17.8.16

चीन यात्रा - ६

चीन में हाईस्पीड रेलमार्गों के निर्माण की प्रक्रिया समझने के पहले वहाँ के स्टेशनों का स्वरूप समझ लेना आवश्यक है। स्टेशनों का वाह्य स्वरूप अलग अलग हो सकता है पर कार्यात्मक दृष्टि से उनमें एकरूपता है। स्टेशनों में कम से कम दो तल होते हैं। कई स्टेशनों में तीन से चार तक तल होते हैं। ये तल प्लेटपार्म तक सीमित नहीं होते हैं, वरन पूरे के पूरे स्टेशन के ऊपर होते हैं। ऊपर के तल में एक ओर नगरीय बस और दूसरी ओर मेट्रो के संपर्क द्वार होते हैं, नीचे के तल में प्लेटफॉर्म व रेलवे की लाइनें होती हैं। पहले तल में पहुँच कर एयरपोर्ट जैसी ही सुरक्षा जाँच होती है, बस टिकटधारक ही अन्दर जा सकते हैं। अन्दर एक बहुत बड़ा सा प्रतीक्षालय होता है, पूरा खुला हुआ। उस प्रतीक्षालय के चारों ओर दुकानें रहती हैं।  ट्रेन आने के दस मिनट पहले ही यात्रियों को स्वचलित सीढियों के माध्यम से नीचे वाले तल में जाने को मिलता है। यात्रियों को उनके पूर्वनिश्चित कोच में बैठाने के लिये एक सहायक साथ जाती है। प्लेटफार्म में यात्रियों के अतिरिक्त कोई और व्यक्ति नहीं, कोई दुकान नहीं, कोई खंभे नहीं। प्लेटफार्म पर जाने वालों और वहाँ से निकलने वालों के लिये पृथक मार्ग।

प्रथम तल को यात्री सुविधाओं के लिये विकसित करने में ही आर्थिक बुद्धिमत्ता छिपी है। वाणिज्य की दृष्टिकोण से देखा जाये तो किसी भी स्टेशन पर जितनी दुकानें आ सकती हैं, उसकी दस गुनी से अधिक दुकानें प्रथम तल में समाहित की जा सकती हैं। यदि लखनऊ स्टेशन के ऊपर का पूरा क्षेत्रफल को वाणिज्यिक रूप से विकसित किया जाये तो स्टेशन के  अन्दर और आसपास की सारी दुकाने और सुविधायें उसमें आ जायेंगी। किसी मॉल से कम नहीं दिखे वहाँ के प्रथम तल। यात्रियों के लिये जनसुविधायें, दुकानों के लिये ग्राहक और प्लेटफार्म सब प्रकार के अवरोधों से मुक्त। भारत में भी इस दिशा में कार्य प्रारम्भ किया जा चुका है और स्टेशन विकास के लिये एक कार्पोरेशन का गठन किया जा चुका है।

चीन में कोई भी रेल परियोजना केन्द्र और प्रदेश के बराबर सहयोग से बनती है। यात्रियों को रेल परिवहन की व्यवस्था करना इन सरकारों का सामाजिक दायित्व है, इसे आर्थिक बोझ के रूप में कोई नहीं लेता है। किन्तु ऐसा भी नहीं है कि रेलमार्ग कहीं भी बन जाये और सरकारें आँख बन्द कर पूरा धन लगा दें। विभिन्न स्थानों पर यातायात की कितनी माँग है, इसका निर्धारण यातायात सर्वे के लिये बने ५ संस्थानों में निरन्तर किया जाता रहता है। यही संस्थान सारे आँकड़े उपलब्ध कराते हैं। भविष्य में बढ़ने वाली माँग को भी इसमें सम्मिलित किया जाता है। औद्योगिकीकरण, नये नगरों का निर्माण, जनसंख्या का स्थानान्तरण आदि अनेकों कारकों का वैज्ञानिक विधि से आकलन एवं आँकड़ों का यथारूप संकलन किया जाता है। किन नगरों को परस्पर जोड़ने की योजना होगी, वह किन स्थानों से होकर निकलेगी, ये सब निर्णय बिना स्थानीय राजनीति के लिये जाते हैं। रेलमार्ग का निर्धारण होने पर उसके आसपास की भूमि की उपलब्धता सुनिश्चित करना राज्य सरकारों का कार्य होता है। यह बताया कि पारदर्शी प्रक्रिया और कठोर शासन का भय, इन दो तथ्यों के कारण रेलवे के लिये किये गये भूमि अधिग्रहण में कभी कोई समस्या नहीं आती है।

