आज प्रभु जब निकट कुछ तेरे बढ़ा मैं,
मोह बन्धन जगत के दृढ़ खींचते हैं ।
पूछता मन प्रश्न बारम्बार निर्मम,
क्या कहूँ, जब नहीं उत्तर सूझते हैं ।।१।।
नहीं चाहूँ, जटिल मति के, कुटिल जग के,
तर्क अगणित बन विषों के बाण आते ।
कभी मैं बचता तुम्हारी प्रेरणा से,
किन्तु बहुधा वेदना बन समा जाते ।।२।।
किन्तु सुख अनुभव किया जो,
चरण में भगवन तुम्हारे ।
शब्द की अभिव्यक्ति के बिन,
छिपा रहता हृद हमारे ।।३।।
दर्श अदर्शन, लुप्त प्राय मति,
प्रेम-पुन्ज नवपंथ दिखा दो ।
स्थित हो जब सबमें प्रियतम,
द्वेषी जग से हृदय बचा लो ।।४।।
कुशल भगवन, सर्वहित प्रेरक बने हो,
तम हृदय में, प्रेम के दीपक जला दो ।
तव प्रतिष्ठा अनवरत होवे प्रचारित,
भावरस में ज्ञानपूरित स्वर मिला दो ।।५।।
चल मन नाद से अनहद की ओर ! अंतर्मन की भावप्रबल शब्दाभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteथम जाता मन, जब अन्तरतम थाप सुनायी पड़ती है।
Deleteआपकी लिखी रचना सोमवार 21 जून 2021 को साझा की गई है ,
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।संगीता स्वरूप
बहुत आभार आपका संगीताजी। आपने जिस प्रकार प्रथम से वर्तमान को जोड़ दिया है, पूरे अस्तित्व को स्मृतियों में डुबो डाला। हृदय से कोटि कोटि आभार।
Deleteदर्श अदर्शन, लुप्त प्राय मति,
ReplyDeleteप्रेम-पुन्ज नवपंथ दिखा दो ।
स्थित हो जब सबमें प्रियतम,
द्वेषी जग से हृदय बचा लो ।।४।।
बहुत सुन्दर प्रार्थना 🙏
आभार आपका उषाजी।
Deleteबहुत सुंदर प्रार्थना
ReplyDeleteबहुत आभार आपका अनुराधाजी
Deleteआज प्रभु जब निकट कुछ तेरे बढ़ा मैं,
ReplyDeleteमोह बन्धन जगत के दृढ़ खींचते हैं ।
पूछता मन प्रश्न बारम्बार निर्मम,
क्या कहूँ, जब नहीं उत्तर सूझते हैं ।
सांसारिक मोह को त्यागना इतना भी आसान कहाँ
बहुत ही लाजवाब सृजन।
जकड़े पकड़े यह मोहजाल। आभार सुधाजी।
Deleteअंतर्मन की पवित्र ज्योति जब जल जाए जीव जगत की मूढ़ता का भान कर मन विकल तक मुक्तिपथ पर चल जाए।
ReplyDeleteअति सुंदर और सारगर्भित प्रार्थना।
सादर।
कब ज्योति जले, मन मगन पले।
Deleteबहुत सुंदर पावन भाव लिए अभिनव सृजन।
ReplyDeleteबहुत आभार आपका।
Deleteदर्श अदर्शन, लुप्त प्राय मति,
ReplyDeleteप्रेम-पुन्ज नवपंथ दिखा दो ।
स्थित हो जब सबमें प्रियतम,
द्वेषी जग से हृदय बचा लो ।।४।।
बहुत सुंदर शब्दों में प्रार्थना की है । आज कुछ ज्यादा ही लोगों के हृदय में मनोमालिन्य बढ रहा है । मेरी भी प्रार्थना आपके शब्दों में शामिल है ।
आपका बहुत आभार। सामर्थ्य के आगे तो बस प्रार्थना ही की जा सकती है।
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ReplyDeleteद्वेषी जग से हृदय बचा लो, भावमय करते शब्द .. बहुत ही अच्छी प्रार्थना ...
बहुत आभार आपका।
Deleteबहुत सुन्दर शब्दों से सजी रचना.
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद शिखाजी। आपके पोडकास्ट अत्यन्त रोचक लगे।
Deleteकुशल भगवन, सर्वहित प्रेरक बने हो,
ReplyDeleteतम हृदय में, प्रेम के दीपक जला दो ।
तव प्रतिष्ठा अनवरत होवे प्रचारित,
भावरस में ज्ञानपूरित स्वर मिला दो ...एक सुंदर प्रार्थना ,हर एक मनुज के लिए सच्ची और सुंदर।
आभार आपका जिज्ञासाजी।
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