मुझ पापी को ज्ञान नहीं है,
सत्कर्मों का भान नहीं है ।
प्रायश्चित का अवसर देना,
माया का श्मशान न देना ।।१।।
धन की अन्तिम बूँद छीन लो,
वंचित सुख से करो दीन को ।
या काँटों पर दे दो सोना,
पर ईश्वर अभिमान न देना ।।२।।
मुझमें किञ्चित भक्ति नहीं थी,
तुझ पर भी आसक्ति नहीं थी ।
निज भक्ति की राह दिखाना,
भौतिक सुख की छाँह न देना ।।३।।
जब तक तेरे सेवक के
सेवक का सेवक तृप्त नहीं हो,
तब तक मुझको सेवा में
उनकी पल भर विश्राम न देना ।।४।।
एक अच्छी और सार्थक प्रार्थना ZRTI/GCT के लिये। लिखिए। वहां पर "इतनी शक्ति मुझे देना दाता...... ही चल रहा है।।
ReplyDeleteZRTI/TPJ में जो अंग्रेजी में है यदि उसका हिंदी में अनुवाद हो जाये तो अति उत्तम होता।
ZRTI/TPJ की प्रार्थना उपलब्ध करा सकते हैं?
Deleteसुन्दर प्रार्थना
ReplyDeleteजी आभार आपका।
Deleteबहुत सुन्दर प्रार्थना . 🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteजी आभार आपका।
Deleteन जानामि योगं जपं नैव पूजां। नतोऽहं सदा सर्वदा शंभु तुभ्यं॥
ReplyDeleteअद्भूत।साधू साधू
कदा निलिंप निर्झरी निकुंज कोटरे वसन विमुक्त दुर्मतिः सदा शिरः स्थमंजलि वहन,
🙏🙏
सेवा के उच्च स्तर पर ऐसी विचारधारा को नमन🙏
न जानामि योगं जपं नैव पूजां। नतोऽहं सदा सर्वदा शंभु तुभ्यं॥
ReplyDeleteअद्भूत।साधू साधू
कदा निलिंप निर्झरी निकुंज कोटरे वसन विमुक्त दुर्मतिः सदा शिरः स्थमंजलि वहन,
🙏🙏
सेवा के उच्च स्तर पर ऐसी विचारधारा को नमन🙏
आभार आपका उमेशजी।
Deleteबहुत ही सुंदर प्रार्थना, प्रवीण भाई।
ReplyDeleteआभार आपका ज्योतिजी।
Deleteवाह...
ReplyDeleteलाज़वाब👌
आभार आपका।
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ReplyDeleteमुझमें किञ्चित भक्ति नहीं थी,
तुझ पर भी आसक्ति नहीं थी ।
निज भक्ति की राह दिखाना,
भौतिक सुख की छाँह न देना ।।३ ये भौतिक सुख की चाहत ही न जाने क्या क्या करवाती है। ईश्वर आपकी तथा सबकी प्रार्थना सुने,यही प्रार्थना है।
बहुत आभार आपका। कभी कभी सुख की चाह क्या नहीं करवा जाती है।
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