जो लोग ब्लाग लिखते हैं और उसमें रुचि लेते हैं, वे टिप्पणियों के महत्व को भी समझते हैं। उत्साह बढ़ाने में, सृजनात्मकता बनाये रखने में टिप्पणियाँ अमृत सा कार्य करती हैं। यह इस विधा का ही वैशिष्ट्य है कि पाठकों को लेखक से संवाद का अवसर मिलता है।
जब लगभग एक पृष्ठ पर आपने कोई विषय, घटना या कविता रखी हो तो यह स्वाभाविक ही है कि उस पर कहने को बहुत कुछ होगा। कई पक्ष छूटे होंगे, कई पर असहमति होगी, कई पर दृष्टिकोण भिन्न होंगे, कई पर आत्मिक अनुभव भी होंगे। ब्लाग का प्रारूप इन सब पर प्रतिक्रियाओं का अवसर देता है। ब्लाग में संवाद का जो स्वरूप पल्लवित होता है वह बहुधा मूल से कहीं अधिक रोचक और पठनीय होता है।
एक सिंहावलोकन करता हूँ तो लगता है कि यदि पाठक अपना योगदान टिप्पणियों में न देते तो संभवतः ब्लाग का स्तर अतिसामान्य ही रह गया होता।
जब २००९ में ब्लाग से जुड़ा, उस समय पढ़ना और विषय से सम्बद्ध टिप्पणी करना अच्छा लगता था। यह क्रम कुछ माह चला होगा। यद्यपि हिन्दी में गतिमय टाइप कर पाना अपने आप में संघर्ष था पर ब्लाग जगत का एक सामूहिक महाप्रयत्न रहा कि सबने उस बाधा को पार किया। जिनको तनिक भी तकनीक की सहजता थी उन्होंने सबकी सहायता की। दो तीन वर्ष का वह काल टाइप करने की विधियों का संक्रमणकाल कहा जायेगा। अभी तो फिर भी एक स्थायित्व आ गया है। उसके तकनीकी और व्यवहारिक पक्ष पर विस्तृत चर्चा फिर कभी।
उस समय ब्लाग बहुत अधिक नहीं थे और समय मिल जाता था कि सबको पढ़ सकें। सबको पढ़ना अपने आप में एक संतोष देता था और लगभग सभी पढ़े ब्लागों पर टिप्पणी हो ही जाती थी। लगभग सौ ब्लागों को पढ़ने के क्रम में एक दिन में तीस टिप्पणियाँ तक हो ही जाती थीं। लगभग सब यही करते थे, सब सबका उत्साह बढ़ाते थे। एक अद्भुत सी ऊर्जा व्यापी थी उस समय ब्लागजगत में। किसी ब्लाग पर की हुयी टिप्पणी को भी सहेज कर रखने के क्रम में असम्बद्ध रूप में विचारों के न जाने कितनी लड़ियाँ रखे बैठे हैं हम। कभी समय मिला तो उनको भी ब्लाग का आकार दिया जायेगा।
एक बार लय आने पर पाठक टिप्पणियों से अपने मन की कहने लगे और ब्लाग व्यापकता पाने लगे। अभी तो उतनी लम्बी टिप्पणी नहीं लिख पाता हूँ पर प्रारम्भिक काल में टिप्पणी बहुधा पर्याप्त लम्बी हो जाती थीं, बड़ी विस्तृत हो जाती थीं। यह देख कर ज्ञानदत्तजी ने कहा कि इस तरह की तीन चार टिप्पणियाँ जोड़कर, संदर्भ, उपसंहार बताकर या एक प्रश्न उठाकर ब्लागपोस्ट बनायी जा सकती है। केवल उत्साहित ही नहीं, उन्होंने आमंत्रित भी किया अपने ब्लाग मानसिक हलचल पर सप्ताह में एक अतिथि पोस्ट लिखने के लिये।
सितम्बर २००९ को पहली पोस्ट लिखी ‘गाय’। पहली पोस्ट का आनन्द व्यक्त नहीं किया जा सकता था। पोस्ट का विषय गायों की मार्मिक स्थिति पर था कि किस प्रकार हम गायों का दूध महत्वपूर्ण तो मानते हैं पर गायों को नहीं। पता नहीं पर इस विषय की गम्भीरता में सृजन के आनन्द की रेख चमक जाती थी। एक विचित्र सी स्थिति थी मन की। यह एक शोध का विषय हो सकता है कि एक पीड़ाजनित विषय पर किये सृजन की संतुष्टि और प्रशंसा का आनन्द क्या विषयगत पीड़ा से अधिक हो सकता है? या तीनों ही साथ साथ रह सकते हैं? जब कविता या लेख पढ़ें तो मन दुखी हो, उसके बाद यह ध्यान आते ही कि यह आपके द्वारा रचित है तब एक संतुष्टि का भाव और जब उसी पर किसी पाठक की टिप्पणी के रूप में प्रशंसा मिले तो आत्मिक आनन्द। औरों की तो कह नहीं सकता पर मेरे लिये नीरवता के परिवेश में तीनों भाव एक साथ रह सकते हैं।
