आशाओं से संचारित मन,
करने की कुछ चाह हृदय में ।
स्वप्नों से कुछ दूर अवस्थित,
अब जीवन को पाया हमने ।।१।।
स्थिर है मन संकल्पों में,
लगा विकल्पों का भ्रम छटने ।
वर्षों से श्रमहीन रही जो,
संचित शक्ति उमड़ती मन में ।।२।।
बुद्धि व्यवस्थित और लगा है,
चिन्तन का विस्तार सिमटने ।
विविध विचारों की लड़ियाँ भी,
आज संकलित होती क्रम में ।।३।।
आज कल्पना प्रखर, मुखर है,
रोषित हृदय लगा है रमने ।
आज व्यन्जना पूर्ण रूप से,
कह जाती जो आता मन में ।।४।।
जीवन-दर्शन ज्ञात हो गया,
बहना छूट गया मद-नद में ।
आओ प्रभु स्थान ग्रहण हो,
आमन्त्रित मन के आँगन में ।।५।।
करने की कुछ चाह हृदय में ।
स्वप्नों से कुछ दूर अवस्थित,
अब जीवन को पाया हमने ।।१।।
स्थिर है मन संकल्पों में,
लगा विकल्पों का भ्रम छटने ।
वर्षों से श्रमहीन रही जो,
संचित शक्ति उमड़ती मन में ।।२।।
बुद्धि व्यवस्थित और लगा है,
चिन्तन का विस्तार सिमटने ।
विविध विचारों की लड़ियाँ भी,
आज संकलित होती क्रम में ।।३।।
आज कल्पना प्रखर, मुखर है,
रोषित हृदय लगा है रमने ।
आज व्यन्जना पूर्ण रूप से,
कह जाती जो आता मन में ।।४।।
जीवन-दर्शन ज्ञात हो गया,
बहना छूट गया मद-नद में ।
आओ प्रभु स्थान ग्रहण हो,
आमन्त्रित मन के आँगन में ।।५।।
मन के आँगन को विस्तारित करती कविता सार्थक हुयी।
ReplyDeleteजीवन-दर्शन ज्ञात हो गया,
ReplyDeleteबहना छूट गया मद-नद में
।
आओ प्रभु स्थान ग्रहण हो,
आमन्त्रित मन के आँगन में ।।
.....बहुत सुंदर!
भारतीय नववर्ष एवं नवरात्रों की हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (23-03-2015) को "नवजीवन का सन्देश नवसंवत्सर" (चर्चा - 1926) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
प्रभु स्थान मन में......सुन्दर।
ReplyDeleteआशा है तो जीवन है ..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ...
सुन्दर और सार्थक रचना
ReplyDeleteसाईं क्या है ?
सुन्दर व सार्थक .....
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबेहतरीन शब्द सामर्थ्य , मंगलकामनाएं आपको !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव, आत्मविश्वास से भरे हुए।
ReplyDeleteरोज़ शिकायत इनकी-उनकी
अस्त-व्यस्त से जन-जीवन की
देख पराये काले धन की
पीड़ा सहलाते निज मन की
इन सब से बाहर आएँ हम
कुछ अच्छा सा कर जाएँ हम
http://www.satyarthmitra.com/2015/03/blog-post.html