दिल्ली से दोपहर बारह बजे की उड़ान, गुआन्झो के लिये, साढ़े पाँच घंटे की। एयरपोर्ट पर उतारने का स्थान नहीं होने के कारण, हवाई जहाज गुआन्झो के ऊपर ही घंटे भर मँडराता रहा। हांगकांग से लगभग २०० किमी दूर, गुआन्झो में २०१० के एशियाई खेल हुये थे। चीन और भारत के समय में ढाई घंटे का अन्तर है। वहाँ के समयानुसार रात को नौ बजे हम गुआन्झो पहुँचे। वहाँ से चेन्दू की फ्लाईट तीन घंटे से अधिक देरी से थी, रात को एक बजे वहाँ से निकल कर रात को साढ़े तीन बजे हम चेन्दू पहुँच सके। परिवहन विश्वविद्यालय के होटल पहुँच कर सोने में रात का चार बज गया था।
साउथ वेस्टर्न जियोटॉन यूनिवर्सिटी (SWJTU), चीन की चार रेलवे यूनीवर्सिटी में से एक है। जियोटॉन का शाब्दिक अर्थ परिवहन या संचार होता है। इस विश्वविद्यालय में रेलवे संबंधित प्रशिक्षण, शोध व मानकीकरण होता है। इसके अतिरिक्त देश भर में ५ केन्द्र हैं जो परिवहन संबंधी आँकड़ों को एकत्र करते हैं। ये दोनों संस्थान रेलवे की आधारभूत निर्णय प्रक्रिया के स्तंभ हैं। किन्ही दो स्थानों के बीच किस प्रकार का रेल तन्त्र आयेगा, वह किन स्थानों से होकर निकलेगा, किस तकनीक से उसे बनाया जायेगा, कैसे इंजन और कोच उसमें प्रयुक्त होंगे और उसका संचालन कैसे होगा, इसकी विस्तृत रूपरेखा तैयार करने में इन संस्थानों का महत योगदान रहता है। भारतीय रेल बजट में घोषित रेल विश्वविद्यालयों का आगामी स्वरूप कैसा होगा, उसकी समग्र संभावना चीन के परिवहन विश्वविद्यालय में दिखायी पड़ी।
तीन सौ तैंतीस एकड़ में फैला यह विश्वविद्यालय १८९६ में स्थापित हुआ था। सारे संबद्ध विद्यालयों को मिलाकर यहाँ चालीस हजार विद्यार्थी, तीन हजार अध्यापक और लगभग हजार अन्य सहायक हैं। स्वागत कार्यक्रम में वहाँ के डीन ने सेमिनार की विस्तृत रूपरेखा बतायी। उनके उद्बोधन चीनी में थे, अनुवादक उसे अंग्रेजी में अनुवाद कर रहे थे। सेमिनार में रेलवे निर्माण, योजना, यात्री सुविधा और परिचालन के ऊपर विस्तृत चर्चा हुयी। चीन ने रेलवे विस्तार और संचालन में जिन उन्नत सिद्धान्तों को अपनाया है उनका भारत के साथ तुलनात्मक अध्ययन आवश्यक हो जाता है।
यदि आपके मन रेलवे के क्षेत्र में चीन की प्रगति के बारे में कोई संशय है तो उन्हें आँकड़ों के माध्यम से दूर किया जा सकता है। एक और तर्क से चीन से अपनी तुलना न करने का बहाना ढूढ़ा जाता रहा है। आप कह सकते हैं कि वहाँ पर शासन व्यवस्था कठोर है, विरोध करने वालों को दण्डित किया जाता है, इस प्रकार वे कुछ भी कर सकने में सक्षम हैं। वे जो सोच लेते हैं, कर सकते हैं। हमारे देश में लोकतन्त्र हैं, यहाँ पर सबको अपनी बातें कहने का अधिकार है, इसीलिये हम विकास के क्षेत्र में मन्दगति धारण किये हैं। इस तर्क के आधार पर तुलनात्मक अध्ययन का तत्काल पटाक्षेप किया जा सकता है, पर यह तर्क अधिकांश भारतीयों को स्वीकार नहीं होगा। यद्यपि लोकतन्त्र है, सबको साथ लेकर चलने में समय लग सकता है, पर हमारी तार्किक शक्ति इतनी भी अशक्त नहीं है कि हमें अच्छी बात भी समझ न आये। संस्कृति के अध्यायों में हमारी सभ्यता ज्ञान और उन्नति के शिखर स्तम्भों में विद्यमान रही है। सदियों की पराधीनता के कारण हम पिछड़ अवश्य गये हैं, पर प्रतियोगिता से बाहर नहीं हुये हैं। हमारा अस्तित्व हमें रह रहकर झकझोरता है, विश्वगुरु के रूप में पुनर्स्थापित होने के लिये।
