यादों के चित्रकार ने थे, अति मधुर चित्र तेरे खींचे,
तब हो जीवन्त कल्पना ने, ला अद्भुत रंग उसमें सींचे ।
सौन्दर्य-देव ने फिर उसमें, भर दी आकर्षण की फुहार,
मेरे जीवन की स्वप्न-तरी, चल पड़ी सहज तेरे पीछे ।।
तेरे यौवन से हो वाष्पित,
सौन्दर्यामृत का सुखद नीर ।
रस-मेघ रूप में आच्छादित,
मैं सिंचित होने को अधीर ।।
उमड़ रहे रस-मेघों को,
बरसा मन उपवन में समीर ।
चख यौवन मधुरस उत्सुक है,
मधुमय हो जाने को शरीर ।।
सुंदर काव्य रचना ....
ReplyDeleteप्रथम पंक्ति को ऐसे सम्पादित करके देखे "यादों के चित्रकार ने,अति मधुर थे तेरे चित्र खींचे,"
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (08-02-2016) को "आयेंगे ऋतुराज बसंत" (चर्चा अंक-2246) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " बेवक़्त अगर जाऊँगा " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteचख यौवन मधुरस उत्सुक है,
ReplyDeleteमधुमय हो जाने को शरीर
बहुत सुंदर।
Bahut khoob!
ReplyDeleteसुंदर रचना |श्रृंगार रस|
ReplyDeleteUfffff ;)
ReplyDeleteUfffff ;)
ReplyDeleteसुंदर।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और भावमयी रचना...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और भावमयी रचना...
ReplyDeleteऐसा मधुरस मिलता रहे तो कौन नहीं मधुमाय जो जाना चाहेगा ... उत्तम रचना ...
ReplyDeleteसुन्दर मधुरम कृति ...
ReplyDeleteसुन्दर रचना के लिए साधुवाद!
ReplyDeleteअद्भुत रंग ...
ReplyDeleteप्रेमपूर्ण कविता।
ReplyDeleteभावमयी सुन्दर पंक्तियां .......
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