आज मेधा साथ देती,
उमड़ता विश्वास भी है ।
चपल मन यदि शान्त बैठा,
यह तुम्हारा साथ ही है ।।१।।
दिख रहा स्पष्ट सब कुछ,
यदि दिशा मन की बँधी है ।
प्रेरणा अविराम बहती,
यह तुम्हारा साथ ही है ।।२।।
बढ़ रहा हूँ लक्ष्य के प्रति,
और संग आशा चली है ।
बिन सहारे चल रहा हूँ,
यह तुम्हारा साथ ही है ।।३।।
यदि सम्हलता समय का रथ,
जीवनी की लय सधी है ।
मन मुदित हो गीत गाता,
यह तुम्हारा साथ ही है ।।४।।
अनुपम सानिध्य!
ReplyDeleteअनुपम सानिध्य!
ReplyDeleteसाथ बना रहे... बनी रहे कविता भी!
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteतुम्हारा साथ जैसे लंगर जीवन का । कोई तूफ़ान ,कोई झंझावात कैसे असर करे जब साथ है तुम्हारा ।
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteसुन्दर !
ReplyDeleteA गज़ल्नुमा कविता (न पति देव न पत्नी देवी )
"तुम्हारा साथ" ये रचना बहुत अच्छी लगी !आपको धन्यवाद !
ReplyDeletekeep it up !
साथ की आवश्यकता सदा जीवन में बनी रहती है।
ReplyDeleteयह तुम्हारा साथ ही है---
ReplyDeleteप्रवीण जी बहुत सुंदर भाव-रचना.
यदि साथ,साथ हो तो जीवन ही लक्ष है.
चाहे यह मां है या पत्नी या बिटिया या पिता या पुत्र या मित्र...........इनके साथ की शक्ति से निश्चित ही आप अविराम लक्ष्य के प्रति चल रहे हैं। कविता के शब्द आशा व विश्वास का कितना संचार कर रहे हैं!!
ReplyDeleteGreat inspiration without physically being along- good lyric. Words are weaved beautifully. Regards.
ReplyDeleteजो साथ इतना प्रेरक है ,ऊर्जादायी है कि वह रचनाओं में झलक रहा है निरंतर . वह अक्षुण्ण रहे .
ReplyDeleteसंग साथ अच्छा मिले तो जीवन आसान बना रहता है ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
क्या बात..........
ReplyDelete