18.5.21

बाँह की पीड़ा - विशेष कारण


बाँह की पीड़ा के प्रारम्भिक काल में तीक्ष्णता अधिक नहीं थी। ज्वर और ऐंठन तो २४ घंटे के अन्दर ही समाप्त हो चुके थे। उसके बाद के ६ दिन लगभग सामान्य से थे, बस टीके के स्थान में तनिक भारीपन था। अतः टीका लगने के ८ दिन बाद जब सहसा शेष बाँह और विशेषकर कंधे में पीड़ा हुयी तो आश्चर्य हुआ। यह पीड़ा रात को लगभग दो बजे उठी, दो तीन बिन्दुओं पर अधिक थी और केन्द्रित सी थी, बाँह को लिटा पाना असंभव सा लग रहा था और टहलने में तनिक आराम लग रहा था। पीड़ा की वह अवस्था रात्रि की शेष निद्रा खा गयी।


पहला और तात्कालिक कारण जो समझ में आया कि संभवतः टीके के कारण काँख में कोई गाँठ पड़ गयी हो। बाँह को ऊपर उठाने पर गर्दन से लेकर कुहनी तक एक रेख में खिंचाव सा लग रहा था। इस तथ्य से गाँठ के कारण को बल मिला। सुबह पीड़ा कम होने पर जब काँख में टटोलकर देखा तो किसी प्रकार की गाँठ नहीं थी, ऊँगली से दबाने पर पीड़ा की तीक्ष्णता बहुत नहीं बढ़ रही थी और साथ ही बाँह में कहीं कोई सूजन नहीं थी। इन लक्षणों से यह तो निश्चित हो गया कि नस खिची है पर उसका कारण कोई गाँठ नहीं है। जब आप चिकित्सक के यहाँ जाने में असमर्थ हों तो सारे परीक्षण स्वयं करने होते हैं। मैंने भी अपने चिकित्सक मित्र की सलाह पर यह लक्षण बताये तो उन्होंने मुख्यतः पीड़ानिवारक औषधि बतायीं जिससे रात्रि में नींद आ जाये। यह पीड़ा तीन दिन तक चली उसके बाद तनिक कम हुयी या कहें कि पीड़ानिवारक औषधि के कारण पता नहीं चली।


रात्रि में नींद तीन भागों में पूरी होती थी। पीड़ानिवारक औषधि लेने के बाद लगभग ३ घंटे, अन्यथा दो भागों में लगभग एक एक घंटा। यदि टीके के कारण सूजन या गाँठ के कारण पीड़ा होती तो ४-५ दिन में क्षीण हो जाती। इसके विपरीत और पहली पीड़ा के लगभग दस दिन बाद पुनः पीड़ा उठी। इस बार की पीड़ा कहीं अधिक गहरी और व्यापक थी। अब यह गर्दन, पीठ, कंधे से आती हुयी पूरे बाँह में फैल गयी थी। उस समय लगा कि पीड़ा के कारण को समझने में कहीं कोई भूल हो रही है। पीड़ानिवारकों से पीड़ा के लक्षण तो शमित किये जा रहे हैं पर पीड़ा के कारणों को न तो समझा जा पा रहा है और न ही निवारण ही किया जा रहा है।


उसके बाद की दो रातें पीड़ा की पराकाष्ठा में बीतीं। रात्रि को जब न रहा गया तो सिकाई की, पीड़ानिवारक जेल लगाया। फिर भी जब नींद नहीं आयी और पीड़ानिवारक औषधि लेनी पड़ी तो श्रीमतीजी ने आदेश दिया कि शरीर के साथ अब प्रयोग बन्द कीजिये। निश्चय ही टीका से भिन्न कोई और कारण हो सकते हैं, चिकित्सक से पुनः और विधिवत सलाह लीजिये। यदि आवश्यक हो तो टेस्ट आदि भी करवाइये। इस समय तक मन और शरीर निढाल हो चुका था और सारे संभावित कारणों में स्वीकार्य करने को बाध्य भी। अपने मौसेरे भाई से परामर्श लेने के पहले मन में और तब श्रीमतीजी से उन सारे संभावित कारणों का विश्लेषण किया।