पहला व्यय भूमि का है। राज्य सरकारों के लिये भूमि उपलब्ध कराना अन्ततः लाभदायक होता है। पहले तो उनके राज्य के लोगों को यातायात की सुविधा मिलती है, यातायात के साधनों का विकास होने से आर्थिक गतिविधि बढ़ती है और सबसे बड़ा लाभ होता है, नगरीकरण। बुलेट मार्ग में बीजिंग से शंधाई के बीच २२ स्टेशन हैं, लगभग ६० किमी पर एक। इन सभी स्टेशनों का सम्पर्क बीजिंग और शंघाई जैसे स्टेशनों से ३-४ घंटे की दूरी पर हो जाने के कारण, इनके विकास की संभावनायें अपार हो गयी हैं। बुलेट मार्ग में आने वाले सभी स्टेशनों के आस पास लोग रहना चाहेंगे, अपने उद्योग लगाना चाहेंगे, विश्वविद्यालय, अस्पताल, कार्यालय आदि स्थापित करना चाहेंगे। नगरीकरण की यह प्रक्रिया राज्य सरकार के लिये अत्यन्त लाभकारी है। इससे न केवल क्षेत्र का आर्थिक विकास होता है, वरन कर के रूप में राज्य की आय भी होती है। तीन वर्ष पहले बंगलोर की उपनगरीय सेवाओं के विस्तार के बारे में राज्य सरकार से विचार विमर्श हो रहा था और राज्य सरकार विस्तार का व्यय वहन करने को तैयार बैठी थी। उत्सुकतावश जब उनसे पूछा कि आर्थिक रूप से आपको क्या लाभ होगा, तो उत्तर था कि यह व्यय तो भूमि की बढ़ी कीमतों के कारण रजिस्ठ्री भर से ही निकल आयेगा। यह प्रत्यक्ष लाभ हम बहुधा रेल परियोजनाओं के आकलन में आँकड़ों के रूप में नहीं रख पाते हैं। यदि रख पाते तो संभवतः रेल परियोजनायें इतनी मँहगी न लगतीं।

दूसरा बड़ा व्यय निर्माण का है। इसके लिये वहाँ के स्टेशनों के स्वरूप और उसके आर्थिक संदोहन की प्रक्रिया महत्व रखती है। जैसे ही परियोजना में रेलमार्ग के स्टेशनों को स्पष्ट निर्धारण होता है, उसमें आने वाले यात्रियों की संख्या के आधार पर उस पर वाणिज्यिक क्षेत्रफल का भी निर्धारण हो जाया है। उसके अधिकार नीलामी के माध्यम से पहले ही बेच दिये जाते हैं। निर्माण प्रारम्भ करने के लिये उसी पूँजी का उपयोग किया जाता है। जिन रेलमार्गों का आर्थिक औचित्य नहीं होता है तो उनका निर्माण व्यय वहाँ की सरकारें वहन करती हैं। २०१२ में बीजिंग में हुये ओलम्पिक में भी यही प्रक्रिया अपनायी गयी थी। खेलग्राम बनाने के पहले ही उनकी नीलामी कर दी गयी और पूरा का पूरा पैसा निर्माण कार्य में लग गया था। निर्माण हुआ, सफल खेल का आयोजन हुआ और उसके बाद घरों का आवंटन हुआ। भारत में यह मॉडल कितना सफल होगा, इस पर प्रयोग होना शेष है, पर बुलेट स्टेशन के प्रथम तल पर बनने वाले मॉल में लोग अपना व्यवसाय अवश्य स्थापित करना चाहेंगे। यही नहीं, अभी के स्टेशनों के प्रथम तल का स्वरूप बनाकर उसके वाणिज्यिक क्षेत्रफल की नीलामी से इतना धन आ जायेगा कि निर्माण कार्य प्रारम्भ कराया जा सके।

तीसरा व्यय बुलेट ट्रेनों के परिचालन का है। उसका धन ट्रेन के किराये से आता है। यदि निर्माण का पूरा धन वाणिज्यिक गतिविधि से न आ पाये तो सरकार यह निर्धारण कर सकती है कि उसका कितना भाग वह स्वयं वहन करेगी और कितना भाग यात्रियों पर डालेगी। परिचालन और रखरखाव के लिये दो अलग विभाग रहते हैं जिनके बीच यह समझौता होता है कि उस रेलमार्ग में गाड़ियों के परिचालन के लिये कितना धन दिया जाये।  यह दर प्रति ट्रेन प्रति किमी निर्धारित की जाती है। चीन में यह दर एक ट्रेन के लिये रू ५०० प्रतिकिमी है। इस दृष्टि से दिल्ली और चेन्नई के बीच २१६५ किमी की दूरी में बुलेट ट्रेन चलाने का परिचालनिक व्यय लगभग रु ११ लाख होगा। अधिक लाभ के लिये परिचालन विभाग अधिक ट्रेनें चलायेगा और रख रखाव वाला विभाग भी अपना कार्य शीघ्रता से करेगा, यह संतुलन संसाधनों का अधिकतम संदोहन करता है।


रेल परियोजना के निर्माण और परिचालन का अर्थशास्त्र अत्यत्न सरल दिखता है यदि तीनों व्ययों को आपस में गड्डमड्ड न किया जाये। यदि भूमि और निर्माण के सारे व्यय का बोझ यात्रियों पर डाला जाता है तो आर्थिक रूप से परियोजना असाध्य हो जायेगी। प्रक्रिया के तीन चरण हैं और प्रयास इस बात का रहता है कि एक चरण का प्रभाव दूसरे चरण पर न्यूनतम हो। यह सुनिश्चित करने के लिये योजना और उसका चरणबद्ध क्रियान्वयन अत्यन्त महत्वपूर्ण हो जाता है। इस निर्णय प्रक्रिया को सुदृढ़ आधार देने में वहाँ के रेल विश्वविद्यालयों और सर्वे संस्थानों की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण है। हम इसे किस तरह अपना सकते हैं, इससे संबंधित अन्य तथ्य अगले ब्लॉग में।

4 comments:

  1. सारगर्भित जानकारी .....

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18-8-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2438 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  3. आपकी चीन यात्रा का विशद वर्णन काफी ज्ञानवर्धक है. इसे हर किसी को पढना चाहिए.

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  4. विस्तृत एवं क्रमबद्ध अध्ययन।

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