12.7.15

कैसे कह दूँ ?

कैसे कह दूँ, यह जीवन, निर्झर, निर्मल बहता पानी है ।
कैसे कह दूँ, है खुशी बड़ी, जब सब राहें अनजानी हैं ।।

कैसे जीवन को सिंचित, शस्यित उपवन की उपमा दे दूँ ।
कैसे कह दूँ, अब शान्ति-चैन में सारी रैन बितानी है ।।

कैसे कह दूँ, कि जीवन में जो चाहा था, हर बार मिला ।
कैसे हो जाये चित्त शान्त, जब हर गुत्थी सुलझानी है ।।

निर्विकार यदि जीना हो,
निर्भय यथार्थ स्वीकार करो ।

कैसे कह दूँ, कि आज व्यवस्थित, मन का ताना बाना है ।
कैसे भी हो, पर जीवन का चिन्तन यथार्थ पर लाना है ।।

8 comments:

  1. bahut sunder bhav......

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  2. कैसे कह दूँ, कि आज व्यवस्थित, मन का ताना बाना है ।
    कैसे भी हो, पर जीवन का चिन्तन यथार्थ पर लाना है ।।
    ..बहुत सुन्दर
    जीवन का यथार्थ धरातल बहुत कठोर होता है

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  3. यथार्थ ही जीवन का लक्ष्य होना चाहिये।

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  4. निर्विकार यदि जीना हो,
    निर्भय यथार्थ स्वीकार करो ।
    कठिन है पर यही शांति का रास्ता है |

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  5. निर्विकार यदि जीना हो,
    निर्भय यथार्थ स्वीकार करो ।

    यह भाव ही यथार्थ है. सुंदर प्रस्तुति.

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  6. सच , ये भी द्वंद्व है |

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