कैसे कह दूँ, यह जीवन, निर्झर, निर्मल बहता पानी है ।
कैसे कह दूँ, है खुशी बड़ी, जब सब राहें अनजानी हैं ।।
कैसे जीवन को सिंचित, शस्यित उपवन की उपमा दे दूँ ।
कैसे कह दूँ, अब शान्ति-चैन में सारी रैन बितानी है ।।
कैसे कह दूँ, कि जीवन में जो चाहा था, हर बार मिला ।
कैसे हो जाये चित्त शान्त, जब हर गुत्थी सुलझानी है ।।
निर्विकार यदि जीना हो,
निर्भय यथार्थ स्वीकार करो ।
कैसे कह दूँ, कि आज व्यवस्थित, मन का ताना बाना है ।
कैसे भी हो, पर जीवन का चिन्तन यथार्थ पर लाना है ।।
कैसे कह दूँ, है खुशी बड़ी, जब सब राहें अनजानी हैं ।।
कैसे जीवन को सिंचित, शस्यित उपवन की उपमा दे दूँ ।
कैसे कह दूँ, अब शान्ति-चैन में सारी रैन बितानी है ।।
कैसे कह दूँ, कि जीवन में जो चाहा था, हर बार मिला ।
कैसे हो जाये चित्त शान्त, जब हर गुत्थी सुलझानी है ।।
निर्विकार यदि जीना हो,
निर्भय यथार्थ स्वीकार करो ।
कैसे कह दूँ, कि आज व्यवस्थित, मन का ताना बाना है ।
कैसे भी हो, पर जीवन का चिन्तन यथार्थ पर लाना है ।।
वाह !
ReplyDeletebahut sunder bhav......
ReplyDeleteकैसे कह दूँ, कि आज व्यवस्थित, मन का ताना बाना है ।
ReplyDeleteकैसे भी हो, पर जीवन का चिन्तन यथार्थ पर लाना है ।।
..बहुत सुन्दर
जीवन का यथार्थ धरातल बहुत कठोर होता है
यथार्थ ही जीवन का लक्ष्य होना चाहिये।
ReplyDeleteनिर्विकार यदि जीना हो,
ReplyDeleteनिर्भय यथार्थ स्वीकार करो ।
कठिन है पर यही शांति का रास्ता है |
निर्विकार यदि जीना हो,
ReplyDeleteनिर्भय यथार्थ स्वीकार करो ।
यह भाव ही यथार्थ है. सुंदर प्रस्तुति.
bahut khub...
ReplyDeleteपीएम और देशवासियों के नाम खुला ख़त।
सच , ये भी द्वंद्व है |
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