अधिक पीछे न जायें, १९४७ में हमारे पास ५४००० किमी रेलमार्ग था, चीन के पास उसका अाधा अर्थात २७००० किमी। पिछले ६९ वर्षों में हम मात्र ११००० किमी जोड़ पाये, जबकि चीन ने हमसे १० गुना अधिक अर्थात ११०००० रेलमार्ग बिछा दिया। बीस वर्ष पहले तक दोनों के रेलमार्गों की लम्बाई बराबर थी, इस समय चीन में भारत का दुगना रेलमार्ग है। यही नहीं, यदि उनकी योजना के अनुसार उनका कार्य होता गया, जो कि समय से आगे चल रही हैं, तो २०३० तक चीन के पास दो लाख से अधिक रेलमार्ग होगा, भारत के वर्तमान रेलमार्ग से तिगुना। हमारे लिये पिछले ६९ वर्ष अपने गौरव को भुलाकर पश्चिम की नकल उतारने में चले गये, अपनों को समझाने मनाने में बीत गये, राजनीति करने में निकल गये, चीन अथक परिश्रम करता गया और हमसे इतना आगे निकल गया कि जिसे छू पाने की कल्पना भी हमें स्वेदसिंधु में डुबो जाती है।
बुलेट ट्रेन को लेकर जहाँ एक ओर हमारे तथाकथित चर्चाकार उसके लाभहानि की विवेचना मे उन्मत रहते हैं, वहीं चीन ने पिछले १५ वर्षों में २०००० किमी का हाईस्पीड रेलमार्ग निर्मित कर लिया। बुलेट ट्रेनें केवल उच्च तकनीक का प्रदर्शन ही नहीं, वरन उनकी उपयोगिता अत्यधिक है। वर्तमान में जितने यात्री सामान्य गाड़ियों मे नहीं बैठते हैं, उससे कहीं अधिक बुलेट ट्रेन में यात्रा करते हैं। वर्तमान में बुलेट ट्रेनों की अधिकतम गति ३६० किमी प्रति घंटा की है, पर उन्हें ५०० किमी प्रति घंटा पहुँचने की ललक है। उनकी योजना २०३० तक ६०००० किमी हाईस्पीड रेलमार्ग और निर्माण करने की है।
चार दिन पहले ही चीन के पूर्वी समुद्री तट से चलकर पहली मालगाड़ी तेहरान पहुँची है। चीन जिस तरह समुद्र द्वारा लम्बे और धीरे मार्ग की निर्भरता समाप्त कर रेलमार्ग से यूरेशिया के पश्चिमी सिरों को जोड़ रहा है, उससे वह वस्तुओं के परिवहन व्यय को अधिकाधिक कम कर देगा और निकट भविष्य में सस्ता माल भेज कर अपना व्यापारिक आधिपत्य स्थापित कर लेगा। यही नहीं, मंगोलिया, तजाकिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल, वर्मा और थाईलैंड को हाईस्पीड रेलमार्ग से जोड़ने की उसकी विस्तारवादी योजना इस महाद्वीप के यातायात परिदृश्य में आमूलचूल परिवर्तन कर देगी। तिब्बत तक का रेलमार्ग संभवतः पर्याप्त नहीं था, ऑक्टोपस की तरह चीन के रेलमार्ग की पहुँच भारत के चारों ओर अपनी उपस्थिति दिखायेगी।
विकल्प तुलना करने या न करने का नहीं है। काल के भाल पर बस दो विकल्प स्पष्ट हैं, या तो हम उद्धत हों और विकास में लग जायें, या आरोपो प्रत्यारोपों के मकडजाल में पड़े रहें और भविष्य के ग्रास में विलीन हो जायें।
कुछ और तथ्य अगले ब्लॉग में।
अच्छा वर्णन प्रस्तुत कर रहे हैं आप .....
ReplyDeleteविस्तृत विवेचन।
ReplyDeleteआंखे खोलने वाला लेख, हम चीन का पासंग भी नहीं ...
ReplyDeleteचीन को कभी अफीमचियों का देश कहा जाता था । आज कमाल है
ReplyDeleteचीन की उपलब्धियों को देखकर गर्व भी होता है, भारत को उससे बहुत कुछ सीखना है
ReplyDeleteसंक्षिप्त और सटीक लिखा है। बधाइयाँ।
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 11-08-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2431 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
विस्तृत और सटीक....
ReplyDeleteसच जब तक आपसी आरोप- प्रत्यारोप में उलझते रहेंगे हम तब तक वास्तविक विकास से दूर ही रहना होगा ,,..जाने कब हम चीन अथवा जापान या अन्य देशों से सबक लेंगे
ReplyDeleteबहुत सुन्दर जानकारी ..
चीन अपने श्रम से प्रगतिशील है तभी तो पूरी चौधराहट के साथ रहता है।
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