ज्ञानदत्तजी का ब्लाग अत्यन्त पठित और चर्चित था अतः मेरी पोस्ट भी उसी उत्साह से पढ़ी गयी। आशीर्वादात्मक टिप्पणियाँ आयीं जिन्होनें ब्लागजगत में मेरा स्वागत किया पर मुख्यतः टिप्पणियाँ गायों की उस दयनीय दशा पर आयीं जिसे विषय में वर्णित किया गया था। कुछ ने अपने अनुभव लिखे, कुछ ने समाधान बताये, कुछ ने धर्म को अधिक उत्तरदायी ठहराया, कुछ ने समाज को कोसा। संवाद के जिस स्तर पर सामान्य से विषय को पहुँचना था, ब्लाग और टिप्पणियों के माध्यम से वह वहाँ पहुँच सका। यदि टिप्पणियों में ढूढ़ेगें तो आपको ब्लागजगत के सारे आधारभूत और चर्चित नाम मिल जायेंगें। न केवल वे स्वयं ही बहुत अच्छा लिखते थे अपितु औरों के लिखे को भी संवाद की स्थिति तक पहुँचाते थे।
ब्लाग की प्रारम्भिक स्थिति प्रतिस्पर्धात्मक नहीं थी। जब पाठक बहुत हों, विषय पर्याप्त हों, टिप्पणियों के माध्यम से संवाद सतत हो, तो प्रतिस्पर्धा कैसी? ब्लागजगत एक खुला विस्तृत नभ था जिसके नीचे सबको आश्रय मिला था। सबकी अपनी विशेषसिद्धता थी, सभी महारथी थे। एक नयी विधा के क्षेत्र में वही आया था जिसकी पठन पाठन में रुचि थी, अभिव्यक्ति के लिये जिसके शब्द उत्कण्ठित थे पर पारम्परिक विधाओं को वे इसके लिये अपर्याप्त मानते थे।
यद्यपि टिप्पणियों का अपना महत्व था। उत्साह, विषय विस्तार और संवाद, तीनों ही इसके माध्यम से बल पाते थे। कुछ समय पश्चात टिप्पणियों की संख्या एक अनकही प्रतिस्पर्धा के प्रतीक रूप में स्थान पाने लगी। ब्लाग बढ़ने लगे और सब पढ़ पाना संभव नहीं हुआ तो टिप्पणियों का पारस्परिक आदान प्रदान प्रारम्भ हुआ। अधिक ब्लाग पढ़ने के प्रयास में और की गयी टिप्पणियों की अधिक संख्या होने से उनकी गुणवत्ता प्रभावित होने लगी। कालान्तर में कई स्थानों पर टिप्पणी उपस्थिति दर्शाने का माध्यम सा बन गयी। अपने इस अर्थोपकर्ष में भले ही टिप्पणी अपना व्यापक पूर्वप्रभाव न लिये हो पर संवाद का माध्यम अवश्य है। आशा है कि सोशल मीडिया के कई नवमाध्यमों के बीच भविष्य में ब्लाग अपना स्थान पुनः पायेगा और वह भी टिप्पणीतन्त्र के प्रभावी होने से।
बहुत बढ़िया और शानदार पोस्ट,ब्लॉग को लेकर जितनी भी बातें जेहन में आती हैं,उनका बहुत बारीकी से विश्लेषण किया आपने ,मुझे तो ब्लॉग का बहुत ज्यादा अनुभव नहीं पर विचार कुछ ऐसे ही बनते हैं ।
ReplyDeleteबस स्मृतियों में वे पुराने दिन उमड़ आये। जो विषय उस समय महत्वपूर्ण होते थे और जिस प्रकार यात्रा आगे बढ़ी। आभार आपका जिज्ञासाजी।
Deleteसचमुच .... ब्लॉग्गिंग का वह सुखद विमर्श वाल दौर देखा-जीया है | खूब पढ़ा, नियमित लिखा और टिप्पणियाँ भी कीं | कितना कुछ जाना-समझा | यकीनन -- पाठक अपना योगदान टिप्पणियों में न देते तो संभवतः ब्लाग का स्तर अतिसामान्य ही रह गया होता।
ReplyDeleteजी, सच है। आपका ब्लाग देख रहा था, अब आप मुख्यतः समाचारपत्र के लिये लिखने लगीं हैं। चैतन्य कैसे हैं?
DeleteReliving the memories of good old days .इसी बहाने आपकी पहली पोस्ट पढ़ी जो पहली बार आज पढ़ी ।
ReplyDeleteसच कहा आपने। वे दिन अपरिमित उत्साह से भरे थे।
Deleteउस समय की हर बात याद दिला दी । रोज़ ही कितना पढ़ते थे और टिप्पणी द्वारा संवाद भी कायम होता था । टिप्पणियाँ हमेशा ही ऊर्जा प्रदान करती हैं । ब्लॉग वाणी में टिप्पणियों की गिनती के कारण ही किसी की पोस्ट टॉप 10 में पहुँचती थी । इसी लिए उस समय अपने ब्लॉग पर आई टिप्पणियों पर आभार व्यक्त करने की मनाही थी । आभार व्यक्त करने का एक तरीका यही था कि जिसने आपके ब्लॉग पर टिप्पणी करी है तो उसके ब्लॉग पर जा कर आप भी पढ़ें और टिप्पणी करें । इस प्रक्रिया को बाद में लोगों ने लेन देन की प्रक्रिया मान लिया । इस पर भी खूब चर्चा होती थी ।
ReplyDeleteसटीक विश्लेषण किया है ।
जी आभार आपका। सब रोचकता स्पष्ट याद है।
Deleteब्लॉगवाणी चिट्ठाचर्चा के असमय बन्द होने पर ब्लॉग पर असर पड़ा।
ReplyDeleteजी सच कहा आपने। संकलक का न होना, ब्लाग के उछाह को कम कर गया।
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