आज कुछ बरसात की बूँदें बरसती और हवा भी,
बह रही उन्मुक्त होकर और कोयल कूजती हैं,
औ’ मदित सा धुन्ध छाना चाहता निर्बाध होकर,
सरसता के इस समय में कमल-कोपल फूटती हैं ।
अब हृदय के द्वार में बजाते शहनाइयाँ है,
जो समय की बाट जोहे, थक गये थे चूर होकर ।
आज कविता बिन बँधे,
गाम्भीर्य की यादें भुला कर,
मस्त लहरों की तरह यूँ,
बहकना ही चाहती है ।
कभी जीवन की सुबह,
जो कल्पना की गोद में थी,
आज पाकर प्यार का,
संसार जीना चाहती है ।
आज यादों की सुनहरी शाम में,
मैने संजोये कुछ निमन्त्रण ।।
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ReplyDeleteHealth Care in Hindi
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (14-12-2014) को "धैर्य रख मधुमास भी तो आस पास है" (चर्चा-1827) पर भी होगी।
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
कभी जीवन की सुबह,
ReplyDeleteजो कल्पना की गोद में थी,
आज पाकर प्यार का,
संसार जीना चाहती है ।
आज यादों की सुनहरी शाम में,
मैने संजोये कुछ निमन्त्रण ।।
शानदार प्रस्तुति।
क्या सन्जोग है - आज भी बारिश हो रही है। पर सर्द। शाल के विशाल वृक्षों के पत्तों पर जब आवाज आयी तो अहसास हुआ कि हो रही है बारिश। नहीं तो यूंही गुजर रहे थे उनके नीचे से।
ReplyDeleteसमयानुकूल प्रभावोत्पाक कविता ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteशानदार
ReplyDeleteआज पाकर प्यार का,
ReplyDeleteसंसार जीना चाहती है ।
आज यादों की सुनहरी शाम में,
मैने संजोये कुछ निमन्त्रण ।।
शानदार प्रस्तुति।
है नहीं संभव यहाँ अब और रुकना एक भी क्षण/ शाम से ही वह वहाँ बैठा संजोये कुछ निमंत्रण. [ऋ.]
ReplyDeleteसात की बूंदों और हवा से रिश्ता बनाये रखिए। जिंदगी के लिए बेहद जरुरी हैं।
ReplyDeleteबरसात की बूंदों और हवा से रिश्ता बनाये रखिए। जिंदगी के लिए बेहद जरुरी हैं।
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