अमिताभ बहुत अच्छा गाते थे और अभी भी नियमित रूप से किसी एप्प में अपने सुरों की शीतलता बिखेरते रहते हैं। छात्रावास में उनका आना तीन वर्ष बाद हुआ था। संभवतः यह कारण रहा होगा कि उनके अन्दर स्वातन्त्र्य भाव कूट कूट कर भरा था। उनका आत्मविश्वास और साहस संक्रामक था। उनके साथ कई बार बिना अनुमति लेकर बाहर जाने की योजना बनी और उन पर क्रियान्वयन भी हुआ। सारा कुछ तो स्मृति में नहीं रहा पर दो घटनायें जो आचार्यों से संबद्ध थीं, वे स्थायी बस गयी हैं।
संभवतः प्रातः ४३० का समय होगा, जागरण में आधा घंटा शेष था। प्रधानाचार्य के दूत आते हैं और अमिताभ को जगा कर कहते हैं कि प्रधानाचार्य जी बुला रहे हैं। ब्रह्मकाल की सात्विकता पूरे परिसर में फैली थी। गम्भीर विषयों के लिये यही समय सर्वाधिक उपयुक्त होता था। किसी भी दृष्टि से यह प्रताड़ित या दण्डित करने का समय नहीं हो सकता था, उसका समय बहुधा सायं होता था। यह समय संभावनाओं का था। जिनमें कुछ भी समझ सकने की संभावना शेष रहती थी, उन्हें इस समय बुला कर प्रेरित किया जाता था, भावनाओं के उच्च बिन्दुओं पर ठहराया जाता था। जहाँ तक मुझे याद है, पूरे सात वर्षों में केवल एक बार ही मुझे यह सौभाग्य मिला था, संभवतः ११वीं कक्षा में।
प्रधानाचार्यजी के द्वारा बुलाया जाना सम्मान का विषय था। शारीरिक और मानसिक स्तर से सीधे बौद्धिक और आध्यात्मिक स्तर में पहुँच जाने की योग्यता का द्योतक। उनकी चिन्ता का विषय होना और तदोपरान्त उनके चिन्तन में आपके सुधार का उपाय आना, यह दोनों ही पक्ष रहते थे आपको प्रातःकालीन वेला में बुलाने के। शेष समाज की तुलना में आपका स्तर सहसा बढ़ जाता था, आप सामान्य से विशेष हो जाते थे। कभी कभी आपको प्रधानाचार्यजी के स्थान पर जागरण कराने का विशेष कार्य भी मिलता था। वापस लौटकर आपके शब्दों को आदेशों और उपदेशों सा मान मिलता था। दिन भर यह चर्चा का विषय रहता था कि आज किसको बुलाया गया और प्रेरित किया गया।
अमिताभ को प्रातः बुलाया गया है, समाचार मिलते ही संशय के बादल मन में घुमड़ने लगे। कभी आपके विशेष मित्र को इस प्रकार बुलाया जाये तो करुणा, भय और क्रोध के मिश्रित भाव उमड़ते हैं। करुणा इस बात की कि कहीं आपके मित्र का नाम किसी काण्ड में उद्घाटित तो नहीं हो गया। कहीं उसको इस बात की उलाहना तो नहीं दी जायेगी कि अमिताभ आपसे तो यह अपेक्षित नहीं था। दण्ड का व्यापार तो दण्ड देने के बाद बराबर हो जाता है, सम हो जाता है, पूरा हो जाता है, कुछ शेष नहीं रहता है। उलाहना आदर्श बन कर लटक जाती है। पहले आपको यह विश्वास दिलाया जाता है कि आपको उत्पात नहीं करना था, इस प्रकार आपको सहसा आपके मित्र समूह से च्युत कर दिया जाता है। दूसरा आपको भविष्य में अच्छा करने को प्रेरित किया जाता है। यह प्रेरणा ही बहुत गुरु होकर व्यक्तित्व से लटक जाती है। तब आप न इस विश्व के रहते हो और न ही उस विश्व के, त्रिशंकु से, अधर पर।
भय इस बात का होता है कि कहीं भावावेश में आकर अमिताभ सरकारी गवाह न बन जाये, हमारा नाम भी उजागर न कर दे। सात्विकता में यह अद्भुत गुण होता है कि वह अंगुलिमाल जैसे पापी का मन द्रवित कर सकती है तो अमिताभ हमारी भाँति ही साधारण से उत्पाती भर हैं। क्रोध इस बात के लिये होता है कि कहीं यह सुधर कर वाल्मीकि का पंथ न अपना ले और हम जैसों को अपनी मित्रता से वंचित न कर दे। मित्रों की ऐसी ही स्वार्थपूरित और स्वार्थप्रेरित प्रार्थनायें मित्रों को सुधरने नहीं देती हैं।
आधे घंटे में आशंकाओं के समुन्दर में हम कई बार उतरा चुके थे। मित्र सुधारगृह में गया था, आकर क्या बोलेगा, क्या बतायेगा, सब अनिश्चित था। कहीं ऐसा न हो कि पहचानने से मना कर दे या तुच्छ समझ कर मित्रता तोड़ बैठे। हृदय में संतोष तब हुआ जब अमिताभ वापस आने पर मुस्कुराते हुये मिले और सारा वृत्तान्त सुनाया।
प्रातः सात्विकता के आधिक्य में प्रधानाचार्यजी को संगीत सुनने की प्रेरणा हुयी थी। आजकल हम बहुधा यह सुखद प्रयोग करते हैं पर उस समय मोबाइल या इण्टरनेट का युग नहीं था। छात्रावास में सबसे अच्छा गाने वाले अमिताभ थे, संगीतज्ञों के परिवार से थे और शास्त्रीय संगीत की शिक्षा पा चुके थे। यही कारण रहा होगा कि उन्हें प्रातः स्मरण किया गया। अर्धनिद्रा में और आँख मलते हुये पहुँचने पर जब उनसे यह आग्रह किया गया कि कोई गीत सुनाइये तो उन्हें भी अटपटा लगा होगा। जहाँ तक गायकों के बारे में ज्ञात है, उन्हें एक सहज परिवेश भाता है, प्रतिभा स्वातन्त्र्य से सहज प्रस्फुटित होती है। आग्रह का समय अरुचिकर लगा हो या आग्रह ही आदेशवत लगा हो, उन्होने गीत तो सुनाया पर वह न ब्रह्मकाल के योग्य था, न ही सात्विकता से प्रेरित था और न ही प्रधानाचार्यजी के गाम्भीर्य भाव के साथ सहज बैठता था। गीत था “धूप में निकला न करो रूप की रानी…”। आश्चर्यवत मैने जब पुनः पूछा तब भी अमिताभ ने यही बताया। बस उनको यही कह पाया कि अभिताभ भाई, आप गीत सुना रहे थे कि संदेश दे रहे थे?
अभिताभ के साथ एक और घटना अगले ब्लाग में।