आज कोई दुख नहीं है, निशा सुख में डूबती है,
समय का आवेग भी निश्चिन्त बहता जा रहा है,
जब समुन्दर राग और आह्लाद के लेते हिलोरें,
सुध स्वयं की ही नहीं है, कब तुम्हारा स्मरण हो ?
इस तरह यदि सुखों का प्राधान्य चलता ही रहेगा,
पंथ व्यवधानों बिना सामान्य मिलता ही रहेगा,
जीवनी की विविधता और मदों में आसक्त होकर,
यहाँ सुविधा में पड़ा हूँ, कब तुम्हारा स्मरण हो ?
बता तेरे उपकरण से ध्यान हटता ही नहीं है,
कब तुम्हारा अनुसरण हो, कब तुम्हारा स्मरण हो ?
समय का आवेग भी निश्चिन्त बहता जा रहा है,
जब समुन्दर राग और आह्लाद के लेते हिलोरें,
सुध स्वयं की ही नहीं है, कब तुम्हारा स्मरण हो ?
इस तरह यदि सुखों का प्राधान्य चलता ही रहेगा,
पंथ व्यवधानों बिना सामान्य मिलता ही रहेगा,
जीवनी की विविधता और मदों में आसक्त होकर,
यहाँ सुविधा में पड़ा हूँ, कब तुम्हारा स्मरण हो ?
बता तेरे उपकरण से ध्यान हटता ही नहीं है,
कब तुम्हारा अनुसरण हो, कब तुम्हारा स्मरण हो ?