आँखों से क्यों खींच रही हो,
आकर्षण-तरु सींच रही हो,
नहीं शक्ति, आमन्त्रण तज दूँ,
उद्वेलित हूँ, नहीं सहज हूँ,
साँसों का आवेग विषम है,
आशंकित हूँ, पंथ प्रथम है ।
प्रेम तुम्हारा, आधी रचना,
आधा जगना, आधा सपना,
नहीं सूझता है कुछ मन को,
कैसे रोकूँ आज समय को,
सुख, व्याकुलता मिश्रित क्रम है,
आशंकित हूँ, पंथ प्रथम है ।
आकर्षण-तरु सींच रही हो,
नहीं शक्ति, आमन्त्रण तज दूँ,
उद्वेलित हूँ, नहीं सहज हूँ,
साँसों का आवेग विषम है,
आशंकित हूँ, पंथ प्रथम है ।
प्रेम तुम्हारा, आधी रचना,
आधा जगना, आधा सपना,
नहीं सूझता है कुछ मन को,
कैसे रोकूँ आज समय को,
सुख, व्याकुलता मिश्रित क्रम है,
आशंकित हूँ, पंथ प्रथम है ।
सुख, व्याकुलता मिश्रित क्रम है,
ReplyDeleteआशंकित हूँ, पंथ प्रथम है
क्या खूब बात कही आपने
नही शक्ति आमन्त्रण तज दूँ(अच्छी रचना)साधू साधू
ReplyDeleteढोता हूं पर पंथ प्रथम है
नही शक्ति आमन्त्रण तज दूँ(अच्छी रचना)साधू साधू
ReplyDeleteढोता हूं पर पंथ प्रथम है
बहुत अच्छा।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteप्रेम तुम्हारा आधा सपना—
ReplyDeleteबखूबी श्रम्गार-रस के मलवे तले
जीवन की वास्तविकता से रूबरू होना,
जैसे नीम्द मेम हो—फिर भी चैतन्य.
प्रेम- आधी रचना!
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteउम्दा प्रवीण जी
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, स्कूली जीवन और बॉलीवुड के गीत - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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