दूसरा संभावित कारण सर्वाधिक उद्विग्न करने वाला था। पीड़ा बायीं बाँह में थी। गर्दन, पीठ, कंधा और बाँह पीड़ा में थे। यह लक्षण हृदयाघात के भी होते हैं। धमनियों में रक्त का प्रवाह रुकने से अंगों में आक्सीजन नहीं पहुँच पाती है और तब बाँह की पीड़ा सहित ये लक्षण प्रकट होते हैं। चिकित्सक ने पूछा कि कुछ घबराहट या साँस की कमी सी भी लग रही है। बताया कि वैसे तो नहीं हो रही थी पर हृदयाघात का विचार आते ही मन भयग्रस्त अवश्य हो गया। अन्य संलग्न कारणों के न होने पर मन आश्वस्त हुआ कि हृदयाघात के प्रारम्भिक लक्षण नहीं हैं।


पीड़ा यदि शरीर के किसी एक अंग में हो या पूरे शरीर में हो तो उसका स्रोत ढूढ़ना अपेक्षाकृत सरल हो जाता है। या तो वह अंगविशेष कारण होगा या वह तन्त्र कारण होगा जो पूरे शरीर में व्याप्त है। यह पीड़ा उन दोनों ही श्रेणियों में नहीं आती थी। यह गर्दन से लेकर कुहनी तक व्याप्त थी, नस के साथ साथ और वह भी शरीर के बायें भाग में। पीड़ा की खोज में अब वे सारे अंग सम्मिलित होने वाले थे जहाँ से जहाँ तक यह नस फैली थी। अब रीढ़ की हड्डी, गर्दन, कंधे और बाँह की माँसपेशियाँ, शेष हड्डी और बाँह के जोड़ परिधि में थे। कहीं न कहीं यह नस दब रही थी, कारण तात्कालिक और दीर्घकालिक दोनों हो सकते थे।


तीसरा संभावित कारण दीर्घकालिक था। जीवन की अर्धशताब्दी आते आते शरीर में कई जीवन्त तत्वों की कमी होने लगती है। कैल्शियम की कमी के कारण आर्थीराइटिस होने लगता है और जब प्रभावित होने वाली हड्डी रीढ़ की हो तो तन्त्रिकातन्त्र पर प्रभाव पड़ता है। कौन सी रीढ़ की हड्डी प्रभावित हुयी है, उससे पता चलेगा कि किस अंग को जाने वाले तन्त्रिकातन्तु पीड़ा का कारण बनेंगे? बंगलुरु में अपने वरिष्ठ अधिकारी की पत्नी की पीड़ा और आपरेशन को देखा है। अधिकतम जटिलता और अत्यन्त कष्ट से होकर ही कोई निवारण हो पाता है। शरीर के किसी अन्य अंग से जोड़ों में कोई पीड़ा नहीं थी और दूध पीना बचपन से प्रिय रहा है अतः इस कारण की भी प्रायिकता कम ही लग रही थी।


चौथा संभावित कारण जीवनशैली से संबंधित था। अधिक समय तक बैठ कर कम्प्यूटर पर कार्य करने से या पीठ टेढ़ी करके बैठने से गर्दन क्षेत्र की रीढ़ की हड्डियाँ तनिक मुड़ जाती है और सरवाइकल की समस्या हो जाती है। यह पीड़ा बड़ी कष्टकारी होती है। प्रशिक्षण और अध्यापन में होने के कारण दिन में लगभग ५-६ घंटे तक तो यह स्थिति बनी रहती है। संभव था कि कालान्तर में यहीं पीड़ा का कारण बन गया हो। यदि यह पीड़ा का कारण होता तो पीड़ा की उत्पत्ति गर्दन से होती पर मेरी पीड़ा बाँह से उत्पन्न होकर गर्दन तक पहुँची थी। अतः इस कारण की संभावना भी तनिक न्यून थी।


शेष संभावित ६ कारण अगले ब्लाग में।

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