7.6.15

सूरज ढूढ़ रहे अंधों में

स्वार्थ दृष्टिगत संबंधों में,
जीवन बीता अनुबंधों में,
ढक कर सर पर बोरे डाले,
सूरज ढूँढ़ रहे अंधों में।

मद में रत, बौराया नित मन,
गति घनघोर बिताया यौवन,
तन थकान, चहुँ दिशा बिखरती,
विधि छाया बिसराया जीवन।

तथ्य गूढ़, अनुभूत विवशता,
छिछली, बिखरी, जीवनरसता,
हर मोड़ों पर बाधित, पाशित,
मापरहित प्रतिकूल अवस्था।

मधुरिम सपने, ध्वस्त धरातल,
अनमन रचना, छिटके बादल,
संकेतों की बाट जोहती,
आशायें ढलती अस्ताचल।

दृष्टि बदलती, सृष्टि अधरगति,
अनुभव पथ पर, आन्दोलित मति,
संशोधित, पूरित शब्दों से,
सजती, रसती, अकुलायी क्षति।

द्वन्द्व चरम पर, जीवन साधे,
आधे सम्हले, बिखरे आधे,
स्थिरता की निशा विरहपथ,
अर्धचन्द्र अनुरूप बिता दे।

15 comments:


  1. द्वन्द्व चरम पर, जीवन साधे,
    आधे सम्हले, बिखरे आधे,
    स्थिरता की निशा विरहपथ,
    अर्धचन्द्र अनुरूप बिता दे।

    ReplyDelete
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (08-06-2015) को चर्चा मंच के 2000वें अंक "बरफ मलाई - मैग्‍गी नूडल से डर गया क्‍या" (चर्चा अंक-2000) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

    ReplyDelete
  3. क्या बात है। लाजवाब रचा है आपने। बिना रुके एक साँस में पढ़ने लायक रचना। लाजवाब प्रवाह

    यहाँ भी पधारें
    http://chlachitra.blogspot.in/

    http://cricketluverr.blogspot.com

    ReplyDelete
  4. धाराप्रवाह--भावों की धारा

    ReplyDelete
  5. वाह ! मज़ा आ गया । चरैवेति - चरैवेति । मञ्जिल ज़रूर मिलेगी ।

    ReplyDelete
  6. दृष्टि बदलती, सृष्टि अधरगति,
    अनुभव पथ पर, आन्दोलित मति,
    संशोधित, पूरित शब्दों से,
    सजती, रसती, अकुलायी क्षति....बहुत बढ़ि‍या रचना।

    ReplyDelete
  7. wah jabardast upma dee hai adhure jeewan ki ardhchandra se.

    ReplyDelete
  8. ..स्वार्थ दृष्टिगत संबंधों में ,जीवन बिता अनुबंधों में ..अनमोल रचना ....सर आपकी अनमोल रचना के लिए रविवार का इन्तेजार करना पड़ता है ...

    ReplyDelete
  9. अलंकृत भाषा का सफल प्रयोग।

    ReplyDelete
  10. तत्सम शब्दावली में भी लयात्मकता के साथ सुंदर भावोत्वादन।
    ............
    लज़ीज़ खाना: जी ललचाए, रहा न जाए!!

    ReplyDelete
  11. सूरज वहीं आएगा जहां अंधकार हो.....

    ReplyDelete
  12. जीवन को परिभाषित करती कविता. गजब की गेयता है.

    ReplyDelete