विश्व द्वन्द्व से भरा है, परस्पर विरोधी तत्व बद्ध हैं, लिपटे हैं। एक को अपनाने में दूसरा भी मुँह उठाये सामने खड़ा हो जाता है। प्रकृति का यही गुण विश्व को रोचक बनाये रखता है, लोगों में प्रवृत्ति भाव जागृत रखता है, उत्सुकता सदैव शेष रहती है। द्वन्द्व दलदल सा होता है, किसी भी एक दिशा में किये प्रयास आपको और भी उलझाते जाते हैं। दुख से निकलने का मार्ग सुख के प्रति आसक्ति नहीं है, वह तो और भी दुख में ढकेल देती है। सुख और दुख में समभाव ही निवृत्ति है। मुक्ति द्वन्द्व के किनारों में भटकने में नहीं है, द्वन्द्व से निर्द्वन्द्व की स्थिति में जाने में है। बुद्ध की मध्यमार्ग की परिकल्पना, कृष्ण की स्थितिप्रज्ञता और पतंजलि का चित्तवृत्तिनिरोध, निर्द्वन्द्व होने के ही प्रामाणिक उपाय हैं।
संतुलन तो पाना ही होगा। आप नहीं चाहेंगे तो प्रकृति आपको वह सिखा देगी, जीवन जीने के क्रम में आपको संतुलन करना आ ही जायेगा। हर दिन, जाने अनजाने, न जाने कितने निर्णय हम लेते हैं जिसमें संतुलन साधने का ही कार्य हम करते हैं। किसी को बस इतना ही ज्ञात हो जाये कि संतुलन किस समय आयेगा, कहाँ पर मिलेगा, कैसे प्राप्त होगा, उतना ही पर्याप्त है सिद्धि के लिये।
बौद्धिक स्तर पर ही नहीं वरन व्यवहारिक स्तर पर संतुलन का बहुत महत्व है। वेतन में कितना व्यय करना है, कितना बचाकर रखना है, संतुलन बिठाना पढ़ता है। जीवन के वर्ष नियत हैं, क्या करें, क्या न करें, संतुलन बिठाना पड़ता है। जीवन को कितना नियन्त्रण करें, कितना स्वतः बहने दें, संतुलन बिठाना पड़ता है। स्वाद और स्वास्थ्य में संतुलन बिठाना पड़ता है। ऐसे ही न जाने कितने संतुलन हम जीवन में बिठाते रहते हैं और उस पर विशेष ध्यान नहीं देते हैं।
ऐसा ही एक संतुलन होता है, निर्णय लेने में, उत्तर देने में, प्रतिक्रिया देने में। अतिशीघ्रता में लिये गये निर्णय बिना सोचे समझे लिये जाते हैं और बहुधा विपरीत ही पड़ते हैं। वहीं दूसरी ओर यदि सोचने में ही सारा समय बिता दिया तो प्रायः निर्णय ही औचित्यहीन हो जाता है। जहाँ त्वरित लिये निर्णयों में विचार की मात्रा कम रहती है, देर से लिये निर्णयों में फल पर प्रभाव की मात्रा कम होती है। यहाँ भी एक संतुलन बिठाना पड़ता है। निर्णय कितनी देर में ले जिससे वह सर्वाधिक प्रभावी हो।
कहावत है, काल करे सो आज कर, आज करे सो अब। विलंब करना उचित नहीं माना जाता है। निर्णय प्रक्रिया को देखें तो विलंब सदा हानिकारक भी नहीं होता है, वरन कई बार तो आवश्यक और लाभप्रद भी होता है। पर विलम्ब अधिक न हो, इष्टतम हो। इष्टतम विलम्ब का अर्थ हुआ, उतना ही विलम्ब जितना सर्वोत्तम निर्णय लेने के लिये आवश्यक है। इष्टतम विलम्ब संतुलित निर्णय के लिये अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है।
कितना विलंब करें |
इस बारे में फ्रैंक पार्टनॉय की बहुचर्चित पुस्तक ‘Wait’ पढ़ी। उसमें इष्टतम विलंब को ढंग से समझाया गया है। मिलीसेकेण्ड से लेकर दिनों तक के विलम्बित निर्णयों से आये अधिक प्रभावी निष्कर्षों के ऊपर विधिवत शोध है यह पुस्तक। उदाहरणों और प्रयोगों के द्वारा सत्यापित तथ्यों ने इष्टतम विलम्ब को वैज्ञानिकता से सिद्ध किया है। उदाहरण स्वरूप किसी भूल पर क्षमा माँगने में कितना विलम्ब इष्टतम होता है। तुरन्त ही क्षमा माँगने का समय ठीक नहीं होता है, उस समय दोनों की ही मनःस्थिति उद्वेलित होती है। बहुत समय बाद क्षमा माँगने का कोई औचित्य नहीं रह जाता है। इष्टतम विलम्ब से कई लाभ होते हैं। घटना की चर्चा हो सकती है। क्यों भूल हुयी, इस पर विचार हो सकता है। उग्रता और उपेक्षा के बीच का भाव क्षमा के लिये इष्टतम होता है। शान्त मन में संवाद अर्थयुक्त होता है।
खेलों में भी इष्टतम विलम्ब के महत्व को समझाया गया है। लॉन टेनिस के खेल में यह पाया गया है कि जो खिलाड़ी अपने शॉट को जितना अधिक विलम्बित कर सकता है, वह उतना ही सफल है। लॉन टेनिस में यह विलम्ब कुछ मिलीसेकण्ड में होता है। निश्चय ही यह विलम्बित कर सकने की क्षमता अभ्यास से आती है पर विलम्बित प्रतिक्रिया में खिलाड़ी के पास विकल्प अधिक हो जाते हैं। क्रिकेट में भी यही सिद्धान्त सटीक बैठता है। सोच कर देखिये कि देर से शॉट खेलने वाले खिलाड़ियों के पास अधिक शॉट होते हैं।
गणेश और व्यास की कहानी में और पुस्तक लेखन में इष्टतम विलंब की चर्चा अगले ब्लॉग में।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (11-12-2016) को पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
दिनांक 11/12/2016 को...
ReplyDeleteआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद... https://www.halchalwith5links.blogspot.com पर...
आप भी इस प्रस्तुति में....
सादर आमंत्रित हैं...