तूने अपना जीवन यदि,
शब्दों में डाला, निष्फल है ।
जीवन तो तेरा वह होगा,
जो शब्दों की उत्पत्ति बने ।।१।।
आदर्शों की राह पकड़ कर,
चलते जाना कठिन नहीं है ।
लेकिन तेरे पदचिन्हों से,
यदि राह बने तो बात बने ।।२।।
प्राणार्पण भी श्रेयस्कर है,
निर्भरता यदि आधार बने ।
तेजयुक्त जीवन तेरा,
अर्जित सुख का आधार बने ।।३।।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-03-2016) को "सूरज तो सबकी छत पर है" (चर्चा अंक - 2296) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर।
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