8.6.21

हनुमानबाहुक - आर्तनाद


शरीर है तो कष्ट मिलेगा ही। अंग शिथिल होंगे, विकार पनपेंगे, प्रक्रियायें समय लेंगी, अवरोह प्रारम्भ होगा। युवा शरीर अधिक सक्षम होता है। प्रकृति के नियम भेद नहीं करते हैं। अन्य दुख जो प्रारब्ध में होते हैं, जो संस्कार कर्माशय में पड़े होते हैं, वे पकते हैं, समय और परिस्थियाँ पाकर। सबको यही अनुभव होता है, सबको पीड़ा होती है। औरों की पीड़ा न हम अनुभव कर सकते हैं और न ही उसकी स्वयं से तुलना कर सकते हैं। एक ही तरह की चोट में, रोग में किसको अधिक पीड़ा हुयी, कहना अत्यधिक कठिन है। पीड़ा का उच्चारण लिखा तो पाठकों ने कहा कि आपके लेख ने पीड़ा को मूर्तमान कर दिया है, पर यह प्रश्न तो फिर भी अनुत्तरित रहा कि पीड़ा के उच्चारण को मापें कैसे? कराह के स्वर से, बहते अश्रु से, मुख चढ़े गाम्भीर्य से या शब्दों की तीक्ष्णता से जिनसे उनको व्यक्त करने का प्रयास हुआ?


जब कहूँगा कि जीवन के उत्तरार्ध में तुलसीदास को बाँह में अपार पीड़ा हुयी तो पाठक प्रमाण माँग सकते हैं। स्वीकारोक्ति से बड़ा भला क्या और प्रत्यक्ष प्रमाण हो सकता है। मर्यादित व्यक्ति पीड़ा के बारे में सबसे नहीं कहता है, नीति भी यही कहती है। एक तो पीड़ा सहना गुण माना जाता है और न सहते हुये उसे व्यक्त करना दुर्बलता। दूसरा उसको बताने का भी क्या लाभ जब सामने वाला उसे माप ही नहीं सकता है। यदि पूर्व में अनुभव किया होगा तभी अपने निवारण के बारे में बता सकता है, पर उससे आपको कितना लाभ होगा, यह कहना कठिन है। मैं तो अपनी माथे की पीड़ा के पिछले दो अनुभव में तुलना नहीं कर सकता हूँ कि किस बार अधिक हुयी थी? पीड़ा व्यक्त करने का तीसरा कारण रहीमदास बताते हैं “सुन अठिलैंहें लोग सब, बाँट न लैहें कोय” सब आनन्द ही लेंगे, कोई बाँटेगा नहीं। सब हितैषी नहीं होते हैं कि आपकी पीड़ा से द्रवित हो जायें। पीड़ा अत्यन्त व्यक्तिगत होती है, केवल सहते बनती है, न अपनी कहते बनती है, न औरों की समझते बनती है। 


चिकित्सक को भी तो हम यही न बताते हैं कि पीड़ा कहाँ हो रही है? कितनी हो रही है, यह तो चिकित्सक भी नहीं माप पाता है। तात्कालिक निवारण तो उस संवेदन को ही शिथिल करना होता है जो प्रभावित भाग में या मार्ग में अनुभव किया जा रहा है। अब वह निवारण सिकाई से हो, या पीड़ा निवारक जेल से, या पीड़ा निवारक औषधि से या फिर मालिश से। अब कितनी पीड़ा कम हुयी है, यह अनुभव भी अत्यन्त व्यक्तिगत है। पीड़ा के इस उच्चारण में हम सब उस गूँगे के भाँति ही असमर्थ हैं जो किसी स्वादिष्ट व्यञ्जन में प्राप्त तृप्ति बताना चाहता है। तब पीड़ा के बारे में किससे कहा जाये? या कुछ न कहा जाये, शान्त रहा जाये और सहा जाये। सहनीय पीड़ा तो सह ली जाती है पर असहनीय होते ही आर्त स्वर फूटने लगते हैं। नास्तिकों को छोड़ दिया जाये तो शेष सब परमात्मा की शरण ही लेते हैं, वह परमात्मा जो सतत हमारे साथ ही रहता है।


