कितने स्वप्न सँजों रखे हैं,
कब से सोयी है अभिलाषा,
चुपके चुपके कह जाती है,
आँखों से आँखों की भाषा । १।
ज्ञात नहीं मैं कहाँ खड़ा हूँ,
आकर्षण का घना कुहासा,
मन्त्रमुग्ध पर खींच रही है,
आँखों से आँखों की भाषा । २।
जाने कब से आस लगाये,
आँखें तकता है मन प्यासा,
फिर भी प्यास बढ़ा जाती है,
आँखों से आँखों की भाषा । ३।
तुम पर निर्भर स्वप्न सलोने,
तुम पर निर्भर सारी आशा,
कब देगी पहला आमन्त्रण,
आँखों से आँखों की भाषा । ४।
कब से सोयी है अभिलाषा,
चुपके चुपके कह जाती है,
आँखों से आँखों की भाषा । १।
ज्ञात नहीं मैं कहाँ खड़ा हूँ,
आकर्षण का घना कुहासा,
मन्त्रमुग्ध पर खींच रही है,
आँखों से आँखों की भाषा । २।
जाने कब से आस लगाये,
आँखें तकता है मन प्यासा,
फिर भी प्यास बढ़ा जाती है,
आँखों से आँखों की भाषा । ३।
तुम पर निर्भर स्वप्न सलोने,
तुम पर निर्भर सारी आशा,
कब देगी पहला आमन्त्रण,
आँखों से आँखों की भाषा । ४।
सम्प्रेषणीय!
ReplyDeleteसर बहुत ही भावपूर्ण कविता |आभार
ReplyDeleteप्रेम प्लावन भाव।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (22-06-2015) को "पितृ-दिवस पर पिता को नमन" {चर्चा - 2014} पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
अन्तर्राष्ट्रीय योगदिवस की के साथ-साथ पितृदिवस की भी हार्दिक शुभकामनाएँ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
भावपूर्ण कविता
ReplyDeleteबहुत मुश्किल है आँखों की भाषा पढ़ना।
ReplyDeleteVery sweat, well connected words and meaningful.
ReplyDeleteदक्षता ग्रहण करनी होगी आंखों की भाषा पढ़ने के लिये। जितनी सरल लगती है उतनी ही जटिल भी।
ReplyDeletekhubsurat ...
ReplyDeleteएकदम सहज और उतना ही प्रभावी सम्प्रेषण …
ReplyDeletebahut sundar
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