मत दे वियोग सा असह्य शब्द,
यह धैर्य-बन्ध बह जायेगा ।
यह महाप्रतीक्षा का पर्वत,
बस पल भर में ढह जायेगा ।।१।।
जीवन के पथ में संदोहित,
तब भाव सभी उड़ जायेंगे ।
जीवन रस दाता मेघ सभी,
निज पंथ छोड़ मुड़ जायेंगे ।।२।।
सुख के भी सब स्रोत हमारे,
दूर दूर हो जायेंगे ।
जो लिये पात्र आशा मदिरा,
वह चूर चूर हो जायेंगे ।।३।।
हो रक्तिक आज सभी यादें,
दर्दों में जा उतरायेंगी ।
तन मन शीतलता की दात्री,
ही स्वयं अनल बन जायेगी ।।४।।
हो व्यथित विचारों की सरिता,
निज धार स्वयं ही बदलेगी ।
अमृतमय स्वप्नों की रचना,
फिर आज मुझे ही डस लेगी।।५।।
तब यौवन की तृष्णायें सब,
कर ताण्डव मन में नाचेंगी ।
जीवन की सुन्दर रागनियाँ,
कविता शोकाकुल बाँचेंगी ।।६।।
हो जड़वत आज सभी गतियाँ,
बस बीच पंथ रुक जायेंगी ।
तेरे ऊपर केन्द्रित जो थीं,
वे निष्ठायें थक जायेंगी ।।७।।
मधुरे तेरा है कार्य बड़ा,
मेरे इस जीवन-मंचन में ।
प्रतिपल, प्रतिक्षण तू आमन्त्रित,
मेरे उजड़े से उपवन में ।।८।।
बहुत ही बेहतरीन ।
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन ।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (18-01-2016) को "देश की दौलत मिलकर खाई, सबके सब मौसेरे भाई" (चर्चा अंक-2225) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
दिल को छूती उत्कृष्ट अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteभावमयी प्रस्तुति
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "मौत का व्यवसायीकरण - ब्लॉग बुलेटिन" , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteउम्दा लेखन :)
ReplyDeleteहो व्यथित विचारों की सरिता,
ReplyDeleteनिज धार स्वयं ही बदलेगी ।
अमृतमय स्वप्नों की रचना,
फिर आज मुझे ही डस लेगी।
...बहुत सुन्दर ...
वियोग भी विचित्र है, कभी रामायण का सृजन, कभी कालीदास का जन्म,तो पन्त,प्रसाद और महादेवी, ये सभी वियोग के ही सृजन हैं।
ReplyDeleteवाह वाह वाह। बहुत मधुर।
ReplyDeleteवियोगी होगा पहला कवि,
ReplyDeleteआह से उपजा होगा गान।
Bahut badhiya bhaiya..Awwesome!
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन ।
ReplyDeleteशानदार....
ReplyDeleteहो जड़वत आज सभी गतियाँ,
ReplyDeleteबस बीच पंथ रुक जायेंगी ।
तेरे ऊपर केन्द्रित जो थीं,
वे निष्ठायें थक जायेंगी ।।७।।
मधुरे तेरा है कार्य बड़ा,
मेरे इस जीवन-मंचन में ।
प्रतिपल, प्रतिक्षण तू आमन्त्रित,
मेरे उजड़े से उपवन में ।।८।।
आह, यही तीव्र भावना बनाती है कवि और बनती है कविता।
Life and its musings. Beautiful poem. Reading your work after ages.
ReplyDeleteगहन...गंभीर।
ReplyDeleteउम्दा लेखन बहुत ही बेहतरीन ।
ReplyDeleteकमल तक की लम्बी यात्रा क्या ऐसी ही होती है ?
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