4.1.15

दृश्य-गंगा

रेतगंगा, श्वेतगंगा,
वेगहत, अवशेष गंगा।

रिक्त गंगा, तिक्त गंगा,
उपेक्षायण, क्षिप्त गंगा।

भिन्न गंगा, छिन्न गंगा,
अनुत्साहित, खिन्न गंगा।

प्राण गंगा, त्राण गंगा,
थी कभी, निष्प्राण गंगा।

लुप्त गंगा, भुक्त गंगा,
प्रीतिबद्धा मुक्त गंगा।

महत गंगा, अहत गंगा,
शान्त सरके वृहत गंगा।

पूर्ण गंगा, घूर्ण गंगा,
कालचक्रे चूर्ण गंगा।

14 comments:

  1. है अभी निष्प्राण गंगा।

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  2. गंगा एक रूप अनेक

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  3. चुप सरकती शान्‍त गंगा...........और जब बिलखती क्रान्‍त गंगा।

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  4. अहा गंगा का काल खण्ड! एक सुझाव- थी कभी निष्प्राण गंगा। मे कभी और निष्प्राण के मध्य मे (,) की आवश्यकता है।

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  5. कब बनेगी हम सब की प्राण गंगा

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  6. गंगा का अनेक रुप...सुन्दर

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  7. यह है वैतरिणी गंगा ..बहुत सुन्दर !
    क्या हो गया है हमें?

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  8. गंगा का अनेक रुप...…सारे भाव उमड आये हैं।

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  9. गंगा मैया का सुन्दर गान .
    जय गंगा मैय्या !
    नए साल की आपको सपरिवार हार्दिक मंगलकामनाएं!

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  10. Ganga explained- Beautiful.

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  11. नख निर्गता मुनि वन्दिता
    त्रैलोक पावन सुरसरि।
    बड़ सुखसार पाओल तुअ तीरे
    और आपका
    कालचक्रे चुर्ण गंगा
    अद्भुत
    साधुवाद है।

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  12. गंगा को उद्बोधित करते बहुत सुंदर भाव, प्रवीण जी,गंगा हमारे अंदर इतने रूपों में समाहित है, कि भाव अपने आप बन जाते हैं,सुंदर सृजन के लिए शुभकामनाएं।

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    1. जी आभार। गंगा को देखकर उसके निर्मल प्रवाह में विचार भी बहने लगते हैं।

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