सभी खिलौने चुप रहते हैं, भोभो भी बैठा है गुमसुम ।
बस सूनापन छाया घर में, याद बहुत ही आते पृथु तुम ।।
पौ फटने की आहट पाकर, रात्रि स्वप्न से पूर्ण बिताकर,
चिड़ियों की चीं चीं सुनते ही, अलसाये कुनमुन जगते ही,
आँखे खुलती और उतरकर, तुरत रसोई जाते पृथु तुम ।
याद बहुत ही आते पृथु तुम ।।१।।
जल्दी है बाहर जाने की, प्रात, मनोहर छवि पाने की,
पहुँचे, विद्यालय पहुँचाने, बस बैठाकर, मित्र पुराने,
कॉलोनी की लम्बी सड़कें, रोज सुबह ही नापे पृथु तुम ।
याद बहुत ही आते पृथु तुम ।।२।।
ज्ञात तुम्हे अपने सब रस्ते, पथ बतलाते, आगे बढ़ते,
रुक, धरती पर दृष्टि टिकी है, कुछ आवश्यक वस्तु दिखी है,
गोल गोल, चिकने पत्थर भर, संग्रह सतत बढ़ाते पृथु तुम ।
याद बहुत ही आते पृथु तुम ।।३।।
धूप खिले तब वापस आना, ऑन्टी-घर बिस्कुट पा जाना,
सारे घर में दौड़ लगाकर, यदि मौका तो मिट्टी खाकर,
मन स्वतन्त्र, मालिश करवाते, छप छप खेल, नहाते पृथु तुम ।
याद बहुत ही आते पृथु तुम ।।४।।
तुम खाली पृथु व्यस्त सभी हैं, पर तुम पर ही दृष्टि टिकी हैं,
शैतानी, माँ त्रस्त हुयी जब, कैद स्वरूप चढ़ा खिड़की पर,
खिड़की चढ़, जाने वालों को, कूकी जोर, बुलाते पृथु तुम ।
याद बहुत ही आते पृथु तुम ।।५।।
और नहा पापा जब निकले, बैठे पृथु, साधक पूजा में,
लेकर आये स्वयं बिछौना, दीप जलाकर ता ता करना,
पापा संग सारी आरतियाँ, कूका कहकर गाते पृथु तुम ।
याद बहुत ही आते पृथु तुम ।।६।।
यदि घंटी, पृथु दरवाजे पर, दूध लिया, माँ तक पहुँचाकर,
हैं सतर्क, कुछ घट न जाये, घर से न कोई जाने पाये,
घर में कोई, पहने चप्पल, अपनी भी ले आते पृथु तुम ।
याद बहुत ही आते पृथु तुम ।।७।।
दे थोड़ा विश्राम देह को, उठ जाते फिर से तत्पर हो,
आकर्षक यदि कुछ दिख जाये, बक्सा, कुर्सी, बुद्धि लगाये,
चढ़ सयत्न यदि फोन मिले तो, कान लगा बतियाते पृथु तुम ।
याद बहुत ही आते पृथु तुम ।।८।।
सहज वृत्ति सब छू लेने की, लेकर मुख में चख लेने की,
कहीं ताप तुम पर न आये, बलपूर्वक यदि रोका जाये,
मना करें, पर आँख बचाकर, वहाँ पहुँच ही जाते पृथु तुम ।
याद बहुत ही आते पृथु तुम ।।९।।
सबसे पहले तुमको अर्पित, टहल टहल खाना खाओ नित,
देखी फिर थाली भोजनमय, चढ़कर माँ की गोदी तन्मय,
पेट भरा, पर हर थाली पर, नित अधिकार जमाते पृथु तुम ।
याद बहुत ही आते पृथु तुम ।।१०।।
मन में कहीं थकान नहीं है, दूर दूर तक नाम नहीं है,
पट खोलो और अन्दर, बाहर, चढ़ बिस्तर पर, कभी उतरकर,
खेल करो, माँ को प्रयत्न से, बिस्तर से धकियाते पृथु तुम ।
याद बहुत ही आते पृथु तुम ।।११।।
इच्छा मन, विश्राम करे माँ, खटका कुछ, हो तुरत दौड़ना,
खिड़की से कुछ फेंका बाहर, बोल दिया माँ ने डपटाकर,
बाओ कहकर सब लोगों पर, कोमल क्रोध दिखाते पृथु तुम ।
याद बहुत ही आते पृथु तुम ।।१२।।
