22.7.21

भीष्म के प्रश्न

 

महाभारत के पात्रों में संभवतः भीष्म का चरित्र सर्वाधिक जटिल रहा होगा। जिस तरह की घटनायें उनकी चार पीढ़ियों लम्बे और पूरे जीवन काल में आयीं, उतना वैविध्य और वैचित्र्य कहीं और देखने को नहीं मिलेगा। वैसे तो महाभारत का पूरा कथाखण्ड अत्यधिक रोचक और प्रवाहपूर्ण है, पर उस पर भी शिलाखण्ड से खड़े और सब देख रहे भीष्म विशिष्ट हो जाते हैं।


हमारा जीवन यदि सामान्य भी हो, तो भी कई ऐसे प्रश्न रहते हैं जिनका उत्तर हमें जीवन भर कचोटता है। स्वाभाविक है कि भीष्म के इतने दीर्घजीवन में भी प्रश्न होंगे जिनके उत्तर उन्होंने स्वयं ही ढूढ़े होंगे और उन पर लिये निर्णयों पर मनन किया भी होगा। फिर भीष्म से प्रश्न क्यों?


महाभारत के जानकारों का भीष्म से सबसे बड़ा प्रश्न यह रहता है कि यदि वह ठान लेते तो महाभारत टाला जा सकता था।


गुरुचरणदास की पुस्तक “डिफिकल्टी आफ बीइंग गुड” में पढ़ा था कि महाभारत के तीन कारण हैं। शान्तनु का काम, दुर्योधन की ईर्ष्या और द्रौपदी का क्रोध। शान्तनु का काम भीष्म-प्रतिज्ञा का कारण बना। दुर्योधन की ईर्ष्या पाण्डवों को पाँच गाँव भी न दे सकी। द्रौपदी का क्रोध विनाश पत्र के ऊपर अन्तिम हस्ताक्षर था।


यदि ऐसा था तो सारे प्रश्न भीष्म से क्यों? मेरा फिर भी यह मानना है कि भीष्म युद्ध रोक सकते थे।


आठ वसुओं में बड़े, पत्नियों के मनोविनोद में वशिष्ठ की गाय नन्दिनी की चोरी, मनुष्य योनि में जन्म लेने के लिये वशिष्ठ का श्राप, अनुनय विनय और पश्चाताप, शेष सात को शीघ्र ही मुक्ति पर भीष्म को पूर्ण जीवन के भोग का आदेश। इस पूर्वकथा के बाद प्रारम्भ हुआ शेष महाभारत और भीष्म का वृत्तान्त। माँ गंगा ७ पूर्वपुत्रों को जन्म लेते ही गंगा में प्रवाहित कर मुक्त कर देती है। आठवें में शान्तनु से रहा नहीं जाता, भीष्म बच जाते हैं पर माँ चली जाती है।


एक दुर्धर्ष योद्धा और धर्म के विशेषज्ञ के रूप भीष्म बड़े होते हैं। सारे राज्य को यह आस रहती है कि अगले महाराज अपने प्रताप से राज्य विस्तारित करेंगे और धर्मध्वजा फहरायेंगे। यहाँ तक की यात्रा को यदि प्रारब्ध मान लें तो इसके बाद प्रारम्भ होती है भीष्म की निर्णय यात्रा। प्रश्न इस पर उठते हैं। अधिक चर्चा न कर बस प्रश्न लक्षित करूँगा।


