22.11.15

हृदय-कक्ष

हृदय के विस्तृत भवन में, अनुभवों से,
किये निर्मित काल्पनिक कुछ कक्ष मैंने ।

सजा उनको आचरण की सहजता से,
तृप्त करने कल्पना की प्यास मैंने ।

किया शब्दित अनुभवों को जटिलता से,
ग्रहण करके लुप्त होते स्वप्न मैंने ।

और आँसू अनवरत बहते नयन से,
कभी पाये रिक्त हृद के कक्ष मैंने ।

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