंदर सरस बात ।
ReplyDeleteकितना कुछ छिपा है, कल्पना के संसार में।
Deleteवाह 🌹
ReplyDeleteआभार आपका।
Deleteबहुत सुंदर!!!
ReplyDeleteबहुत आभार आपका।
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