यदि जागो, संग सब जगते हैं, देख रहे, पृथु को तकते हैं,
पर मन में अह्लाद उमड़ता, हृद में प्रेम पूर्ण हो चढ़ता,
टीवी चलता, घूम घूमकर, मोहक नृत्य दिखाते पृथु तुम ।
याद बहुत ही आते पृथु तुम ।।१३।।
ऊपर से नीचे अंगों की, ज्ञान परीक्षा होती जब भी,
प्रश्न, तुरत ही उत्तर देकर, सम्मोहित कर देते हो पर,
जब आँखों की बारी आती, आँख बहुत झपकाते पृथु तुम ।
याद बहुत ही आते पृथु तुम ।।१४।।
शाम हुयी, फिर बाहर जाना, डूबे सूरज, आँख मिलाना,
देखेंगे चहुँ ओर विविधता, लेकर सबको संग चलने का,
आग्रह करते, विजय हर्ष में, आगे दौड़ लगाते पृथु तुम ।
याद बहुत ही आते पृथु तुम ।।१५।।
मित्र सभी होकर एकत्रित, मिलते, जुलते हैं चित परिचित,
खेलो, गेंद उठाकर दौड़ो, पत्थर फेंको, पत्ते तोड़ो,
और कभी यदि दिखती गाड़ी, चढ़ने को चिल्लाते पृथु तुम ।
याद बहुत ही आते पृथु तुम ।।१६।।
चलती गाड़ी, मन्त्रमुग्ध पृथु, मुख पर छिटकी है सावन ऋतु,
उत्सुकता मन मोर देखकर, मधुरिम स्मृति वहीं छोड़कर,
शीश नवाते नित मन्दिर में, कर प्रदक्षिणा आते पृथु तुम ।
याद बहुत ही आते पृथु तुम ।।१७।।
दिन भर ऊधम, माँ गोदी में, रात हुयी, सो जाते पृथु तुम,
शान्तचित्त, निस्पृह सोते हो, बुद्ध-वदन बन जाते पृथु तुम ।
याद बहुत ही आते पृथु तुम ।।१८।।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!!पढ़ते हुए सब व्यतीत होता प्रतीत हुआ!! पृथु को ढेर सारा आशीर्वाद हमारा भी!!
ReplyDeleteजी आभार। अभी भी पढ़ता हूँ तो लगता हूँ कि २० वर्ष पहले पहुँच गया।
Deleteमन की अनंत गहराइयों को तूलिका से मूर्त रूप प्रदान कर अपनी ओजस् वाणी से अभिव्यक्ति अत्यंत सुंदर।
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका।
Deleteअद्भुत सृजन अग्रज। अप्रतिम भावाभिव्यक्ति ��
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपके स्नेह का।
Deleteबहुत सुंदर , पढ़ते हुए अपने बच्चों के क्रिया कलाप याद आ रहे थे । सब कुछ समेट लिया आपने , माँ की ममता , पिता का दुलार ।
ReplyDeleteजी आभार संगीताजी। बचपन सच में मोहक होता है। स्मृतियाँ सहेजनी आवश्यक हैं।
Deleteसबसे सुखद स्मृति होती है बच्चों की बाल लीलाएँ सचमुच बेहद भावपूर्ण और जीवंत चित्रण।
ReplyDeleteप्रणाम सर
सादर।
जी सच कहा आपने। बहुत आभार।
Deleteवाह , बहुत खूब !
ReplyDeleteजी धन्यवाद सतीशजी। आपकी स्वास्थ्य की प्रति निष्ठा स्तुत्य है।
Deleteआपकी लिखी रचना गुरुवार 19 जुलाई 2021 को साझा की गई है ,
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
अतिशय आभार कि आपने इस कृति को अपने संकलक के योग्य समझा।
Deleteदिन भर ऊधम,
ReplyDeleteमाँ गोदी में,
रात हुयी,
सो जाते पृथु तुम,
शान्तचित्त,
निस्पृह सोते हो,
बुद्ध-वदन बन जाते
पृथु तुम
शुभकामनाएं
सादर..
