आज फिर क्यों याद आयी,
नाव फिर से डगमगाई ।
ध्येय में क्या आज, अपने भी पराये हो चुके हैं,
ध्येय ही जीवन है, क्या और अब कुछ भी नहीं है ।
ध्येय की वीरानियों में, एक स्वर देता सुनाई ।
आज फिर क्यों याद आयी ।।१।।
शुष्क धरती पर कोई, मृदुफल कभी बोता नहीं है,
साथ जल का न मिले, तो फल कोई होता नहीं है ।
प्रेम जल है, ध्येय फल है, यह सनातन रीति भाई ।
आज फिर क्यों याद आयी ।।२।।
आज जब आराध्य को कुछ फूल अर्पित हो रहे हैं,
क्यों समुन्दर भ्रान्तियों के फिर हिलोरें ले रहे हैं ।
नयन में क्यों ध्येय-ज्योति, अश्रु बनकर डबडबाई ।
आज फिर क्यों याद आयी ।।३।।
आज जब दिन का परिश्रम, रात्रि का सुख चाहता है,
शान्ति में यादों का झोंका, ध्यान सारा बाँटता है ।
रागिनी फिर आज अपने, स्वर में क्यों संताप लायी ।
आज फिर क्यों याद आयी ।।४।।
ध्येय पथ में प्रेम का व्यवधान तो चिर काल से है,
किन्तु मानव की प्रतिष्ठा आज शर-सन्धान से है ।
फिर भी मैनें ध्येय-प्रतिमा प्रेम के जल से बनायी ।
आज फिर क्यों याद आयी ।।५।।
ध्येय पथ में प्रेम का व्यवधान तो चिर काल से है,
ReplyDeleteकिन्तु मानव की प्रतिष्ठा आज शर-सन्धान से है ।
फिर भी मैनें ध्येय-प्रतिमा प्रेम के जल से बनायी ।
आज फिर क्यों याद आयी
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बहुत सुन्दर ...
आपकी लिखी रचना, "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 25 जनवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (25-01-2016) को "मैं क्यों कवि बन बैठा" (चर्चा अंक-2232) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर गीतमय छन्दयुक्त, सीधे ह्रदय में उतरता गीत।
ReplyDeletenice...
ReplyDeleteAnupam bhavon k saath sundar shabd sanyojan.....
ReplyDeleteध्येय यदि निश्छल है तो प्रेम भी सहज प्राप्त होता है।
ReplyDeleteअतिसुन्दर काव्य .....
ReplyDeleteमन में ऐसे भटकाव आते हैं पर निश्चय इंसान को डगमगाने नहीं देता ...
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