  1. पिता शान्तनु का विवाह नियत करने भीष्म सत्यवती के यहाँ जाते हैं। सत्यवती के पिता की आशंका के लिये पहले राज्य न लेने का प्रण लिया और आगामी पीढ़ी में कोई संघर्ष न हो, इसके लिये विवाह न करने की भीष्म प्रतिज्ञा भी ले डाली। भला कौन पिता अपने समर्थवान पुत्र से अपने काम के लिये इस प्रकार के त्याग की अपेक्षा करता है? पूर्व में दशरथ मात्र ऐसे पिता हुये जिनके ऊपर अयोध्यावासी, लक्ष्मण और एक स्थान पर राम द्वारा भी यह आक्षेप लगा कि उन्होंने अपने काम के लिये अपने सर्वसमर्थ, आज्ञाकारी और योग्य पुत्र की तिलांजलि दे दी।
  2. अपने सौतेले भाईयों के विवाह के लिये काशी नरेश की तीन पुत्रियों का अपहरण किया जबकि अम्बा ने कह दिया था कि वह शाल्व को पति मान चुकी है। अपना जीवन त्याग कर वही अगले जन्म में शिखण्डी बनी और भीष्म की पराजय और मृत्यु का कारण भी।
  3. जब विचित्रवीर्य सन्तान उत्पन्न न कर सके तो नियोग के लिये सबसे पहले भीष्म को कहा गया। तब भी भीष्म ने मना कर दिया। अन्ततः माँ सत्यवती ने अपनी पूर्वप्रसंग से उत्पन्न पराशर के पुत्र वेदव्यास को इस कार्य के लिये आदेशित किया। कुरूप और कृष्ण वर्ण के व्यास के सामने एक रानी अपनी आँख भी न खोल सकी और अंधे पुत्र धृतराष्ट्र को जन्म देती है। दूसरी भय से पीली पड़ जाती है और नपुंसक पुत्र पांडु की माँ बनती है।
  4. धृतराष्ट्र के लिये गांधारी का चयन किया पर उसे पति के अंधेपन के तथ्य से अनिभिज्ञ रखा। जिससे विक्षुब्ध हो उसने जीवन भर के लिये अपनी आँखों पर पट्टी बाँध ली। नपुंसकता के तथ्य को जानते हुये भी पांडु से कुंती और माद्री का विवाह कराया। पांडव तो नियोग से उत्पन्न हो गये पर पांडु के प्राण माद्री के कारण चले गये।
  5. द्रौपदी के चीरहरण के समय शान्त रहे। विदुर के द्वारा कठोर स्वर उठाने के बाद भी धर्म के बारे में कोई भीरु सा ज्ञान उड़ेल कर सर झुकाये बैठे रहे। क्या उस समय भीष्म की एक हुंकार सारा दुष्कृत्य रोक न देती?
  6. महाभारत होने दिया। कृष्ण के पाँच गाँव के प्रस्ताव पर भी दुर्योधन की हठधर्मिता को सहन कर लिया। न्याय, धर्म और नीति के किस पड़ले पर यह प्रस्ताव अनुचित था?
  7. प्रथम सेनापति बन गये। यद्यपि दुर्योधन कर्ण को सेनापति बनाना चाहता था पर वृद्ध होने के कारण इनसे पूछने गया। वय ९० के ऊपर होने पर भी अपने पौत्रों से युद्ध को तत्पर हो गये। चाहते तो अपने आप को निवृत्त भी कर सकते थे।
  8. अपने प्रिय पाण्डवों से लड़े पर अर्धमना हो। दुर्योधन सदा ही यह कह कर उकसाता रहा कि आप अर्जुन को अधिक चाहते हैं। अर्जुन भी अपने पितामह पर प्रहार न कर सका। दस दिन तक युद्ध खिंचा। भीष्म और अर्जुन, दोनों ही ने अपना क्रोध और क्षोभ शेष शत्रु सेना पर निकाला।
  9. महाभारत के कई पात्र समय आने पर मुख्य मंच से निकल कर नेपथ्य पर चले गये पर भीष्म टिके रहे। अपनी प्रतिज्ञा का दंश झेलते रहे, अपने प्रथम निर्णय का भार उठाये जीते रहे।


यद्यपि मूल महाभारत नहीं पढ़ी है पर नरेन्द्र कोहली की श्रृंखला और अन्य लेखकों के कई पात्रों पर लिखी हुयी पुस्तकें पढ़ी हैं। भीष्म को मानवीय दृष्टिकोण से समझना दुरूह है। पता नहीं कौन सा लौह भरा था उस हृदय में? भीष्म कुरुवृद्ध थे और एक परिवार में एक वृद्ध की इच्छा रहती है कि सब मिल जुल कर रहें। अन्य वृद्ध तो विवशता में या संतानों के हठ में निराश हो जाते हैं पर भीष्म में कौन सी विवशता और कौन सा नैराश्य?


