बताता हूँ सत्य गहरा,
आत्म-क्रोधित और ठहरा,
लगा है जिस पर युगों से,
वेदना का क्रूर पहरा ।
मर्म जाना तथ्य का,
जब कभी भी सत्य का,
जानता जिसको जगत भी,
व्यक्त फिर भी रिक्तता,
नित्य सुनता किन्तु अब तक रहा बहरा,
बताता हूँ सत्य गहरा ।
मैं उसे यदि छोड़ता हूँ,
आत्म-गरिमा तोड़ता हूँ,
काल से अपने हृदय का,
क्षुब्ध नाता जोड़ता हूँ ।
स्याह संग जीवन लगे कैसे सुनहरा,
बताता हूँ सत्य गहरा ।
ध्यान सारा बाँटते हैं,
झूँठ मुझको काटते हैं,
आत्म की अवहेलना के,
तथ्य रह रह डाँटते हैं,
नहीं रखना संग अपने छद्म पहरा,
बताता हूँ सत्य गहरा ।
आत्म-क्रोधित और ठहरा,
लगा है जिस पर युगों से,
वेदना का क्रूर पहरा ।
मर्म जाना तथ्य का,
जब कभी भी सत्य का,
जानता जिसको जगत भी,
व्यक्त फिर भी रिक्तता,
नित्य सुनता किन्तु अब तक रहा बहरा,
बताता हूँ सत्य गहरा ।
मैं उसे यदि छोड़ता हूँ,
आत्म-गरिमा तोड़ता हूँ,
काल से अपने हृदय का,
क्षुब्ध नाता जोड़ता हूँ ।
स्याह संग जीवन लगे कैसे सुनहरा,
बताता हूँ सत्य गहरा ।
ध्यान सारा बाँटते हैं,
झूँठ मुझको काटते हैं,
आत्म की अवहेलना के,
तथ्य रह रह डाँटते हैं,
नहीं रखना संग अपने छद्म पहरा,
बताता हूँ सत्य गहरा ।
ध्यान सारा बाँटते हैं,
ReplyDeleteझूँठ मुझको काटते हैं,
आत्म की अवहेलना के,
तथ्य रह रह डाँटते हैं,
नहीं रखना संग अपने छद्म पहरा,
बताता हूँ सत्य गहरा ।
बहुत सुंदर प्रस्तुति.
सुंदर प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteआत्म चिन्तन से ही गहरा सत्य प्रकट हो पाता है।
ReplyDeletesundar kavita .......
ReplyDeletebadiya hai...kya shabdon ka chayan hai
ReplyDeleteसुंदर
ReplyDeleteवाह , क्या बात है , खूबसूरत रचना !
ReplyDeletebeautiful
ReplyDeleteचक्रव्यूह के तथ्य सा , जलेबी से कथ्य सा ...
ReplyDeleteध्यान सारा बाँटते हैं,
ReplyDeleteझूँठ मुझको काटते हैं,
आत्म की अवहेलना के,
तथ्य रह रह डाँटते हैं,
नहीं रखना संग अपने छद्म पहरा,
बताता हूँ सत्य गहरा ।
गहरें भावों को समेटे .... सुन्दर शब्द रचना
http://savanxxx.blogspot.in,