व्यक्त कर उद्गार मन के,
क्यों खड़ा है मूक बन के ।
व्यथा के आगार हों जब,
सुखों के आलाप क्यों तब,
नहीं जीवन की मधुरता को विकट विषधर बना ले ।
व्यक्त कर उद्गार मन के ।।१।।
चलो कुछ पल चल सको पर,
घिसटना तुम नहीं पल भर,
समय की स्पष्ट थापों को अमिट दर्शन बना ले ।
व्यक्त कर उद्गार मन के ।।२।।
तोड़ दे तू बन्धनों को,
छोड़ दे आश्रित क्षणों को,
खींचने से टूटते हैं तार, उनको टूटने दे ।
व्यक्त कर उद्गार मन के ।।३।।
यहाँ दुविधा जी रही है,
व्यर्थ की ऊष्मा भरी है,
अगर अन्तः चाहता है, उसे खुल कर चीखने दे ।
व्यक्त कर उद्गार मन के ।।४।।
Ati uttam
ReplyDeleteआभार आपका रंजन जी।
Deleteअवसाद से मुक्ति का यही उपाय है।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
आभार आपका।
Deleteमन के उद्गार व्यक्त होने ही चाहिए!! सुन्दर रचना
ReplyDeleteव्यक्त करना ही श्रेयस्कर है। आभार आपका।
Deleteअत्यंत प्रेरणादायक रचना.. प्रणाम सर 🙏
ReplyDeleteआभार आपका नीरजजी।
Deleteप्रेरणादायक
ReplyDeleteआभार आपका
Deleteबहुत सुंदर रचना,मन के उदृगार व्यक्त करे और खुल कर
ReplyDeleteजीये, सुंदर संदेश दिये हैं
जी सच कहा आपने। यही जीने का सफल उपाय है। आभार आपका।
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ReplyDeleteतोड़ दे तू बन्धनों को,
छोड़ दे आश्रित क्षणों को,
खींचने से टूटते हैं तार, उनको टूटने दे ।
व्यक्त कर उद्गार मन के ।।३।। बहुत सुंदर सकारात्मक और प्रेरणा देती रचना ।
आपका अतिशय आभार।
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