आजकल समाज के वृद्ध तो समाज जोड़ने के स्थान पर स्वार्थ के लिये समाज को तोड़ने में तत्पर हैं। अंग्रेजों से हम कुछ सीखे न सीखे, यह घृणित और कुटिल चाल अवश्य सीख चुके है। पर भीष्म तो कुल का, समाज का, राज्य का, धर्म का, सबका ही हित चाहते थे, तब उनके सामने कौन सी विवशता थी जिसने महाभारत सा सर्वविनाशक युद्ध हो जाने दिया?


प्रश्न अनुत्तरित हैं।




15 comments:

  1. कभी कभी महाभारत एक उपन्यास भर लगता है।


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    1. एक अच्छी कहानी मात्र कल्पना से नहीं आ सकती, उसमें किसी सत्य घटना के अंश होते हैं। थोड़ा बहुत जोड़ना घटाना तो वर्तमान घटनाओं में भी हो जाता है। जो भी हो पर महाभारत है बड़ा रोचक।

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  2. गहन विषय पर लिखा !आपके अध्ययन का हम लाभ ले रहे !!

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  3. सुंदर शानदार तथा सारगर्भित लेखन।धीरे धीरे हम ऐसे विषयों पर रुचिकर ज्ञान ले रहे हैं और आनंदित हो रहे हैं,आपको बहुत शुभकामनाएं।

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    1. जी बहुत आभार आपका। महाभारत की घटनायें हैं ही बड़ी रोचक।

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  4. प्रवीण भाई, भीष्म का चरित्र इतना विराट है कि उसे समझना बहुत ही दुष्कर कार्य है। आपने जो सवाल उठाए है, उनके जबाब तो स्वयं भीष्म ही दे सकते थे।

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    1. प्रश्न उठने स्वाभाविक हैं। मौन रहने पर अधिक प्रश्न उठते हैं। आभार आपका ज्योतिजी।

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  5. भीष्म से यह प्रश्न अपेक्षित हैं । हम लोग तो बस सोच ही सकते हैं । मन को उद्वेलित करती पोस्ट

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    1. जी आभार संगीता जी। एक नहीं कई प्रश्न थे भीष्म से।

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  6. फेसबुक से..

    Madan Mohan Prasad
    तुलसी जस भवितव्यता तैसी मिलई सहाय। यह नियति का गेम था और इसे होना था।भीष्म कैसे नही चाहते।काल-चक्र क्या यही कहाता , भावी नियति है।क्या इन सबके कूर्र चाल का कोई धटक नही है? (गुरू भक्त सिंह) ।जी सर ।

    Murali K
    Sir Mahabharata is not about Pandavas killing Kauravas.
    It is about Killing of Hatred, jealousy, ego, selfishness, lust,greed and anger which dwells in each and every human being.
    Mahabharata was just a plot hatched by lord Vishnu and taking reincarnation as lord Krishna to teach future generation about the results of lust,greed and anger.
    Even Abhimanyu killing was the mind of Lord Krishna.
    Since Abhimanyu did something wrong in previous birth.

    Sudhir Khattri
    सर गांधारी भी ,उसको आखो पर पट्टी बांधने की जगह धरतराष्ट के नेत्र बन सन्मार्ग बनना था

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  7. क्या कभी हम जान पाये कि किस हेतु हम निज कर्म को करते रहते हैं जीवन पर्यन्त ? यदि कोई अन्य हमसे ही प्रश्न करे कि क्यों तो क्या हमारे पास यथोचित उत्तर है ?

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    1. यदि निर्णय सोच समझकर लिये जायें तो कदाचित उत्तर रहते हैं हमारे पास। भीष्म को उनकी प्रतिज्ञा ने बाँध दिया। आभार आपका।

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  8. गहन भाव समेटे बेहतरीन लेख।

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