तुलसीदास ने भी उस अपार पीड़ा के क्षणों में अपने आराध्य को पुकारा। यह पुकार प्रारम्भिक कालखण्ड में मानसिक या मौखिक रही होगी पर अन्ततः शब्दों में व्यक्त हुयी। इस अभिव्यक्ति को हम सब “हनुमानबाहुक” के नाम से जानते हैं। करुण पुकार यदि लिखी गयी तो निश्चित ही बहुत अधिक समय के लिये वह पीड़ा रही होगी, साथ ही सारे उपचार करने के बाद भी निवारण नहीं हुआ होगा। तुलसीदास ने इसका वर्णन भी किया है कि “औषध अनेक जन्त्र मन्त्र टोटकादि किये, बादि भये देवता मनाये अधिकाति है”। अर्थात सब प्रयास कर डाले, औषधि और अन्य प्रचलित उपचार से कुछ भी लाभ नहीं हुआ। देवताओं को भी मनाया पर पीड़ा बढ़ती ही गयी।


जिन्होने तुलसीदास को पढ़ा है, वे जानते होंगे कि किसी अन्य स्थान पर उन्होंने अपनी शारीरिक पीड़ा को व्यक्त नहीं किया है। मानसिक वेदना, दुख, व्याप्त कुरीतियाँ, सामाजिक विद्रूपतायें आदि तो व्यक्त हैं, पर शारीरिक पीड़ा केवल हनुमानबाहुक में ही व्यक्त है। रामचरितमानस के रचयिता ने श्रीराम के चरित्र का अनुशीलन मर्यादापालन में किया है। कभी अपनी मर्यादा लाँघी नहीं है। विनयपत्रिका उनके इस आचरित व्यवहार का स्पष्ट उदाहरण है कि किस प्रकार उन्होंने सभी देवताओं और निकटस्थों के माध्यम से श्रीराम के दरबार को अपनी पत्रिका भेजी। कैसी भी परिस्थिति हो, तुलसीदास सदा ही विनयशील बने रहे। पीड़ा के एक स्पंद के अनुभव के पश्चात और दूसरे स्पंद की प्रतीक्षा के पहले, निश्चय ही इसी कालखण्ड में उनके आर्त स्वर “हनुमानबाहुक” बनकर फूटे होंगे।


कहते हैं कि जैसे जैसे तुलसीदास ने हनुमानबाहुक की रचना की और उनकी पीड़ा जाती रही। वातजनित पीड़ा वातजातं के प्रभाव से ही गयी। यही कारण है कि हनुमानबाहुक को उपचार काव्य माना जाता है, या कहा जाये तो मन्त्रशक्ति से संचित रचना माना जाता है। हनुमान का अपना आराध्य मानने वाले जहाँ एक ओर भयमुक्त रहने के लिये हुनमानचालीसा पढ़ते हैं, शारीरिक और मानसिक पीड़ा के निवारण के लिये हनुमानबाहुक का पाठ किया जाता है। बचपन से न जाने कितनी बार हनुमानचालीसा ने निर्भय रहना सिखाया है, मन में शक्ति का संचरण किया है। हनुमानबाहुक ने वर्तमान बाँह की पीड़ा के प्रकरण में उबारा है। तुलसीदास को साधने वाले हनुमान उनकी रचना का पाठ करने वाले को भी साधते हैं। हनुमानबाहुक के उच्चारण में तुलसीदास के प्रति हनुमान का प्रेम उमड़ता है।


