माननीय राजदूत के साथ हम सब |
बीजिंग से वापस चेन्दू लौटने के पहले हम सब भारतीय राजदूत श्री गोखले से शिष्टाचार भेंट करने गये। उनके सम्बोधन में रेल विश्वविद्यालय, बुलेट ट्रेन, विकास के विविध मॉडल और नौकरशाही की उभरती सोच, ये चार विषय प्रमुखता से थे। बदलते वैश्विक परिदृश्य में भारतीय पक्ष दृढ़ता और स्पष्टता से रखने वाले भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी आजकल निश्चय ही असाधारण रूप से व्यस्त हैं। इस व्यस्तता में समय निकालने और हमें सम्बोधित करने के लिये हमने उनका आभार व्यक्त किया।
बीजिंग में गैंजेस नाम के होटल में दोपहर का भोजन किया। बहुत दिनों बाद भारतीय भोजन मिला था अतः संतृप्त होकर आकंठ खाया। वहाँ से सीधे ही एयरपोर्ट के लिये निकले। सुरक्षा की दृष्टि से होने वाली तलाशी में संभावित देरी के कारण हम हर एयरपोर्ट पर २ घंटे का समय हाथ में लेकर चलते थे। बीजिंग एयरपोर्ट में लम्बी पंक्ति में प्रतीक्षा करते हुये किसी पुस्तक के दो तीन अध्याय पढ़े जा सकते हैं। खड़े खड़े और पूरे एयरपोर्ट में पैदल चलने से पूर्ण व्यायाम भी हो जाता है। स्थानीय निवासियों के लिये यह नियमित क्रम था, बहुतों को फोन पर लगे देखा, बातें कम कर रहे थे, चैट अधिक कर रहे थे। हवाई जहाज में एक सहयात्री चीनी भाषा में लिखी एक मोटी सी पुस्तक पढ़ रहा था। ध्यान जाने का प्रमुख कारण उस पर बने मशीनगन आदि शस्त्रों के चित्र थे। ऐसा तो नहीं लगता था कि वह किसी पाठ्यक्रम में पढ़ायी जाने वाली पुस्तक थी, पर इस बात की संभावना अवश्य थी कि चीनी उद्योगी एके ४७ का भी डुप्लीकेट तैयार करने के प्रयास में लगे हों।
हॉटपॉट, सड़क किनारे |
हवाई जहाज में भोजन के नाम पर फल का रस और ब्रेड ही लिया जा सकता था। भोजन के मुख्य भाग में कौन सा जानवर पड़ा हो, इस बात की अनभिज्ञता से तो हमारे माँसाहारी मित्र भी भयभीत रहते थे। हम शाकाहारियों के लिये भोजन यात्रा का सर्वाधिक दुखद पक्ष था, हवाई जहाज में भी, होटल में भी और नगर में भी। चेन्दू को चीन में खानपान की राजधानी कहा जाता है, वहाँ की गलियों सा भोजन बड़ा स्वादिष्ट माना जाता है, विशेषकर हॉटपॉट। मसालों का पानी मेज के बीच में रखा रहता है, नीचे से आग सुलगती रहती है। उबलते उस बर्तन में माँसादि के टुकड़ो को चॉपस्टिक से उठा उठा कर मेज के चारों ओर बैठे लोग खाते हैं। उसी को हॉटपॉट कहा जाता है। सड़क के किनारे खुले भोजनालयों में सायं से ही ये दृश्य दिखायी पड़ जाते हैं। चीन में सायं बाहर भोजन करने प्रचलन अधिक है। लोग कहते हैं कि वर्तमान यह तनिक कम हुआ है, एक पीढ़ी पहले तक यह बहुत ही अधिक हुआ करता था।
चीन में भोजन सायं को ही हो जाता है। चेन्दू में हम लोग को भोजन सायं ६ बजे ही परस दिया जाता था, वहाँ पर सूरज डूबने के २ घंटे पहले ही। हम भारतीय ही अंग्रेजों के प्रभाव में आकर डिनर आदि करने लगे हैं, नहीं तो जैनियों की तरह सूर्यास्त के पहले भोजन कर लेना आयुर्वेद की दृष्टि से सर्वोत्तम माना गया है। भारत से ढाई घंटे का समयान्तर होने के कारण, भारतीय समय के अनुसार हमारा भोजन सायं ४-५ बजे के ही बीच हो जाता था। रात में सोने के पहले पेट से एक बार पुनः पुकार उठती थी, तब माँ के द्वारा बाँधे हुये भोजन के थैले खोले जाते थे, कभी किसी के कमरे में, कभी किसी के सूटकेस से। वहाँ अधिक समय रहना होता तो संभवतः पेट को समझाया जा सकता था पर १५ दिन के अन्तराल में पेट से उलझना हमें ठीक न लगा।
कभी खुशी |
कभी गम |
