आज कोई दुख नहीं है, निशा सुख में डूबती है,
समय का आवेग भी निश्चिन्त बहता जा रहा है,
जब समुन्दर राग और आह्लाद के लेते हिलोरें,
सुध स्वयं की ही नहीं है, कब तुम्हारा स्मरण हो ?
इस तरह यदि सुखों का प्राधान्य चलता ही रहेगा,
पंथ व्यवधानों बिना सामान्य मिलता ही रहेगा,
जीवनी की विविधता और मदों में आसक्त होकर,
यहाँ सुविधा में पड़ा हूँ, कब तुम्हारा स्मरण हो ?
बता तेरे उपकरण से ध्यान हटता ही नहीं है,
कब तुम्हारा अनुसरण हो, कब तुम्हारा स्मरण हो ?
समय का आवेग भी निश्चिन्त बहता जा रहा है,
जब समुन्दर राग और आह्लाद के लेते हिलोरें,
सुध स्वयं की ही नहीं है, कब तुम्हारा स्मरण हो ?
इस तरह यदि सुखों का प्राधान्य चलता ही रहेगा,
पंथ व्यवधानों बिना सामान्य मिलता ही रहेगा,
जीवनी की विविधता और मदों में आसक्त होकर,
यहाँ सुविधा में पड़ा हूँ, कब तुम्हारा स्मरण हो ?
बता तेरे उपकरण से ध्यान हटता ही नहीं है,
कब तुम्हारा अनुसरण हो, कब तुम्हारा स्मरण हो ?
.:)
ReplyDeleteवाह , बेहतरीन भाव अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteProfound
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ! वैसे भी कहावत है कि सुख के समय कोई भगवान को याद नहीं करता !
ReplyDeleteयहाँ सुविधा में पड़ा हूँ, कब तुम्हारा स्मरण हो ?
ReplyDeleteअति सुन्दर
यहाँ सुविधा में पड़ा हूँ, कब तुम्हारा स्मरण हो
ReplyDeleteअति सुन्दर
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (29-06-2015) को "योग से योगा तक" (चर्चा अंक-2021) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
सुविधा न मिले तो भी तकलीफ मिले तो भी, बेचारा इंसान क्या करे. मस्त है
ReplyDeletegahri baat ..
ReplyDelete(बता तेरे उपकरण से ध्यान हटता ही नहीं है,) मोबाइल का प्रयोग कम कर दीजिये, समय निकल आयेगा।
ReplyDeleteLovely...
ReplyDeleteअपने काव्य से आप उसका स्मरण कर ही रहे हैं।
ReplyDeleteसमय के साथ चलने की जद्दोजहद में जिए जा रहे हैं...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
बहुत खूब सर
ReplyDeleteबहुत खूब सर !पदार्थ से संलिप्त हूँ मैं चेतना लेकर करून क्या ?
ReplyDeleteदुख में सुमिरन सब करें सुख में करे न कोय
ReplyDeleteजो सुख में सुमिरन करे दुख काहे को होय