अति प्रसन्न हूँ, इस पथ पर, तेरा ढाढ़स और प्यार मिला है,
पृथक विचारों को तेरे ही, भावों का आधार मिला है,
अन्तः पीड़ा को तेरे कोमल मन का संसार मिला है,
सच कहता हूँ, बड़े भाग्य से, तेरे सा उपहार मिला है ।
कविता बनकर आज हृदय से प्यार बहे तो मत रोको,
इस बन्धन को प्रथम बार ही, शब्दों का आकार मिला है ।।
सुन्दर रचना ......
मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन की प्रतीक्षा है |
http://hindikavitamanch.blogspot.in/
http://kahaniyadilse.blogspot.in/
Wonderful!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भाव
ReplyDeleteएक बार फिर अति सुन्दर
ReplyDeleteएक बार फिर अति सुन्दर
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (17-11-2015) को "छठ पर्व की उपासना" (चर्चा-अंक 2163) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
bilkul sacche man ke udgaar abivakt ho pade hain.
ReplyDeleteAap log sachhe bharatmata ke suputra hai ...mera kotisha abhivadan swikar kare.....
ReplyDeleteआत्मीय !
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