रोटी के अभाव और चिपके चावल पर निर्वाह ने पेट में इतना हल्कापन भर दिया कि पेट में सदा ही एक रिक्त सा लगता था। फल, सलाद और रस बहुतायत से शरीर के पोषण में रत रहे। मसालों की अनुपस्थिति ने हमारी स्वाद ग्रन्थियों को आंशिक रूप से निष्क्रिय कर दिया था। उबली सब्जी और चिपके चावल, यही जीवन में रस रंग के पर्याय बन चुके थे। मेरे दोनों बच्चों को चाइनीज खाना रुचिकर लगता है, उन्हें लग रहा था कि उनके पिताजी आनन्द की सातवीं सीढ़ी में होंगे। पर सत्य यही है कि हम भारतीय जिन मसालों में डुबोकर चाइनीज भोजन तैयार करते हैं उसकी तुलना में चीन का भोजन निस्वाद ही लगेगा, नमक भी न्यूनतम। बिटिया को विश्वास दिलाने के लिये नियमित रूप से मुझे अल्पाहार और भोजन के चित्र व्हाट्सएप्प में भेजने पड़ते थे, धीरे धीरे उसे विश्वास हो गया कि पिताजी किस तपस्या में जीवन जी रहे हैं।
पता नहीं क्या था यह |
मांसाहारी मित्रों के लिये भी यह यात्रा बहुत उत्साहजनक नहीं थी। सप्ताह में एक बार खाने और विशेषकर मंगलवार में निषेध रखने वाले कई मित्रों का प्रारम्भिक उत्साह बहुत ही शीघ्र उड़ गया था। नित्यप्रति और प्रतिदिन तीन बार मांसाहार तो किसी की भी भोजनचर्या में नहीं था। साथ ही साथ आशंका यह भी थी कि पता नहीं मुर्गे और मछली के नाम पर किस जीव जन्तु को सामने परोस दे। स्वाद से पता लगाना कठिन था और संभावनाओं के आधार पर शेष धर्म भी भ्रष्ट न हो जाये, इसकी चिन्ता तो उत्कट माँसाहारियों को भी थी। एक मित्र ने बताया कि उसमें पड़ा एक विशेष प्रकार का मसाला मसूड़ों में सनसनाहट उत्पन्न करता है। वे भी शीघ्र ही ऊब गये। उनके लिये भी सड़क के किनारे का भोजन तो और भी भय उत्पन्न करने वाला था। एक बार स्थानीय बाजार में टहलते हुये साँप आदि हर प्रकार के जीव को दुकानों पर पकते और लटकते देखा था, माँसाहार के प्रति हमारे मित्र का मोहभंग उसी दिन हो गया था। विनोद की दृष्टि से ही सही पर हम भारतीय अपने चीनी बान्धवों को माँसाहार के पैमाने पर कभी नहीं पछाड़ सकते क्योंकि वे सब कुछ खा सकते हैं। जब माँसाहारी मित्र बाहर खाने में हिचकते रहे तो हम शाकाहारियों की क्या सामर्थ्य। पूरी यात्रा में बस एक बार दूध की कुल्फी खाने का साहस कर सका।
जिस होटल में हम ठहरे थे उन्हें तो बता दिया गया था कि शाकाहारी और माँसाहारी भोजन अलग अलग लगाये जायें। एक तो भाषा के आधार पर एक दूसरे को न समझ पाने की दूरी और दूसरी कि किसको शाकाहार कहें किसे नहीं, यह उन्हें न समझा पाने का कष्ट। वहाँ पर शाकाहार को सूदा बोलते थे। भले ही उन्होने कोई व्यंजन सूदा या शाकाहार में रखा हो पर व्यंजन का नया रंग रूप और आकार देखकर हमारा संशय जाग जाता था। अपने माँसाहारी मित्रों को चखाने और पूर्णतया पुष्टि करने के बाद ही हम उसे खा पाते। इस पुनीत कार्य के लिये उनका हृदय से आभार।
सर्वाधिक कष्ट हमें तब हुआ जब यात्रा के बीच में किसी होटल में खाने गये। हर स्थान पर भोजन की बफे पद्धति ही थी। हर स्थान पर पर्याप्त भीड़ थी, ऐसा लगा कि पर्यटकों के अतिरिक्त आस पास कार्य करने वाले भी वहाँ नियमित आते होंगे। मूल्य भी बहुत अधिक नहीं, ६०-७० युआन अर्थात अधिकतम ७०० रु, व्यंजन १०० से भी अधिक, हर प्रकार के। वहाँ पर खाने योग्य व्यंजन ढूढ़ पाना एक महत कार्य था। फल, रस और दही तो निश्चिन्तता से ग्रहण किये जा सकते थे पर सलाद, आइसक्रीम, सूप आदि में और क्या मिला हो उस पर संशय रहता था। मूल व्यंजनों में कुछ भी कहना कठिन था, उन्हें न लेना ही श्रेयस्कर था। उबली सब्जियाँ और चावल ही शेष रह जाते थे, उनका आभार कि हमारे अन्दर भी प्राण शेष रह पाये। अच्छा हो भविष्य में अधिक भारतीय वहाँ जाये और चीनियों को भी अपने पर्यटकीय आतिथ्य सत्कार में भारतीय खानपान को सम्मिलित करने में सहायता मिल सके।
चेन्दू और उसके दर्शनीय स्थान अगले ब्लॉग में।
good
ReplyDeletegood
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 08-09-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2459 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत ही उम्दा ..... Very nice collection in Hindi !! :)
ReplyDeleteवहां पर तो समुद्री आहार यानि मछली आदि को भी शाकाहारी माना जाता है।
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