हृदय के विस्तृत भवन में, अनुभवों से,
किये निर्मित काल्पनिक कुछ कक्ष मैंने ।
सजा उनको आचरण की सहजता से,
तृप्त करने कल्पना की प्यास मैंने ।
किया शब्दित अनुभवों को जटिलता से,
ग्रहण करके लुप्त होते स्वप्न मैंने ।
और आँसू अनवरत बहते नयन से,
कभी पाये रिक्त हृद के कक्ष मैंने ।
कभी पाये रिक्त हृद के कक्ष मैंने ।
सुन्दर !
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