हनुमान और तुलसीदास का सम्बन्ध अद्भुत है। अपने आराध्य का उत्कृष्ट चरित रचने और उसे प्रसारित करने वाले तुलसीदास के प्रति हनुमान के मन में कितना वात्सल्यभाव भरा होगा, इसकी थाह लगाने के लिये हनुमानबाहुक के वे भाग पढ़ने होंगे जहाँ तुलसीदास उनसे ऐसे बात करते हुये दिखते हैं जैसे कोई पुत्र अपनी माता को उलाहना देता है। सामाजिकता में सामान्यतः मर्यादा में छिपे मन के भाव, पीड़ा की पराकाष्ठा में उभर कर सामने आये हैं, स्पष्ट दिखायी पड़े हैं। यदि तुलसीदास को बाँह की पीड़ा न होती तो उलाहना और वात्सल्य का यह अनुपम दृश्य हमें देखने को न मिलता। जब मैंने पहली बार इन भागों को समझा तो अपने मित्र अशोक से चर्चा में अनायास ही बोल उठा कि कहीं कोई भक्त अपने आराध्य को इस तरह कुछ कहता है? यह तो लग रहा है कि कोई छोटा पुत्र अपनी माँ से बात कर रहा है। अशोक जो तुलसीदास और हनुमान के नित्य उपासक हैं, इतना ही कह कर रह गये कि आपको जैसा लग रहा है, हो सकता है कि वैसा ही हो।


देखिये न, पीड़ा के इस प्रकरण ने कितना सुखद रहस्य हमें दिखाया है। स्तुति, अर्चना, प्रार्थना और आरती के भेद और उस संदर्भ में हनुमानबाहुक की चर्चा अगले ब्लाग में।

11 comments:

  1. तुलसीदास की रामचरित मानस, हनुमान चालीसा और विनय पत्रिका से परिचय है पर हनुमान बाहुक कभी नहीं पढ़ा न ही इसके बारे में सुना, पीड़ा के क्षणों में आराध्य को पुकारना भक्त के लिए स्वाभाविक है, जैसे बच्चे का दर्द में माँ को पुकारना। बहुत भावप्रवण और प्रभावशाली लेखन!

    ReplyDelete
    Replies
    1. हनुमानबाहुक से परिचय बहुत बाद में हुआ पर पढ़ने और मनने से अद्भुत अनुभव हुआ। छोटा सा है, पढ़िये, भावों की नयी विमा है यह संवाद।

      Delete
  2. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  3. विभिन्न पहलुओं का स्पर्श करते हुए पीड़ा और उसके निवारण का वर्णन ,प्रभावशाली लेख बन गया है !!

    ReplyDelete
  4. This is really fantastic website list and I have bookmark you site to come again and again. Thank you so much for sharing this with us first kiss quotes
    spiritual quotes
    shadow quotes

    ReplyDelete
  5. हनुमानबाहुक का नाम तो सुना था सर, लेकिन पढ़ा नहीं था। अब पढूंगा।

    ReplyDelete
  6. हनुमानबाहुक का नाम तो सुना था सर, लेकिन पढ़ा नहीं था। अब पढूंगा।

    ReplyDelete
    Replies
    1. एक नया अनुभव रहेगा हनुमानबाहुक को पढ़ना। आपके अनुभव की प्रतीक्षा रहेगी।

      Delete
  7. पीड़ा से परिचय हो जाय,तो उसके निवारण से भी परिचय होता है, उसी कड़ी में आपका यह लेखन बहुत ही सराहनीय है जो पीड़ा के लिए सकारात्मक भाव पैदा करता है,मैं भी हनुमानबाहुक जल्दी ही पढ़ने की कोशिश करूंगी। एक नई जानकारी के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. यद्यपि अगले तीन ब्लागों में इस विषय में विचरण करूँगा पर स्वयं पढ़ने से अच्छा कोई अनुभव नहीं है। आपके अनुभव की प्रतीक्षा रहेगी।

      Delete