24.8.21

निर्णय के क्षण


दशरथ को जब पुनः चेतना आती है, कैकेयी राम को दो वरों के बारे में बता रही थी। हा! कितनी निर्दयी हो गयी है कैकेयी।


दशरथ स्वयं ही शान्त रहने का निर्णय ले चुके थे। अब जो भी होना है वह कैकेयी अथवा राम के निर्णय पर होना है। कैकेयी निर्लज्जता से अपना स्वार्थ व्यक्त किये जा रही है। अपने पुत्र से तो सबको प्रेम होता है इसलिये भरत को राज्य की बात तो समझी जा सकती थी पर राम को १४ वर्ष का वनवास दशरथ से न समझा जा रहा था और न ही सहा जा रहा था। 


क्या कैकेयी को राम से भय है? यदि राम यहाँ रहे तो कालान्तर में राम राज्य पर अधिकार का प्रयास करेंगे, क्या यह चिन्तन है कैकेयी का? कैकेयी की राजनीति मति दशरथ की समझ से परे थी। यदि भरत के लिये ही राज्य माँग लेती तो वह सदा के लिये हो जाता। राम यदि चौदह वर्ष बाद लौटे और राज्य पर अपना अधिकार जताया तब क्या स्थिति होगी? यह चौदह वर्ष क्या इसलिये माँगे हैं कि इतने वर्षों में भरत राज्य और सेना पर अपना नियन्त्रण स्थापित कर लेंगे। राम क्या जीवनपर्यन्त शक्तिहीन ही रहेंगे? कैकेयी की इस अतार्किक बुद्धि से हताश थे दशरथ।


क्या कैकेयी को नगरवासियों से भय है? राम सबके प्रिय हैं। राम बचपन से ही उदारमना रहे हैं, पहले अपने भ्राताओं के प्रति, महल के परिचारकों और परिचारिकाओं के प्रति और बड़े होने पर सारे नगरवासियों के प्रति। कल ही प्रबुद्ध नगरवासी बता रहे थे कि राम मिलने पर सबकी कुशलक्षेम पूछते हैं। यही नहीं उनके परिजनों और परिचितों के बारे में ज्ञान रखते हैं। जब से नगरवासियों को पता चला है कि राम युवराज बनने वाले हैं और राजकीय कार्यों में उनका दायित्व गुरुतर होगा, तब से नगर में उत्सव का वातावरण बना हुआ है। सब अपने सर्वश्रेष्ठ वस्त्र पहन कर राम के दर्शन को लालायित हैं। जब उनको पता चलेगा कि राम को वन भेजने का षड्यन्त्र चल रहा है, क्या प्रजा विद्रोह कर देगी?


क्या कैकेयी को भरत की क्षमताओं पर विश्वास नहीं है? भरत अपने ज्येष्ठ के समक्ष क्या शासन में समर्थ नहीं रह पायेंगे या राम के रहते वह सिंहासन पर बैठने से मना कर देंगे? भरत क्या राम के भय से निष्कंटक नहीं रह पायेंगे? भरत का राम के प्रति आदर और स्नेह कहाँ कहीं किसी से छिपा है। राम का भी तो प्रेम भरत के प्रति अप्रतिम है। कैकेयी को संभवतः इसी का भय मुख्य हो कि राम के अयोध्या में रहते भरत सहज नहीं रह पायेंगे।


जब तक दशरथ इन विकल्पों में उतरा रहे थे, कैकेयी अपना वक्तव्य दे चुकी थी, दोनों वर बड़े ही रुक्ष स्वर में व्यक्त कर चुकी थी। कैकेयी की आँखों में अब एक स्पष्ट सा प्रश्नवाचक चिन्ह था। राम का मुख शान्त और भावहीन था। जिन शब्दों ने पिता को असहनीय पीड़ा पहुँचायी है, उन शब्दों को वह अपने कानों से सुनना चाहते थे। पिता की पीड़ा समझ सकें, माँ का मन्तव्य समझ सकें, इसके लिये आवश्यक था वह सब शान्त भाव से सुनें।


