स्वार्थ दृष्टिगत संबंधों में,
जीवन बीता अनुबंधों में,
ढक कर सर पर बोरे डाले,
सूरज ढूँढ़ रहे अंधों में।
मद में रत, बौराया नित मन,
गति घनघोर बिताया यौवन,
तन थकान, चहुँ दिशा बिखरती,
विधि छाया बिसराया जीवन।
तथ्य गूढ़, अनुभूत विवशता,
छिछली, बिखरी, जीवनरसता,
हर मोड़ों पर बाधित, पाशित,
मापरहित प्रतिकूल अवस्था।
मधुरिम सपने, ध्वस्त धरातल,
अनमन रचना, छिटके बादल,
संकेतों की बाट जोहती,
आशायें ढलती अस्ताचल।
दृष्टि बदलती, सृष्टि अधरगति,
अनुभव पथ पर, आन्दोलित मति,
संशोधित, पूरित शब्दों से,
सजती, रसती, अकुलायी क्षति।
द्वन्द्व चरम पर, जीवन साधे,
आधे सम्हले, बिखरे आधे,
स्थिरता की निशा विरहपथ,
अर्धचन्द्र अनुरूप बिता दे।
जीवन बीता अनुबंधों में,
ढक कर सर पर बोरे डाले,
सूरज ढूँढ़ रहे अंधों में।
मद में रत, बौराया नित मन,
गति घनघोर बिताया यौवन,
तन थकान, चहुँ दिशा बिखरती,
विधि छाया बिसराया जीवन।
तथ्य गूढ़, अनुभूत विवशता,
छिछली, बिखरी, जीवनरसता,
हर मोड़ों पर बाधित, पाशित,
मापरहित प्रतिकूल अवस्था।
मधुरिम सपने, ध्वस्त धरातल,
अनमन रचना, छिटके बादल,
संकेतों की बाट जोहती,
आशायें ढलती अस्ताचल।
दृष्टि बदलती, सृष्टि अधरगति,
अनुभव पथ पर, आन्दोलित मति,
संशोधित, पूरित शब्दों से,
सजती, रसती, अकुलायी क्षति।
द्वन्द्व चरम पर, जीवन साधे,
आधे सम्हले, बिखरे आधे,
स्थिरता की निशा विरहपथ,
अर्धचन्द्र अनुरूप बिता दे।
ReplyDeleteद्वन्द्व चरम पर, जीवन साधे,
आधे सम्हले, बिखरे आधे,
स्थिरता की निशा विरहपथ,
अर्धचन्द्र अनुरूप बिता दे।
:)
ReplyDelete:)
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (08-06-2015) को चर्चा मंच के 2000वें अंक "बरफ मलाई - मैग्गी नूडल से डर गया क्या" (चर्चा अंक-2000) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
क्या बात है। लाजवाब रचा है आपने। बिना रुके एक साँस में पढ़ने लायक रचना। लाजवाब प्रवाह
ReplyDeleteयहाँ भी पधारें
http://chlachitra.blogspot.in/
http://cricketluverr.blogspot.com
धाराप्रवाह--भावों की धारा
ReplyDeleteBahut sundar!
ReplyDeleteवाह ! मज़ा आ गया । चरैवेति - चरैवेति । मञ्जिल ज़रूर मिलेगी ।
ReplyDeleteदृष्टि बदलती, सृष्टि अधरगति,
ReplyDeleteअनुभव पथ पर, आन्दोलित मति,
संशोधित, पूरित शब्दों से,
सजती, रसती, अकुलायी क्षति....बहुत बढ़िया रचना।
wah jabardast upma dee hai adhure jeewan ki ardhchandra se.
ReplyDelete..स्वार्थ दृष्टिगत संबंधों में ,जीवन बिता अनुबंधों में ..अनमोल रचना ....सर आपकी अनमोल रचना के लिए रविवार का इन्तेजार करना पड़ता है ...
ReplyDeleteअलंकृत भाषा का सफल प्रयोग।
ReplyDeleteतत्सम शब्दावली में भी लयात्मकता के साथ सुंदर भावोत्वादन।
ReplyDelete............
लज़ीज़ खाना: जी ललचाए, रहा न जाए!!
सूरज वहीं आएगा जहां अंधकार हो.....
ReplyDeleteजीवन को परिभाषित करती कविता. गजब की गेयता है.
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