देहभान में प्राण तिरोहित,
अन्तर आत्मा दुखी बेचारी ।
प्रेम भक्ति की सुधा चखा दो,
राधा माधव, कृष्ण मुरारी ।।१।।
भ्रम टूटा, मैं मुझसे छूटा,
नित माया की चोट करारी ।
मुझको अपनी गोद छुपा लो,
गोपी रक्षक, हे गिरिधारी ।।२।।
जग की जगमग रास न आये,
कैसे रह जाऊँ संसारी ।
मुझमें अपना रंग चढ़ा दो,
मेरे जीवन के अधिकारी ।।३।।
जीवन की अक्षय अभिलाषा,
मनमोहन, हे वंशीधारी ।
वृन्दावन मम हृदय उतारो,
प्रेम सरोवर, कुंज बिहारी ।।४।।
आनन्दित मन भरे कुलाँछे,
तेरी लीलायें अति प्यारी ।
बिन तेरे सब शान्त शुष्क है,
गोविन्दा, हे गोकुलचारी ।।५।।
हे शब्दों के उद्भवकर्ता,
तुम्हें समर्पित कृतियाँ सारी ।
छंदों के इस तुच्छ भोग को,
स्वीकारो हे रास बिहारी ।।६।।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 21 सम्बर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteजय मां हाटेशवरी....
ReplyDeleteआप ने लिखा...
कुठ लोगों ने ही पढ़ा...
हमारा प्रयास है कि इसे सभी पढ़े...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना....
दिनांक 21/12/2015 को रचना के महत्वपूर्ण अंश के साथ....
चर्चा मंच[कुलदीप ठाकुर द्वारा प्रस्तुत चर्चा] पर... लिंक की जा रही है...
इस चर्चा में आप भी सादर आमंत्रित हैं...
टिप्पणियों के माध्यम से आप के सुझावों का स्वागत है....
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
कुलदीप ठाकुर...
सुंदर भजन। बधाई हो।
ReplyDeleteसुंदर भजन। बधाई हो।
ReplyDeleteभक्ति बोध की ओर बढ़ते कदम।
ReplyDeleteसर मेरे पास शब्द और तरीका नही है इतनी सुंदर
ReplyDeleteकविता पर कुछ कमेंट कर सकू ।
पर मन की तरंगो को नही रोक पता हूँ उसमे डूबने से।
बहुत सुन्दर ! शब्द, भाव एवं प्रवाह सब एक से बढ़ कर एक
ReplyDeleteबहुत खूब, मंगलकामनाएं आपकी लेखनी को !!
ReplyDeleteअद्भुत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteराधा कृष्ण पर एक बेहतरीन कविता |सर नववर्ष की शुभकामनाएँ |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रवीण जी। मुझे लगता है असंसारी होने के लिए तो शिव की आराधना श्रेष्ठ रहेगी।
ReplyDeleteअनुपम !
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