22.3.15

आशान्वित मन

आशाओं से संचारित मन,
करने की कुछ चाह हृदय में ।
स्वप्नों से कुछ दूर अवस्थित,
अब जीवन को पाया हमने ।।१।।

स्थिर है मन संकल्पों में,
लगा विकल्पों का भ्रम छटने ।
वर्षों से श्रमहीन रही जो,
संचित शक्ति उमड़ती मन में ।।२।।

बुद्धि व्यवस्थित और लगा है,
चिन्तन का विस्तार सिमटने ।
विविध विचारों की लड़ियाँ भी,
आज संकलित होती क्रम में ।।३।।

आज कल्पना प्रखर, मुखर है,
रोषित हृदय लगा है रमने ।
आज व्यन्जना पूर्ण रूप से,
कह जाती जो आता मन में ।।४।।

जीवन-दर्शन ज्ञात हो गया,
बहना छूट गया मद-नद में ।
आओ प्रभु स्थान ग्रहण हो,
आमन्त्रित मन के आँगन में ।।५।।

10 comments:

  1. मन के आँगन को विस्तारित करती कविता सार्थक हुयी।

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  2. जीवन-दर्शन ज्ञात हो गया,
    बहना छूट गया मद-नद में

    आओ प्रभु स्थान ग्रहण हो,
    आमन्त्रित मन के आँगन में ।।

    .....बहुत सुंदर!

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  3. भारतीय नववर्ष एवं नवरात्रों की हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (23-03-2015) को "नवजीवन का सन्देश नवसंवत्सर" (चर्चा - 1926) पर भी होगी!
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. प्रभु स्‍थान मन में......सुन्‍दर।

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  5. आशा है तो जीवन है ..
    बहुत बढ़िया ...

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  6. सुन्दर व सार्थक .....

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  7. बहुत सुंदर रचना

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  8. बेहतरीन शब्द सामर्थ्य , मंगलकामनाएं आपको !

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  9. बहुत सुन्दर भाव, आत्मविश्वास से भरे हुए।

    रोज़ शिकायत इनकी-उनकी
    अस्त-व्यस्त से जन-जीवन की
    देख पराये काले धन की
    पीड़ा सहलाते निज मन की
    इन सब से बाहर आएँ हम
    कुछ अच्छा सा कर जाएँ हम

    http://www.satyarthmitra.com/2015/03/blog-post.html

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