सबके अपने युद्ध अकेले,
और स्वयं ही
लड़ने पड़ते,
सहने पड़ते,
कहने पड़ते,
करने पड़ते,
वह सब कुछ भी,
जो न चाहे कभी अन्यथा।
कल कल जल भी जीवट होकर,
ठेल ठेल कर, काट काट कर,
पाषाणों को सतत, निरन्तर,
तटबन्धों को तार तार कर,
अपनी गति में, अपनी मति में,
जूझा भिड़ता, निर्मम क्षति में,
लय अपनी वह पा लेता है, मार्ग हुये जब रूद्ध अकेले,
सबके अपने युद्ध अकेले।
प्रस्तुत सब सुविधायें सम्मुख,
प्राप्य परिधिगत, आकंठित सुख,
फिर भी लगता छूटा छूटा,
नहीं व्यवस्थित, टूटा टूटा,
प्रश्नों के निर्बाध सृजन में
भीतर बाहर बीहड़ वन में,
उत्तर के उत्कर्ष ढूँढते, फिरते रहते बुद्ध अकेले।
सबके अपने युद्ध अकेले।
क्या जाने, क्या चुभ जाये मन,
किन अंगों से फूटे क्रंदन,
चित्त धरा क्या, मन की ठानी,
रिस रिस बहती कौन कहानी,
सामर्थ्यों को लाँघे जाता,
लघुता को अभिमान दिलाता,
बीस बरस तक पत्थर तोड़े, दशरथ माँझी क्रुद्ध अकेले।
सबके अपने युद्ध अकेले।
कहने को तो जगत वृहद है,
परिचित पंथी, साथ सुखद है,
दिन ढलता जब, रात अवतरित,
भाषा निर्बल, शब्द संकुचित,
मन के संग रहना पड़ता है,
अपने को सहना पड़ता है,
काम क्रोध ईर्ष्या मद नद में , होना सबको शुद्ध अकेले।
सबके अपने युद्ध अकेले।
वाह , बेहद खूबसूरत रचना , बधाई आपको !!
ReplyDeleteजीवन का सार। जीवन का सन्देश।अतिसुन्दर।
ReplyDeleteBadhai ho..long live yr creativity !!
ReplyDeleteसुंदर कविता । बधाई ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रेरक कविता ।।।।।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रेरक कविता ।।।।।
ReplyDeleteअत्यंत गूढ़ भावनाओं और वेदनाओंं से सुसज्जित शब्द।
ReplyDeleteआज पुन: आपकी यह कविता पढ़ी। इस मौसम में आपके शब्द अत्यधिक प्रासंगिक व प्राकृतिक लगते हैं। अत्यंत आच्छादित करती शब्द सरिता सी कविता
DeleteKavita baar-baar padne ko jee chahta hai. Aap kahan hain? Likhen kuchh blog par.
Deleteआज पुन:कविता पढ़ी।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (29-01-2017) को "लोग लावारिस हो रहे हैं" (चर्चा अंक-2586) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "शेर ए पंजाब की १५२ वीं जयंती - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteक्या बात है सुन्दर ।
ReplyDeletesunder... :)
ReplyDeleteआश्वस्ति चाहे जितनी मिली हो उस महाभारत में लड़ना अर्जुन को स्वयं ही पड़ा था .
ReplyDeleteAisi kavita bahut dinon ke baad padhne ko mili..shaandaar...behad shaandaar..
ReplyDeleteपूरा गीता ज्ञान उँडेल दिया।
ReplyDeleteकल मैंने अपका लिखा चीन यात्रा के सभी पोस्ट पढे। लगा कि अब चीन को जानने लगा हूँ। अापकी कविताएँ भी अच्छी लगती है मगर गद्य का जयादा इंतजार रहता है।
ReplyDeleteयह कविता बहुत ही लयबद्ध अौर मन मेण बस जाने वाली है।
वेदनाओंं से सुसज्जित प्रेरक कविता
ReplyDeleteEXPOSE THE CONSPIRACY! GOD AND THE DEVIL ARE BACKWARDS!! DON'T LET GUILT-FEELINGS, FEAR AND OTHER KINDS OF EMOTIONAL MANIPULATION RULE YOUR CHOICES IN LIFE!!
ReplyDeletehttp://joyofsatan.org/
http://exposingchristianity.org/
https://exposingthelieofislam.wordpress.com/
http://www.666blacksun.net/
For Your Consideration.
ReplyDeleteit’s really good , i like it
ReplyDeleteबहुत उम्दा रचना
ReplyDeleteBadhiya.. Happy Birthday Praveen ji. FB messenger band hai aapka 4 saalon se :)
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेखन है आपका. सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई.
ReplyDeleteबहुत सुंदर लेखन है आपका. बधाई.
ReplyDeletebahut accha likha h
ReplyDeleteकाम क्रोध ईर्ष्या मद नद में , होना सबको शुद्ध अकेले।
ReplyDeleteसबके अपने युद्ध अकेले।........ बहुत सुन्दर कविता
AtI sundar
ReplyDeletewaah bahut khoob behtareen rachna
ReplyDeleteप्रिय ब्लॉगर,
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सादर
बहुत उन्दा पंकितीय है
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता है। जितनी बार पढ़ो उतनी ही अच्छी लगती है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सटीक...अपना युद्ध स्वयं ही लड़ना होता है ...
ReplyDeleteक्या बात है ! बहुत दिनों बाद आवाजाही हुई।कहाँ गए वो दिन !
ReplyDeleteरे मन
ReplyDeleteतेरा ही आसरा
तेरा ही सहारा ,
तेरी ही जीती जागती सी है ,
मुझमे हरियाली....
मन के हारे हार है ,मन के जीते जीत ..!! यथार्थ कहती सुंदर रचना ..!!
Praveen ji bahut dino se koi nai post nhi hai...vyastata adhik hai ya aap likh hi nhi rhe...
ReplyDeletePraveen ji bahut dino se koi nai post nhi hai...vyastata adhik hai ya aap likh hi nhi rhe...
ReplyDeleteबहुत सुंदर, सचमें सभी को अकेले ही अपना युद्ध लड़ना पडता है।
ReplyDeleteKash sa ladna sabhi to apne ha
ReplyDeleteअति उत्तम -सबके अपने युद्ध अकेले,
ReplyDeleteऔर स्वयं ही
लड़ने पड़ते,
सहने पड़ते,
कहने पड़ते,
करने पड़ते,
वह सब कुछ भी,
जो न चाहे कभी अन्यथा। सच है अकेले ही अपना युद्ध लड़ना पडता है
Sundar kavita adbhut pravah
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर कविता। अंतिम पंक्ति सबके अपने युद्ध अकेले तक पहुंचते-पहुंचते मन भाव विभोर हो गया। हार्दिक बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteडॉ. ज़ाकिर अली रजनीश
बहुत सुंदर कविता है। जितनी बार पढ़ो उतनी ही अच्छी लगती है।
ReplyDeleteजीवन के झंझावातों का हम सभी को येन केन प्रकारेण अकेले ही सामना करना होता है। इस भाव को आपने बहुत ही खूबसूरती से कविता में पिरो दिया है, बधाई।
ReplyDeleteबहुत ही शानदार वक्तव्य
ReplyDeleteAdbhut
ReplyDeletebahut hi sundar kavita likhi hai appne
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया है जी धन्यवाद
ReplyDelete👍🙏 वाह प्रवीण
ReplyDeleteप्रेरणा दायक कविता
बहुत सुन्दर रचना 👍
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