जीवन को जब कहा, ठहर जा, नहीं उसे रुकना भाता है,
और हृदय जब भरे उलाछें, सन्नाटा पसरा जाता है ।
आलस में बीते कितने दिन, कितने अवसर व्यर्थ हुये,
शब्दों से उलझे उलझे हम, कितने वाक्य निरर्थ हुये ।
मैने कब माँगी थी गति सोपान त्वरित चढ़ जाने की,
नहीं कभी भी आकांक्षा थी उत्कर्षों को पाने की ।
जीवन को देव प्रदत्त एक उपहार मान कुछ बीते दिन,
और कभी एक ध्येय अग्नि पर अर्पित करने चाहे ऋण ।
माना प्रश्न पूछ्ने का अधिकार नहीं है अब हमको,
पर क्या उत्तर दे पायें जब समय सालता है हृद को ।
और हृदय जब भरे उलाछें, सन्नाटा पसरा जाता है ।
आलस में बीते कितने दिन, कितने अवसर व्यर्थ हुये,
शब्दों से उलझे उलझे हम, कितने वाक्य निरर्थ हुये ।
मैने कब माँगी थी गति सोपान त्वरित चढ़ जाने की,
नहीं कभी भी आकांक्षा थी उत्कर्षों को पाने की ।
जीवन को देव प्रदत्त एक उपहार मान कुछ बीते दिन,
और कभी एक ध्येय अग्नि पर अर्पित करने चाहे ऋण ।
माना प्रश्न पूछ्ने का अधिकार नहीं है अब हमको,
पर क्या उत्तर दे पायें जब समय सालता है हृद को ।
माना प्रश्न पूछ्ने का अधिकार नहीं है अब हमको,
ReplyDeleteपर क्या उत्तर दे पायें जब समय सालता है हृद को ।
बहुत सुंदर!
भाई, बहुत सुंदर पंक्तियाँ हैं...
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण।
ReplyDeleteBeautiful--A talk with the heart.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना
ReplyDeleteजीवन तो पानी की तरह बहता है, रोकना व्यर्थ की कोशिश है।
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