24.12.14

याद आती हो

मेरे दिन-रात चाहें, बस तुम्हारी याद में रहना,
सुबह बन गुनगुनाती, रात बनकर गीत गाती हो ।।१।।

नहीं अब है सताती, जीवनी ही स्वप्न में डूबी,
कली सी कुनमुनाती, फूल जैसी मुस्कुराती हो ।।२।।

तुम्हारा पास रहना भी, तुम्हारी याद के जैसा,
कभी तो छेड़ जाती और कभी मन गुदगुदाती हो ।।३।।

जिसे मैं ढूढ़ने निकला, जलाये दीप आशा के,
हृदय के रास्ते में धूप सी तुम फैल जाती हो ।।४।।

अधूरा चाँद अम्बर में, कभी तो पूर्णता पाये,
उसी अनुभूति का विश्वास, अधरों से पिलाती हो ।।५।।

4 comments:

  1. prem के अद्भुत भाव......

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  2. एक नई कोमल और अलग अनुभूति से निकली सुंदर और सरस अभिव्यक्ति है यह . सहज प्रवाह-युक्त .

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  3. सुकोमल कान्त कविता।

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  4. बहुत सुन्दर

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