अतुलित रूप सम्पदा तेरी,
मादकता मधु का निर्झर ।
नयनों में अप्रतिमाकर्षण,
चेहरे का सौन्दर्य प्रखर ।।१।।
नयन तुम्हारे कान्ति-सरोवर,
चेहरे पर अभिराम ज्योत्सना ।
परिचय तेरा शब्द रहित है,
तुम पृथ्वी पर अमर-अंगना ।।२।।
मधुरस के इस महासिन्धु में,
मन नैया चुपचाप बढ़ रही ।
मेरी सृजना, चुपके चुपके,
तेरा यह आकार गढ़ रही ।।३।।
पर यथार्थ में मिली नहीं तुम,
स्वप्नों में आ जाती प्रतिदिन ।
राग सभी अनसुने हैं अभी,
जो आकर गा जाती हर दिन ।।४।।
ना जानूँ, तुम कौन स्वप्न में,
मनस पिपासा जगा रही हो ।
ना जाने क्यों आशाआें के,
पुष्प सुनहरे खिला रही हो ।।५।।
अनुभूतित सौन्दर्य अतुल है,
पर अन्तः उत्सुक अतीव है ।
मैं जीवन की प्रथम संगिनी,
में तेरी आकृति चाहूँगा ।।६।।
छायावाद की याद दिलाती कविता।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 08 दिसम्बर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर।
ReplyDeleteकुछ लोगों के लिए ये हिंदी का एक क्लिष्ट रूप हो सकता है. पर मेरे लिए मधुरतम है. 'नैया' शब्द थोड़ा सा सरल है नौका भी हो सकता था पर मेरी समझ नौका को रुखा और नैया को तुलनात्मक रूप से मधुर मानती है. बेहद मीठी है यह रचना. आपकी रचना की मिठास दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही है. :-)
ReplyDeleteजैसे मनस प्रयुक्त हुआ है, सुन्दर. अंत में अन्तः की जगह अन्तस सरलता और मिठास बढ़ा देगा........!!!!!
ReplyDeleteज्यादा बोल रहा हूँ ना ....!!!!!!
:-P
बहुत ही सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ....
ReplyDeleteVery Beautiful poem with saunrdrya bhav.
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeletewww.ramcharitmanas.in
सुन्दर रचना
ReplyDeletewww.ramcharitmanas.in
अति सुन्दर !!!
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