परिचयी आकाश में, हर रोज तारे टूटते हैं,
लोग थोड़ा साथ चलते और थकते, छूटते हैं,
किन्तु फिर भी मन यही कहता, तुम्हारे साथ जीवन,
प्रेम के चिरपाश में बँध, क्षितिज तक चलता रहेगा ।।१।।
विविधता से पूर्ण है जग, लोग फिर भी ऊब जाते,
काल के आवेग में आ, पंथ रह रह डगमगाते,
नहीं भरता दम्भ फिर भी, मन सतत यह कह रहा है,
आत्म-पोषित, प्रेम अपना, दुग्ध सा धवलित रहेगा ।।२।।
लोग थोड़ा साथ चलते और थकते, छूटते हैं,
किन्तु फिर भी मन यही कहता, तुम्हारे साथ जीवन,
प्रेम के चिरपाश में बँध, क्षितिज तक चलता रहेगा ।।१।।
विविधता से पूर्ण है जग, लोग फिर भी ऊब जाते,
काल के आवेग में आ, पंथ रह रह डगमगाते,
नहीं भरता दम्भ फिर भी, मन सतत यह कह रहा है,
आत्म-पोषित, प्रेम अपना, दुग्ध सा धवलित रहेगा ।।२।।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (18-05-2015) को "आशा है तो जीवन है" {चर्चा अंक - 1979} पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
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अखंड प्रेम का विश्वास दिलाती सुंदर कविता.
ReplyDeleteक्या बात है प्रवीन जी जबरदस्त
ReplyDeleteक्या बात है प्रवीन जी जबरदस्त
ReplyDeleteक्या बात है प्रवीन जी जबरदस्त
ReplyDeleteक्या बात है प्रवीन जी जबरदस्त
ReplyDeleteआत्म-पोषित, प्रेम अपना, दुग्ध सा धवलित रहेगा ।।२।।
ReplyDeleteबहुत सुंदर---प्रेम और जीवन की मीमाम्सा.
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, रावण का ज्ञान - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteआत्मपोषित प्रेम ही वास्तविक प्रेम है।
ReplyDeleteप्रेम ही है जो जीवन को गति देता है
ReplyDeleteअखंड प्रेम दर्शाती अति सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteवाह प्रवीण जी। शब्दों के फूल बिखरा दिए।
ReplyDeleteYour artical is very fine .i most like. It is very useful every person to improve happiness
ReplyDeletesannat
ReplyDeleteक्षितिज के उस पार तक भी प्रेम बना रहता है।
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