सब सुनने के पश्चात राम समय लेते हैं। इसलिये नहीं कि वह दुखी है, इसलिये नहीं कि वह क्षुब्ध हैं। बिना किसी पर दृष्टि पहुँचाये वह कक्ष में उपस्थित सभी जनों के मुख की कल्पना कर सकते हैं। पिता शोकमग्न और आर्त मुख लिये, माँ प्रश्नवाचक और आन्दोलित मुख लिये, लक्ष्मण आग्नेय और उद्वेलित मुख लिये, सुमन्त हतप्रभ और वितृष्णा भाव लिये। सबके मन में अपने भाव गाढ़े हैं पर साथ में एक उत्सुकता और स्तब्धता है कि राम क्या कहेंगे? राम पर सबकी दृष्टि टिकी है। सबको साधने का क्रम कठिन है पर राम का उत्तर सबको संतुष्ट करने वाला होना चाहिये।


सब सुनने के पश्चात राम समय लेते हैं। वह अपने निर्णयों के विकल्पों पर विचार करते हैं। प्रत्येक विकल्प के क्या दूरगामी परिणाम होंगे उनके पक्षों पर सोचते हैं। अनवगत प्रिय भरत जो इस चक्र में पिसेगा, कोई भी निर्णय हो पिता दशरथ मन से रुग्ण हो जायेंगे, माँ कौशल्या का क्या होगा, लक्ष्मण क्या करेगा? सीता, उसकी तो कोई सोच भी नहीं रहा है? गुरु, प्रजा, कुल, नीति और स्वयं राम की एक छवि। धर्म का प्रायोगिक क्षण था यह। संस्कार, विद्या, सम्बन्ध, सबके निष्कर्षों की परीक्षा लेनी थी इस निर्णय को।  


सब सुनने के पश्चात राम समय लेते हैं। युवराज बनने के पहले ही उन पर निर्णय का महादायित्व आ गया था। यह निर्णय कोई लघु निर्णय नहीं था। पूरे राजपरिवार में संभावित उथलपुथल का अनुमान राम को हो गया था। एक महाअंधड़ उठ चुका था, रघुकुल की क्षति निश्चित दिख रही थी। राम को अपने निर्णय से यह सुनिश्चित करना है कि किस तरह यह क्षति न्यूनतम हो।


सब सुनने के पश्चात राम समय लेते हैं। राजा और पिता शान्त हैं, कुछ कहते नहीं। माँ कैकेयी की वाणी रुक्ष अवश्य थी पर वह आदेश नहीं दे रही थी। वह सशंकित सी राम के माध्यम से पिता दशरथ से अपने वरों की माँग कर रही थी। राम को यहीं निर्णय लेना था। गुरु या माँ कौशल्या से मंत्रणा का न अवसर था और न ही समय। 


सब सुनने के पश्चात राम समय लेते हैं। उस क्षण का पूरा भार राम के युवा हृदय में संघनित था। सबके व्यवहार ने अनायास ही राम को कितना वयस्क कर दिया था। राम के निर्णय की प्रतीक्षा कक्ष में उपस्थित सब कर रहे थे, राम के निर्णय पर प्रश्न सभी सम्बन्धी करने वाले हैं, राम के निर्णय की परीक्षा कल प्रजा करेगी, राम के निर्णय की समीक्षा आने वाली पीढियाँ करेंगी।


राम क्या निर्णय लेंगे? 

8 comments:

  1. रामायण के एक बहुत ही हृदय विदारक दृश्य का बहुत ही सूक्ष्म विश्लेषण किया है आपने, प्रवीण भाई।

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    1. आपका आभार ज्योति जी। यह प्रकरण सदा ही मुझे द्रवित करता आया है, लिखना स्वाभाविक था।

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  2. पौराणिक विषय पर सारगर्भित और समीक्षात्मक आलेख।सादर अभिवादन सर

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    1. बहुत आभार आपका। बहुत समय बाद आपके शब्द ब्लॉग पर पधारे हैं।

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  3. बहुत ही गहनता से किया गया अध्ययन और राम के चरित्र से आपका गहन जुड़ाव हर एक रचना और आपके हर आलेख को जीवंतता प्रदान करता है,सुंदर छाया चित्र प्रस्तुत किया है आपने ,मन हर्षित और पुलकित हो जाता है पढ़कर ।बहुत शुभकामनाएं आपको प्रवीण जी ।

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    1. राम का चरित्र जिसको न भिगो पाये उसे अपने जन्म की सार्थकता पर संशय होना चाहिये। बहुत आभार आपका जिज्ञासाजी।

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  4. हृदय विदारक आलेख!!

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    1. जी, वह क्षण कितना संघनित होगा। आभार आपका।

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