उतर गया गहरी पर्तों में,
जीवन का चीत्कार उमड़ कर ।
गूँज गया मन में कोलाहल,
हिले तन्तु अनुनादित होकर ।।१।।
स्वार्थ पूर्ति के शब्द तुम्हारे,
गर्म द्रव्य बन उतर गये हैं ।
शंकातृप्त तुम्हारी आँखें,
मेरे मन को अकुलातीं हैं ।।२।।
देखो भौतिक प्यास तुम्हारी,
जीवन का रस ले डूबी है ।
फिर भी तेरा स्वप्न कक्ष,
जाने कब से एकान्त लग रहा ।।३।।
व्यर्थ तुम्हारे इस चिन्तन ने,
जीवन का सौन्दर्य मिटाया ।
आओ मिलकर इस जीवन मे,
सुख का सुन्दर स्रोत ढूढ़ लें ।।४।।
Saras mnbhavan......
ReplyDeleteसुंदर रचना |भौतिक प्यास के चक्कर में लाईफ अनबैलेंस हो जाती हैं |
ReplyDeleteमातृत्व की तैयारी
अलौकिक प्यास से सन्तुलन बनेगा।
ReplyDeleteभाव पूर्ण ... सुन्दरता को तलाशती रचना ...
ReplyDeleteसच है अतृप्त भौतिक प्यास के पीछे भागते हुए हम जीवन आनंद से कितना दूर हो जाते हैं। बहुत सुन्दर और मनभावन प्रस्तुति...
ReplyDeleteसच है अतृप्त भौतिक प्यास के पीछे भागते हुए हम जीवन आनंद से कितना दूर हो जाते हैं। बहुत सुन्दर और मनभावन प्रस्तुति...
ReplyDeletebehad bhavpurn hai sundar prastuti
ReplyDeleteमन तो हमेशा अतृप्त है ,संतोष ही इसका समाधान है --सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कविता प्रवीण जी। बधाई आपको।
ReplyDeleteसुन्दर पंक्तियां ....
ReplyDelete