बहुत आभार आपका यशोदाजी।
Deleteबहुत ही भावप्रवण रचना
ReplyDeleteजी, बहुत आभार आपका वन्दनाजी।
Deleteयाद बहुत ही आते पृथु तुम …बहुत सुन्दर 👌👌
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका, उषाजी।
Deleteसर्जनात्मकता का शिखर स्पर्श ।
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका अमृताजी। आपको अभी तक सृजन में रत देख कर प्रसन्नता हुयी।
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteबालक्रीड़ाएं जीवन्त हो उठी आँखों में...
इतना स्नेह और मधुर स्मृतियां पढकर मन भावुक हो गया....
लाजवाब सृजन।
बाल क्रीड़ायें मोहक होती हैं। सहेजना आवश्यक है। आभार आपका सुधाजी।
Deleteदिन भर ऊधम, माँ गोदी में, रात हुयी, सो जाते पृथु तुम,
ReplyDeleteशान्तचित्त, निस्पृह सोते हो, बुद्ध-वदन बन जाते पृथु तुम ।
याद बहुत ही आते पृथु तुम
एक भाव विहल पिता की सजीव स्मृतियाँ मन भिगो गयी | पर हर पृथु को बड़ा तो होना ही होता है | बहुत बहुत मार्मिक और संवेदनशील रचना पढ़कर निशब्द हूँ प्रवीन जी |लाजवाब रचना है |
बहुत आभार आपका रेणुजी। यही स्मृतियाँ अस्तित्व को ऊर्जान्वित करती रहती हैं।
Deleteदिल को छूती रचना
ReplyDeleteआभार आपका समीरलालजी। आशा है कि कनाडा में सब सकुशल होगा।
Deleteबहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति,बच्चे जब बड़े हो जाते हैं,उनके बालपन की मधुर स्मृतियां मन को उनके बचपन में बार बार खींच कर ले जाती हैं, और सुंदर एहसासों की टीस देती हैं, जिन्हें हम याद कर आनंदित होते हैं। सुंदर मनोहारी एहसासों का सृजन किया है,आपने,आपके और प्यारे बच्चे को हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteअभी अपने बच्चों को सुनाता हूँ तो उनको भी सुखद आश्चर्य होता है कि अच्छा वे भी ऐसा करते थे। बहुत आभार आपका।
Deleteकविता का ऑडियो सुना। बेमिसाल काव्यपाठ।
ReplyDeleteजी आभार। बस पढ़ देने का प्रयास भर किया है।
Deleteअति उत्तम सृजन... बहुत बहुत बधाई....
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका।
Deleteफेसबुक से...
ReplyDeleteVaibhav Dixit
सर बहुत ही भावविभोर कर देने वाली पंक्तियां हैं
उत्कृष्ट ❤️❤️❤️
Manoj Kumar
बच्चे जब कुछ बड़े होते हैं, बाहर पढ़ने या किसी वजह से बाहर रहते हैं तो उनकी बदमाशियों , नटखट , चुलबुलापन बहुत याद आता है, दिल कचोटता है ।
Shailendra Gwalior
बिल्कुल सही बात है सर, बचपन की बातों से अद्भूत सीख मिलती है , ना राग ना द्वेष ना छल ना कपट पल में रो देना पल में हँस देना ना मन में लेकर जीना, जरा सी बात पर रूठ जाना और अगले ही पल सब कुछ भूल कर खिलखिलाना सचमुच बचपन जैसा दुसरा कुछ नहीं।
Sanjay Parashar Babloo
आदरणीय पांडेय जी , आपकी पोस्ट पढ़ने सुनने के लिए मैंने सम्हाले रखी थी ।
आज एकांत में वृक्ष तले बैठकर पढ़ी व सुनी ।
बहुत मन को भायी । स्वागत
एकदम जीवंत चित्रण।
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