31.7.21

लोभी रेवड़ी बाँट रहे हैं


जन-कुबेर-धन के रक्षक बन, जगह जगह बन्दर बैठे हैं ।

अनुशासन का पाठ पढ़ाते, उत्श्रंखल शासन करते हैं ।

बँटा हुआ निश्चित ही भारत, समुचित इन राजाओं में ।

धैर्य धरो, ऐसी आहुतियाँ, डालें जन-आशाओं में ।

पेट पाप से पूर्ण भरा है, मुँह से विद्या बाँच रहे हैं ।

लोभी रेवड़ी बाँट रहे हैं ।।१।।

 

कागज पर जितनी रेखायें, खिंचती जन-उत्थानों की ।

उतनी भूख स्वतः बढ़ जाती, मैकाले-सन्तानों की ।

निर्देशों की गंगा बहती, मरुथल सी धनहीन धरा ।

धन-धारा ने निश्चय कितने खेतों को परिपूर्ण भरा ।

लघु-कुबेर का आसन खाली, अर्थ-नियन्ता भाग रहे हैं ।

लोभी रेवड़ी बाँट रहे हैं ।।२।।

 

वही हमारे मार्ग-नियामक, जीवन-सृष्टा, पंथ-प्रकाशक ।

वही दया के उज्जवल तारा, गुणवत्ता के स्थिर मानक ।

वही समस्या जान सके हैं, समाधान भी वे देंगे ।

कलुष-पंक में डूबे मानव-जीवन को भी तर देंगे ।

पद की गरिमा सतत बढ़ाते, ईश्वर खुद को आँक रहे हैं ।

लोभी रेवड़ी बाँट रहे हैं ।।३।।

 

पीड़ा का कारण खोजा है, जब से अनुसन्धान किये ।

वर्णन कर डाला साधन का, बड़े-बड़े व्याख्यान दिये ।

भूख, गरीबी, रोजगार को पाँच साल में बाँध दिया ।

गुणा-भाग सारे कर डाले, नहीं किन्तु कुछ काम किया ।

पथ-भ्रष्टों की सेना सम्मुख, पथ दृष्टा बन हाँक रहे हैं ।

लोभी रेवड़ी बाँट रहे हैं ।।४।।

चित्र साभार - https://economictimes.indiatimes.com/



12 comments:

  1. अंधा बांटे रेवड़ी
    घरे घराना खाय
    सुन्दर काव्यात्मक विष्लेषण🙏

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  2. बहुत बढ़िया-बढ़िया कावायात्मक तंज कसे हैं प्रणीन जी। आपकी आवाज भी दमदार है। बधाई आपको। सादर।

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    1. जी बहुत आभार आपका वीरेन्द्रजी। मन के भाव बस निकले हैं।

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  3. गुणा-भाग सारे कर डाले, नहीं किन्तु कुछ काम किया ।

    पथ-भ्रष्टों की सेना सम्मुख, पथ दृष्टा बन हाँक रहे हैं ।

    लोभी रेवड़ी बाँट रहे हैं - सत्य वचन

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    1. जी आभार आपका समीरलालजी। आप तो सच में सबके पथप्रदर्शक रहे हैं।

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  4. वही समस्या जान सके हैं, समाधान भी वे देंगे ।

    कलुष-पंक में डूबे मानव-जीवन को भी तर देंगे ।

    पद की गरिमा सतत बढ़ाते, ईश्वर खुद को आँक रहे हैं
    दृढ़ मन रास्ता ढूंढ ही लेता है |

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  5. बहुत ही धारदार और व्यवस्था पर कटाक्ष करती, दशकों की सच्चाई बयां करती सार्थक अभिव्यक्ति, शीर्षक भी लाजवाब। काव्यपाठ भी बहुत बढ़िया।

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    1. जी आभार आपका जिज्ञासाजी।

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  6. बेहतरीन अभिव्यक्ति

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