बताता हूँ सत्य गहरा,
आत्म-क्रोधित और ठहरा,
लगा है जिस पर युगों से,
वेदना का क्रूर पहरा ।
मर्म जाना तथ्य का,
जब कभी भी सत्य का,
जानता जिसको जगत भी,
व्यक्त फिर भी रिक्तता,
नित्य सुनता किन्तु अब तक रहा बहरा,
बताता हूँ सत्य गहरा ।
मैं उसे यदि छोड़ता हूँ,
आत्म-गरिमा तोड़ता हूँ,
काल से अपने हृदय का,
क्षुब्ध नाता जोड़ता हूँ ।
स्याह संग जीवन लगे कैसे सुनहरा,
बताता हूँ सत्य गहरा ।
ध्यान सारा बाँटते हैं,
झूँठ मुझको काटते हैं,
आत्म की अवहेलना के,
तथ्य रह रह डाँटते हैं,
नहीं रखना संग अपने छद्म पहरा,
बताता हूँ सत्य गहरा ।
आत्म-क्रोधित और ठहरा,
लगा है जिस पर युगों से,
वेदना का क्रूर पहरा ।
मर्म जाना तथ्य का,
जब कभी भी सत्य का,
जानता जिसको जगत भी,
व्यक्त फिर भी रिक्तता,
नित्य सुनता किन्तु अब तक रहा बहरा,
बताता हूँ सत्य गहरा ।
मैं उसे यदि छोड़ता हूँ,
आत्म-गरिमा तोड़ता हूँ,
काल से अपने हृदय का,
क्षुब्ध नाता जोड़ता हूँ ।
स्याह संग जीवन लगे कैसे सुनहरा,
बताता हूँ सत्य गहरा ।
ध्यान सारा बाँटते हैं,
झूँठ मुझको काटते हैं,
आत्म की अवहेलना के,
तथ्य रह रह डाँटते हैं,
नहीं रखना संग अपने छद्म पहरा,
बताता हूँ सत्य गहरा ।