संग तुम्हारे राह पकड़ कर,
छोड़ा सब कुछ बीते पथ पर,
छोड़ा सब कुछ बीते पथ पर,
मन की सारी उत्श्रंखलता,
सुख पाने की घोर विकलता,
सुख पाने की घोर विकलता,
मुक्त उड़ाने, अपने सपने,
भूल आया संसार विगत मैं,
भूल आया संसार विगत मैं,
स्वार्थ रूप सब स्वर्ग सिधारे,
हेतु तुम्हारे प्रियतम प्यारे ।।१।।
हेतु तुम्हारे प्रियतम प्यारे ।।१।।
बन्धन को सम्मान दिलाने,
मन की बागडोर मैं थामे,
मन की बागडोर मैं थामे,
तज कर नयनों की चंचलता,
नयी जीवनी प्रस्तुत करता,
नयी जीवनी प्रस्तुत करता,
निर्मित की जो निष्कर्षों से,
अर्पित तुम पर पूर्ण रूप से,
अर्पित तुम पर पूर्ण रूप से,
तुम पर ही आधार हमारे,
हेतु तुम्हारे प्रियतम प्यारे ।।२।।
हेतु तुम्हारे प्रियतम प्यारे ।।२।।
नये पंथ पर लाया जीवन,
देखो कुछ खो आया जीवन,
देखो कुछ खो आया जीवन,
सहज नया एक रूप बनाकर,
बीता सकुशल, उसे बिताकर,
बीता सकुशल, उसे बिताकर,
स्वागत का एक थाल सजाये,
आशाआें का दीप जलाये,
आशाआें का दीप जलाये,
अपना सब कुछ तुम पर वारे,
हेतु तुम्हारे प्रियतम प्यारे ।।३।।
हेतु तुम्हारे प्रियतम प्यारे ।।३।।
कितनी प्रांजलता कितनी गेयता -अद्भुत!
ReplyDeleteउत्कृष्ट रचना
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति अद्भुत भाव.
ReplyDeleteसुंदर।
ReplyDeleteसुंदर।
ReplyDeletevaah
ReplyDeleteगा कर सुनाओ... :)
ReplyDeleteसादर प्रणाम सर , बहुत ही सुन्दर सामञ्जस्य है ।संग और मुक्ति का , पाने की विकलता और समर्पण का , वन्धन और सहजता का । ये कण्ट्रास्ट कलर्स यह कहने को प्रेरित करते हैं कि आपका अन्दाज ए बयाॅं कुछ और है ।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (04-05-2015) को "बेटियों को सुशिक्षित करो" (चर्चा अंक-1965) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
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बहुत बढ़िया ! आपकी रचना बहुत अच्छी लगी www.gyanipandit.com की और से शुभकामनाये !
ReplyDeleteसुन्दर !
ReplyDeleteवाह ...बहुत ही अनुपम भाव
ReplyDeleteवाह....अद्भुत लेखन .....अभिभूत हूँ..
ReplyDeleteअद्भुत!
ReplyDeleteप्रियतम के प्रति प्रेम का झरना।
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति की है आपने ...
ReplyDeletejabardast lekh or bhi ese lekh likhte rahiye
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