गिरिजेशजी का जाना हृदय विदीर्ण कर गया,
एक अद्भुत व्यक्तित्व चला गया,
एक अश्रुपूरित शब्दांजलि......
हम काल कला से छले गये,
गिरिजेश! कहाँ तुम चले गये?
गहरे रहस्य, उद्भट प्रकथ्य,
सुर शब्दों में, संनिहित सत्य,
करना था कितना और व्यक्त,
सब कुछ पसार कर चले गये?
हम काल कला से छले गये ।।१।।
श्रम डूबे सब वांछित प्रयत्न,
मेधा से ढूढ़े अलख रत्न,
साझे, साधे अनगिनत यत्न,
सब कुछ बिसार कर चले गये?
हम काल कला से छले गये ।।२।।
दस वर्ष अधिक सम्बन्ध रहा,
संवाद सतत निर्द्वन्द्व बहा,
सोचा जो भी स्पष्ट कहा,
सब कुछ उतार कर चले गये?
हम काल कला से छले गये ।।३।।
संस्कृत संस्कृति के रहे प्राण
प्रस्तुत उत्तर, विस्तृत प्रमाण,
आगत प्रज्ञा, संशय प्रयाण,
सब कुछ विचार कर चले गये?
हम काल कला से छले गये ।।४।।
अलसाया चिठ्ठा रहे भुक्त,
हत मघा, करेगा कौन मुक्त,
कविता के सुन्दर स्रोत सुप्त,
सब पर प्रहार कर चले गये?
हम काल कला से छले गये ।।५।।
बाऊ बैठे, मनु उर्मि शान्त,
सब रामायण के पात्र क्लान्त,
शत शोकमग्न तिब्बत नितान्त,
सबको निहार कर चले गये?
हम काल कला से छले गये ।।६।।
माता बिन बीता एक माह,
मन पिता मन्त्र बहता प्रवाह,
क्यों लिये विकट स्मृति उछाह,
यह जगत पार कर चले गये?
हम काल कला से छले गये ।।७।।
जब रहे सनातन कालपथिक,
किसकी बाधा, क्यों हृदय व्यथित,
रुक जाते थोड़ा और तनिक,
जग तार तार कर चले गये?
हम काल कला से छले गये ।।८।।