कब बनोगे मित्र, कह दो, शत्रुवत हो आज मन,
काम का अनुराग तजकर, क्रोध को कर त्याग मन,
दूर कब तक कर सकोगे, लोभ-अर्जित पाप मन,
और कब दोगे तिलांजलि, मोह-ऊर्जित ताप मन,
अभी भी निष्कंट घूमो, भाग्य, यश विकराल-मद में,
प्रेमजल कब लुटाओगे, तोड़ ईर्ष्या-श्राप मन ।
कब तृषा के पन्थ में विश्राम होगा,
कब हृदय की टीस का क्रम शान्त होगा,
कब रुकेंगी स्वप्न की अविराम लहरें,
और कब यह दूर मिथ्या-मान होगा ।
शत्रुवत उन्मत्त मन की, यातना न सही जाती ।
आँख में छलकी, करुण सी याचना है, बही जाती ।।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुकर्वार (23-12-2016) को "पर्दा धीरे-धीरे हट रहा है" (चर्चा अंक-2565) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शत्रु से भला कोई पूछता है कब त्यागोगे शत्रुता..मित्र का साथ लेकर शत्रु से युद्ध करना पड़ता है..
ReplyDeleteमन जाने मन ही के भाषा ।
ReplyDeleteनववर्ष की शुभकामनाये।
ReplyDeleteकब बनोगे मित्र, कह दो, शत्रुवत हो आज मन,
ReplyDeleteकाम का अनुराग तजकर, क्रोध को कर त्याग मन,
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शत्रुवत उन्मत्त मन की, यातना न सही जाती ।
आँख में छलकी, करुण सी याचना है, बही जाती ।।
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteबेहतरीन लेख .... तारीफ-ए-काबिल .... Share करने के लिए धन्यवाद...!! :) :)
ReplyDeleteकब तृषा के पन्थ में विश्राम होगा,
ReplyDeleteकब हृदय की टीस का क्रम शान्त होगा,
कब रुकेंगी स्वप्न की अविराम लहरें,
और कब यह दूर मिथ्या-मान होगा ।
👌
बहुत सुन्दर पंक्तियां सर������
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पंक्तियां सर������
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पंक्तियां सर 👌👌👍
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पंक्तियां सर������
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ReplyDeleteexcellent points altogether, you just gained a new reader. What would you suggest in regards to your publish that you made a few days in the past? Any certain? yahoo mail login