पर्यटकों को थियानमेन चौक से १ किमी पहले ही बस से उतार दिया गया। थियानमेन चौक के चारों ओर बने पथ पर किसी भी वाहन को रुकने की अनुमति नहीं थी। थियानमेन चौक और उसके चारों ओर के क्षेत्र को छावनी सा स्वरूप दिया था, सैकड़ों की संख्या में सैनिक, सबको शंका की दृष्टि से घूरते सीसीटीवी कैमरे, दो दो बार तलाशी, पासपोर्ट की चेकिंग, लगा कि १९८९ की क्रान्ति के दुस्वप्न वहाँ के शासकों को आज भी आते होंगे। यदि इतनी सुरक्षा व्यवस्था न होती तो संभवतः हमें भी वह नरसंहार की घटना इतनी गंभीरता और प्रचुरता से याद न आती। ४ जून १९८९ की यह घटना उस समय हम छात्रों को अन्दर तक झकझोर गयी थी। युवा मन में ऐसी घटनायें गहरे पैठ जाती हैं। मन में गम्भीरता, उत्कण्ठा, उत्सुकता, क्षोभ, न जाने कितना कुछ चल रहा था।
थियानमेन द्वार |
फॉरबिडेन सिटी का मानचित्र |
गाइड ने बताया कि इसमें कुल ९९९९ कक्ष हैं। सैनिक क्षेत्र, साहित्य क्षेत्र, पवित्र क्षेत्र, बौद्धिक क्षेत्र और शान्त क्षेत्र में बँटे हुये पूरे परिसर में ९८० भवन हैं। सारे भवनों का स्थापत्य लगभग एक जैसा ही था, आकार, क्षेत्र और छतों के रंग के आधार पर उनके उपयोगकर्ता निर्धारित होते थे। पीला रंग राजा का, हरा रंग राजकुमारों का, काला रंग पुस्तकालय का, सांस्कृतिक मान्यताओं के अनुसार। विभिन्न आकार के आन्तरिक द्वार व सभाकक्ष भव्य औऱ व्यवस्थित योजना से आबद्ध थे। टाओ, कन्फ्यूसियस और बुद्ध शैलियों के रहस्यों से भरे कई भवनों की कथा हमारे गाइड ने सुनायी। वहाँ के दरवाजों में ९x९ के कुल ८१ कुण्डे लगे थे जिनका अभिप्राय हमें समझ नहीं आया। यहाँ पर लकड़ी, पत्थरों, धातुओं आदि से बनी जितनी कलाकृतियाँ रखी हैं उसके ठीक से देखने के लिये ४-५ घंटे का समय चाहिये। हमारे पास २ घंटे ही थे। एक अधिकारी जो वहाँ एक बार आ चुके थे, उनकी सहायता से हमने चुने हुये भवन, कक्ष और कलाकृतियाँ देखीं।
चीन की दीवार पर एक टॉवर |
यह एक विडम्बना ही है कि जिनसे बचने के लिये चीन की दीवार का निर्माण कराया गया उनके दो राजवंश, मंगोलों के युआन और मांचुओं के क्विंग राजवंशों ने चीन पर ४०० वर्षों से अधिक शासन किया। परिहास में लोग कहते हैं कि जिन्हें रोकने के लिये यह दीवार बनायी गयी थी, उन्हें तो नहीं रोक पायी पर जो नागरिक आक्राताओं के आतंक से बचकर भागना चाहते थे, उनके भागने में यह बाधक बनी रही। इस दीवार ने रेशम मार्ग को भी आक्रमणों से बचाये रखा। मंगोल राजवंशों के समय में इस व्यापारिक मार्ग को सर्वाधिक प्रश्रय मिला।
चीन की दीवार पर चढ़ाई |
सुरक्षा की भावना कितनी गहरी होती है कि ८००० किमी से भी बड़ी दीवार बना दी जाती है। काश रेशम मार्ग पर स्थित खाइबर दर्रे पर भारत ने कोई ऐसी ही दीवार बनाई होती तो भारत का इतिहास इतना क्रन्दनीय नहीं होता। ५३ किमी लम्बाई के इस दर्रे की चौड़ाई ५०-१०० मी के बीच ही है। सिकन्दर, तैमूरलंग, गजनी, गौरी, चंगेजखान, बाबर, नादिरशाह आदि सारे आक्रमण इसी दर्रे से हुये। चीन की दीवार अब विशुद्ध पर्यटन का कार्य करती है, पाकिस्तान के अधिकार में इस खाइबर दर्रे में अभी भी हथियारों की तस्करी चल रही है। पता नहीं, इतिहास क्या परिहास करता है।
बीजिंग के शेष स्थानों पर अगले ब्लॉग में।