अंध व्यापा दिशा तम घनघोर जीवन,
कल न जाने काल के किस ओर जीवन।
वृहद, आगत योजना के आकलन में,
रत रहे संसाधनों के संकलन में,
कर्म क्रम संभाव्य सीमा में समेटे,
सकल रचनावृत्त बाहों में लपेटे,
ज्ञात गति व्यवहार, अति आश्वस्त हम सब,
दृष्टिगत आकार में थे व्यस्त हम सब,
आज की निश्चिंतता किस छोर जीवन।
कल न जाने काल के किस ओर जीवन ।१।
प्रकृति को कर हस्तगत, उत्ताल मद में,
दम्भ सृष्टा सा धरे विकराल हृद में,
नित्य निर्मित विश्व नव विस्तार अगनित,
सृष्टि पर अभिमानपूरित दृष्टि प्रमुदित,
अंध आँधी बन उमड़ती सृष्टियाँ सब,
भ्रमित शंकित रुद्ध बैठीं दृष्टियाँ सब,
क्या पता अब जगत के किस ठौर जीवन,
कल न जाने काल के किस ओर जीवन ।२।
हम यथासंभव लड़ेंगे, लड़ रहे हैं,
सतत संकट सहन करते, बढ़ रहे हैं,
प्राण को जो पूर्णता से साधता है,
जो ग्रहों को घूर्णता से बाँधता है,
उस नियन्ता से यही आराधना है,
एक ही बस सर्वहित लघु प्रार्थना है,
रात्रि के उस पार पाये भोर जीवन।
कल न जाने काल के किस ओर जीवन ।३।
सारगर्भित सम्वेदनशील प्रार्थना!! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteसारगर्भित सम्वेदनशील प्रार्थना!! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका
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