आकांक्षा से भरे नयन हैं और असुँअन की धार बहे,
सक्षम खाली हाथ, उठे हैं सम्मुख, अपनी बात कहे,
सूचक हैं ये, प्रश्न उठाते, आज आपके बारे में,
आप समझते, अश्रु खुशी के, हाथ उठे जयकारे में ।
हम थे भ्रम में, शायद हमने, लोकतन्त्र-रण जीता है,
पाँच वर्ष अज्ञातवास, पर समय आपका बीता है,
आये पुनः बिछाने चोपड़, आशाओं की, स्वप्नों की,
पाँसे फेंके, खेल रहे हैं, राजनीति फिर अपनों की,
अब होगा सब ठीक, समस्यायें जो थी, मिट जायेंगी,
नयी नीतियाँ देखो, उजला नवप्रभात ले आयेंगी,
व्यक्ति व्यक्ति को तोड़ रहे जो, हाथ जोड़कर खड़े हुये,
आज आपके मत पाने बन भिक्षु अकिंचन पड़े हुये,
निष्ठाओं का भवन तुम्हारा जगह जगह से टूटा है,
अपना वचन निभाना था जो, सिद्ध कर दिया झूठा है,
किस को समझाना चाहो तुम, कौन कथा तुम बाँच रहे,
मन के छल को, खड़े हुये क्यों चौराहे पर जाँच रहे,
नहीं तुम्हारे आश्वासन अब काम तुम्हारे आयेंगे,
हर हाथों को काम, और यह अश्रु सूख जब जायेंगे,
तभी समझना जनमानस-स्नेह, हृदय की धड़कन को,
अपना ही पाओगे हर क्षण, तब समाज में जन जन को।
सक्षम खाली हाथ, उठे हैं सम्मुख, अपनी बात कहे,
सूचक हैं ये, प्रश्न उठाते, आज आपके बारे में,
आप समझते, अश्रु खुशी के, हाथ उठे जयकारे में ।
हम थे भ्रम में, शायद हमने, लोकतन्त्र-रण जीता है,
पाँच वर्ष अज्ञातवास, पर समय आपका बीता है,
आये पुनः बिछाने चोपड़, आशाओं की, स्वप्नों की,
पाँसे फेंके, खेल रहे हैं, राजनीति फिर अपनों की,
अब होगा सब ठीक, समस्यायें जो थी, मिट जायेंगी,
नयी नीतियाँ देखो, उजला नवप्रभात ले आयेंगी,
व्यक्ति व्यक्ति को तोड़ रहे जो, हाथ जोड़कर खड़े हुये,
आज आपके मत पाने बन भिक्षु अकिंचन पड़े हुये,
निष्ठाओं का भवन तुम्हारा जगह जगह से टूटा है,
अपना वचन निभाना था जो, सिद्ध कर दिया झूठा है,
किस को समझाना चाहो तुम, कौन कथा तुम बाँच रहे,
मन के छल को, खड़े हुये क्यों चौराहे पर जाँच रहे,
नहीं तुम्हारे आश्वासन अब काम तुम्हारे आयेंगे,
हर हाथों को काम, और यह अश्रु सूख जब जायेंगे,
तभी समझना जनमानस-स्नेह, हृदय की धड़कन को,
अपना ही पाओगे हर क्षण, तब समाज में जन जन को।
दिनांक 03/08/2015 को आप की इस रचना का लिंक होगा...
ReplyDeleteचर्चा मंच[कुलदीप ठाकुर द्वारा प्रस्तुत चर्चा] पर...
आप भी आयेगा....
धन्यवाद...
वे तो राजनीति करने ही आए है....
ReplyDeleteआश्वसन और भूल जाना ही राजनीति की प्राथमिकता है।
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