17.5.15

प्रेम अपना

परिचयी आकाश में, हर रोज तारे टूटते हैं,
लोग थोड़ा साथ चलते और थकते, छूटते हैं,
किन्तु फिर भी मन यही कहता, तुम्हारे साथ जीवन,
प्रेम के चिरपाश में बँध, क्षितिज तक चलता रहेगा ।।१।।

विविधता से पूर्ण है जग, लोग फिर भी ऊब जाते,
काल के आवेग में आ, पंथ रह रह डगमगाते,
नहीं भरता दम्भ फिर भी, मन सतत यह कह रहा है,
आत्म-पोषित, प्रेम अपना, दुग्ध सा धवलित रहेगा ।।२।।

16 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (18-05-2015) को "आशा है तो जीवन है" {चर्चा अंक - 1979} पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
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  2. अखंड प्रेम का विश्वास दिलाती सुंदर कविता.

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  3. क्या बात है प्रवीन जी जबरदस्त

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  4. क्या बात है प्रवीन जी जबरदस्त

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  5. क्या बात है प्रवीन जी जबरदस्त

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  6. क्या बात है प्रवीन जी जबरदस्त

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  7. आत्म-पोषित, प्रेम अपना, दुग्ध सा धवलित रहेगा ।।२।।
    बहुत सुंदर---प्रेम और जीवन की मीमाम्सा.

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  8. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, रावण का ज्ञान - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  9. आत्मपोषित प्रेम ही वास्तविक प्रेम है।

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  10. प्रेम ही है जो जीवन को गति देता है

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  11. अखंड प्रेम दर्शाती अति सुन्दर अभिव्यक्ति

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  12. वाह प्रवीण जी। शब्‍दों के फूल बिखरा दिए।

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  13. Your artical is very fine .i most like. It is very useful every person to improve happiness

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  14. क्षितिज के उस पार तक भी प्रेम बना रहता है।

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